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सिरसा के इस गांव के हर घर से एक जवान है तैनात,सदियों से चली आ रही है यह प्रथा

BORDER NEWS: उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में छर्रा ब्लाक के सिरसा गांव में सेना में भर्ती होकर सेवा भाव कार्य करने की प्रथा सदियों से चली आ रही है. बताते हैं कि इस गांव में हर बच्चे के अंदर सेना में भर्ती होने का जज़्बा होता है.इस गांव के कई पूर्व सैनिकों ने युद्धों में शामिल होकर सेवा प्रदान की है.

BORDER NEWS: अलीगढ़ के छर्रा ब्लॉक ग्राम सिरसा की मिट्टी से देश के सीमा पर तैनात जवानों की भीनी खुशबू आती है. यहां हर एक घर से कोई न कोई बेटा देश की सीमा पर सेवा देने का कार्य करता है.मानो इस गांव की प्रथा ही सदियों से चली आ रही हो, इस गांव के युवा आर्मी, सीमा सुरक्षा बल,सीआरपीएफ और आईटीबीपी में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं. इस गांव से लगभग 200 से ज्यादा बेटे सेना में तैनात होकर देश की अलग-अलग सीमा रेखाओं पर कार्यरत हैं. लगभग 300 से ज्यादा पूर्व सैनिक भी इस गांव से सेवा देते आए हैं.

गांव के लोगों ने कई बड़े युद्धों में की है सेवा प्रदान

जिले में सबसे ज्यादा सैनिक इसी गांव से ताल्लुकात रखते हैं. इस गांव के कई ऐसे बूढ़े बुजुर्ग हैं जो पूर्व में भारत-चीन युद्ध, भारत-पाकिस्तान युद्धों में भाग लिया और देश की सेवा की. पूर्व सैनिकों ने यह बताया कि हमेशा से ही हमारे गांव के हर छोटे बच्चे में सेना में जाके देश की सेवा करने का जुनून सिर पर सवार रहता है. उनकी परवरिश भी इसी तरह की जाती है,ताकि सीमाओं पर जाके सेवा भाव के साथ कार्य कर सकें. गांव से हर वर्ष करीब पांच से दस युवा सेना में भर्ती होकर सीमाओं पर तैनात होते हैं. दर्जनों युवा ऐसे होते हैं जो सेना भर्ती की तैयारी में लगे रहते हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें गर्व है कि गांव के बेटे पाकिस्तान युद्ध जैसी हालातों में देश की अलग-अलग सीमा रेखाओं पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहें हैं.

1957 से शुरू हुई थी इस गांव की परंपरा

इस गांव के 90 वर्षीय हरपाल सिंह सन 1957 के दौरान जाट रेजिमेंट में हवलदार के पद पर तैनात होकर कार्य करना प्रारंभ किए थे. हवलदार हरपाल सिंह ने भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान जैसे तमाम युद्धों में भाग लिया था. हरपाल सिंह का कहना है कि भारत ने पहलगाम में हुए दर्दनाक आतंकी हमले का बदला साहस और निडरता से लिया है और पाकिस्तान को करारा जवाब दिया है. हरपाल सिंह के सेना में भर्ती होने के बाद से गांव में इस प्रथा की परंपरा चलती चली आरही है.

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