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गंगा-यमुना तहजीब की मिशाल है श्रीनगर
वीरेंद्र/कौशलेंद्र, चैनपुर : गंगा, यमुना तहजीब देखना है, तो अलबर्ट एक्का जारी प्रखंड आइये. आज भी जारी प्रखंड के श्रीनगर में हर साल विजय दशमी के दिन इसकी एक मिशाल देखने को मिलती है. श्रीनगर में विजय दशमी के दिन शाम को जुलूस निकलने के ठीक पहले दुर्गा मंदिर के सामने सिकरी गांव निवासी मोहम्मद […]
वीरेंद्र/कौशलेंद्र, चैनपुर : गंगा, यमुना तहजीब देखना है, तो अलबर्ट एक्का जारी प्रखंड आइये. आज भी जारी प्रखंड के श्रीनगर में हर साल विजय दशमी के दिन इसकी एक मिशाल देखने को मिलती है. श्रीनगर में विजय दशमी के दिन शाम को जुलूस निकलने के ठीक पहले दुर्गा मंदिर के सामने सिकरी गांव निवासी मोहम्मद हनीफ मियां हरे रंग का झंडा गाड़ते हैं.
तत्पश्चात मुस्लिम रीति-रिवाज के अनुसार उस झंडे की इबादत की जाती है. उसके बाद हनीफ मियां झंडे को जमीन से उखाड़ कर अपने कंधे पर रखते हैं. इसके साथ ही विजयी दशमी की शोभायात्रा निकाली जाती है. यह परंपरा कोई एक दिन की नहीं है बल्कि वर्षों से चली आ रही है. लगभग 200 वर्ष पहले बरवे स्टेट के नरेश राजा हरिनाथ साय के समय से यह परंपरा शुरू हुई है.
परंपरा का निर्वाह आज भी हो रहा है. हनीफ मियां झंडा लिए आगे-आगे और पारंपरिक हथियार, गाजे-बाजे के साथ जुलूस में शामिल लोग पीछे-पीछे चलते हैं. इस बाबत हनीफ मियां बताते हैं कि यह परंपरा मेरे दादा-परदादा के समय से ही चली आ रही है. अगर राजा साहब की ओर से कोई रोक नहीं होती है तो यह परंपरा मेरे बाद में खानदान निभायेगा.
मुझसे पहले मेरे दादा मोहम्मद जैरकू खान इस परंपरा का निर्वाह करते थे. उन्होंने यह भी बताया कि यह सिलसिला उनके दादा के परदादा के समय से लगातार चल रहा है. उस समय बरवे स्टेट के नाम से यह क्षेत्र जाना जाता था, जो सरगुजा के महाराजा चामिंद्र साय को सौंपा गया था. राजा भानुप्रताप नाथ शाहदेव के निधन के पश्चात वर्तमान में इस परंपरा की देखरेख नये राजा अवधेश प्रताप शाहदेव कर रहे हैं.
शाहदेव के अनुसार जब तक हनीफ मियां यहां पर झंडे का फतिहा नहीं करते हैं. तब तक विजया दशमी का जुलूस नहीं निकलता है. सिकरी निवासी हनीफ मियां को पूजा का प्रसाद बनाने के लिए सारी सामग्री हिन्दू भाई देते हैं.
फातिहा के बाद प्रसाद का वितरण सभी मिल-जुल कर करते हैं. प्रसाद वितरण के बाद ही जुलूस सह शोभायात्रा की शुरुआत होती है और शोभायात्रा रावण दहन स्थल तक पहुंचता है. अवधेश प्रताप शाहदेव ने यह भी बताया कि मेरी जानकारी में मेरे 48 साल के जीवन में आज तक यहां कभी तनाव उत्पन्न नहीं हुआ है और न पहले कभी हुआ था.
यह हिन्दू-मुस्लिम के आपसी भाईचारे का एक मिशाल है. जारी प्रखंड के अलावा चैनपुर प्रखंड में भी हिंदू, मुस्लिम, इसाई सभी समुदाय के लोग विजयी दशमी के कार्यक्रम में भाग लेते हैं. बरवे क्षेत्र का यह इलाका वर्षों से आपसी प्रेम व भाईचारगी का मिशाल पेश करते आया है.
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