राहुल गांधी आज देवरिया से दिल्ली तक की किसान यात्रा के चौथे दिन अयोध्या पहुंचे. आज पूरे 26 साल बाद गांधी-नेहरू परिवार के किसी शख्स ने अयोध्या की यात्रा की. राहुल ने वहां हनुमानगढ़ी जाकर पूजा-अर्चना की और महंत का आशीर्वाद लिया. हालांकि वे विवादित स्थल नहीं गये लेकिन उनकी इस यात्रा के कई मायने हैं. गौरतलब है कि राहुल गांधी से पहले उनके पिता राजीव गांधी 1990 में अयोध्या गये थे, लेकिन वे हनुमानगढ़ी नहीं जा पाये थे. 1992 में सोनिया गांधी फैजाबाद गयी थीं, लेकिन वह भी हनुमानगढ़ी नहीं गयीं थीं. यही कारण है कि राहुल की इस यात्रा के राजनीतिक अर्थ भी निकाले जा रहे हैं.
हिंदुत्व की ओर बढ़ाया एक कदम
राजनीति के जानकारों का मानना है कि राहुल गांधी की अयोध्या यात्रा उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वे हिंदू मतदाताओं को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं. कांग्रेस के ‘पीके’ प्रशांत किशोर इस बात से वाकिफ हैं कि अगर कांग्रेस की छवि हिंदू विरोधी की बन गयी तो इसका निगेटिव असर पड़ेगा, इसलिए उन्होंने राहुल को अयोध्या की यात्रा करवा दी. जैसा की जगजाहिर है कि जब कांग्रेस ने अपनी हार के कारणों का मंथन किया था तब उसमें एक कारण उसकी छवि हिंदू विरोधी जैसी बन जाना भी था, जिसे एके एंटोनी की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने उजागर किया था.
राजीव गांधी ने ही खुलवाया था राम जन्मभूमि का ताला
वर्ष 1986 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने हिंदू मतदाताओं को रिझाने के लिए राज जन्मभूमि का ताला खुलवाया था. लेकिन वे इसका लाभ नहीं उठा सके थे और इस मुद्दे को भाजपा ने उससे हाईजैक कर लिया था. बाद में इसे भाजपा ने वृहत आंदोलन का रूप दिया और कहा जाता है कि वह इसी मुद्दे के सहारे केंद्र की सत्ता तक भी पहुंची.
हिंदू-मुस्लिम दोनों को साथ रखने की कोशिश
अपने अयोध्या दौरे के दौरान आज सुबह राहुल गांधी ने हनुमानगढ़ी जाकर पूजा की, वहीं आज शाम सात बजे वे दरगाह पर भी जाने वाले हैं, इससे यह जाहिर होता है कि राहुल गांधी हिंदू और मुस्लिम दोनों को साथ लेकर चलना चाहते हैं.