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बाजरा वर्ष को समर्पित हुआ ‘ बड़ा मंगल ‘ भंडारे में बाजरे की खिचड़ी रहेगी खास, जानें, लखनऊ वालों की दिल की बात

भंडारा आयोजकों से आग्रह किया है कि वे प्रसाद में बाजरे की खिचड़ी या कुट्टू आटे की पूरी जैसी बाजरा आधारित वस्तुओं को शामिल करें. लखनऊ शहरवासियों का मानना ​​है कि 250 साल पुरानी बड़ा मंगल परंपरा दूसरे शहरों में भी फैलनी चाहिए.

लखनऊ : शहर के निवासी भगवान हनुमान की पूजा अर्चना करने और आने वाले चार मंगलवार को भंडारे (मुफ्त प्रसाद) का आयोजन करके बड़ा मंगल महीने का स्वागत करने के लिए तैयार हैं. इस वर्ष, कुछ भंडारे में अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष को ध्यान में रखकर बाजरा-आधारित प्रसाद चढ़ाया जाएगा. भंडारा स्थलों पर साफ सफाई और धार्मिक कार्यों में बढचढ़कर हिस्सा लेने वाली सामाजिक संस्था ‘मंगलमान’ ने भंडारा आयोजकों से आग्रह किया है कि वे प्रसाद में बाजरे की खिचड़ी या कुट्टू आटे की पूरी जैसी बाजरा आधारित वस्तुओं को शामिल करें. बीएसएनवी पीजी कॉलेज के प्रोफेसर और मंगल मान के संयोजक आरके तिवारी कहते हैं- “हम चाहते हैं कि बड़ा मंगल में बाजरा खाद्यान्न को बढ़ावा देने के लिए कम से कम एक बाजरा आधारित वस्तु पेश की जाए. हमें विश्वास है कि अगर पहले बड़ा मंगल में नहीं, तो शेष तीन मंगलवारों में इसे प्रसाद का हिस्सा बनाया जाएगा.”शहर के हनुमान मंदिर, विशेष रूप से हनुमान सेतु, अलीगंज में नया हनुमान मंदिर, और मल्टी-लेवल पार्किंग के पास हजरतगंज में स्थित मंदिर बड़ी संख्या में भक्तों की मेजबानी के लिए तैयार हैं.

अलीगंज के नया हनुमान मंदिर के गेट से दर्शन होंगे

“ बड़ा मंगल लखनऊ में 250 साल पुरानी परंपरा है. अलीगंज में नया हनुमान मंदिर मंदिर के रिकॉर्ड के अनुसार, 6 जून, 1782 से अस्तित्व में है.सेवानिवृत्त आईपीएस एवं अलीगंज श्री महावीर जी मंदिर ट्रस्ट के सचिव राजेश कुमार पांडे मंदिर के रिकॉर्ड से विवरण देखकर बताते हैं. उन्होंने कहा, “ मंदिर के गर्भगृह का पूरी तरह से जीर्णोद्धार किया गया है और कोई भी गेट से ही दर्शन कर सकता है. पुराने गेट को पिछले महीने तोड़ दिया गया था . जल्द ही नया गेट बनाया जाएगा. अब श्रद्धालु निर्माणाधीन नवनिर्मित गेट से मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं.

250 साल पुरानी बड़ा मंगल परंपरा, विस्तार की चाह

लखनऊ शहरवासियों का मानना ​​है कि 250 साल पुरानी बड़ा मंगल परंपरा दूसरे शहरों में भी फैलनी चाहिए. बीएसएनवी पीजी कॉलेज के प्रोफेसर और मंगल मान के संयोजक आरके तिवारी कहते हैं कि “अब बड़ा मंगल को राज्य की राजधानी से बाहर ले जाने का समय आ गया है. लखनऊवासियों को इसे अन्य शहरों में भी ले जाना चाहिए, जैसे मराठा समाज पूरे भारत में गणपति पूजा का प्रसार करने में सफल रहा.” हनुमान सेतु मंदिर ट्रस्ट के सचिव दिवाकर त्रिपाठी ने कहा, “ हम मंगलवार को लगभग 40,000 से 50,000 भक्तों के आने की उम्मीद कर रहे हैं. मंदिर के द्वार आधी रात तक खुले रहेंगे हमने अपने भक्तों के बीच बांटने के लिए लड्डू तैयार किए हैं. मंदिर को खूबसूरती से सजाया गया है ताकि भक्तों को परेशानी मुक्त दर्शन हो सके.” अन्य प्रमुख हनुमान मंदिरों को भी उत्सव के लिए सजाया गया है.भ

भंडारे में भक्तों के लिए ढेर सारे विकल्प 

इस साल भक्तों के लिए बड़ा मंगल थाली में काफी वैरायटी होगी. पारंपरिक पूरी सब्जी से लेकर लड्डू तक, शहर के कोने-कोने में वितरित होने वाले प्रसाद में मेवा खीर, अनानास का हलवा, स्वाद वाला दूध, आइसक्रीम, जूस, समोसा, जलेबी, छोले चावल, रायता शामिल हैं. और भी बहुत कुछ है. यह कहना है सुबोध टंडन का. वे बड़ा मंगल के चारों मंगलवार को चौक के कोनेश्वर महादेव मंदिर में दोस्तों के साथ स्टॉल लगाते हैं. टंडन ने बताया कि “ न केवल भक्तों के लिए, बल्कि हर लखनऊवासी के लिए, बड़ा मंगल एक उत्सव का अवसर है. इस दिन शहर में कोई भी भूखा नहीं रहता है. स्टालों को लगाने के पीछे मकसद यह सुनिश्चित करना है कि त्योहार के दौरान शहर में कोई भी भूखा न रहे.

बड़ा मंगल के पीछे की कहानी

अवध के नवाब शुजा-उद-दौला (1753-1775 A.D.) की दूसरी पत्नी बेगम जनाब-ए-आलिया ने एक दिव्य उपस्थिति का सपना देखा जो उन्हें हनुमान के सम्मान में एक मंदिर बनाने की आज्ञा दे रही थी. सपना ने नवाब की पत्नी को एक विशिष्ट स्थान की ओर इशारा किया जहां हनुमान की एक मूर्ति को दफनाया गया था.सपना के अनुसार रानी हाथी पर बैठकर चली. दूर जाने के बाद हाथी अपनी पटरियों पर रुक गया और हिलने से इंकार कर दिया. बेगम ने इसे एक और दैवीय संकेत माना और इस स्थान-वर्तमान अलीगंज में एक मंदिर के निर्माण का आदेश दिया.

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