Rath Yatra | खरसावां, शचींद्र कुमार दाश : हरिभंजा में कल शनिवार की देर शाम चतुर्था मूर्ति प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र, देवी सुभद्रा व सुदर्शन की बाहुड़ा यात्रा निकाली गयी. भक्तों के समागम, जय जगन्नाथ की जयघोष, शंखध्वनी व पारंपरिक हुल-हुली के बीच भाई-बहन के साथ प्रभु जगन्नाथ अपने मौसी के घर गुंडिचा मंदिर से वापस श्रीमंदिर लौटे. सैकड़ों भक्तों ने श्रद्धा व उत्साह के साथ भगवान जगन्नाथ के नंदीघोष को खींच कर गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर तक पहुंचाया. आम भक्तों के साथ-साथ पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने भी प्रभु जगन्नाथ के रथ को खींचा. इस दौरान सभी धार्मिक रीति-रिवाजों को निभाया गया.

चतुर्था मूर्ति को लगाया गया छप्पन भोग

हरिभंजा में रथ पर प्रभु की महाआरती आरती हुई साथ ही अधरपणा व छप्पन भोग भी लगाया गया. इसके बाद चतुर्था मूर्ति को रथ से श्री मंदिर के गर्भ गृह में ले जाकर रत्न सिंहासन में आरुढ़ कर महाआरती की गयी. साथ ही भव्य श्रंगार किया गया. मौके पर प्रभु जगन्नाथ की ओर से मां लक्ष्मी को रसगुल्ला भेंट किया गया. बाहुड़ा रथ यात्रा के सभी धार्मिक रस्मों को मंदिर के मुख्य पुरोहित प्रदीप कुमार दाश, भरत त्रिपाठी समेत अन्य सेवायतों ने संपन्न कराया. मौके पर हरिभंजा के जमीनदार विद्या विनोद सिंहदेव, संजय सिंहदेव, राजेश सिंहदेव, पृथ्वीराज सिंहदेव समेत अन्य उपस्थित रहें.
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प्रभु जगन्नाथ ने मां लक्ष्मी को उपहार में दिये रसगुल्ले
बाहुड़ा यात्रा की समाप्ती पर हरिभंजा के मंदिर में प्रभु जगन्नाथ नें मां लक्ष्मी को उपहार में रसगुल्ले भेंट किये. मान्यता है कि 8 दिनों तक भाई-बहन के साथ गुंडिचा मंदिर में प्रभु जगन्नाथ के रहने के कारण मां लक्ष्मी प्रभु जगन्नाथ से नाराज हो जाती है. जब प्रभु जगन्नाथ 9वें दिन गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं, तो मां लक्ष्मी अंदर से दरवाजा बंद कर देती है. इसमें भी भक्तों की दो टोली रहती है. एक प्रभु जगन्नाथ के साथ तो दूसरा मां लक्ष्मी के साथ. इस दौरान पांच मीनट तक दोनों के बीच नोक-झोंक होती है. काफी मान-मनौवल के बाद मां लक्ष्मी अंदर से दरवाजा खोलती है. तब प्रभु जगन्नाथ मां लक्ष्मी को उपहार स्वरुप रसगुल्ले भेंट करते है. इस रस्म को भी मंदिर में निभाया गया. उपहार में मिले रसगुल्ले को भक्तों में प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है.
अब एक साल बाद मंदिर से बाहर निकलेंगे प्रभु जगन्नाथ

बाहुड़ा यात्रा के साथ आस्था, मान्यता व परंपराओं का त्योहार रथ यात्रा का समापन हो गया. अब श्रीमंदिर में ही अगले एक साल पर प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा की पूजा अर्चना नीति नियम के साथ की जायेगी. एक साल बाद अगले वर्ष रथ यात्रा पर पुन भक्तों को दर्शन देने के लिये महाप्रभु श्रीमंदिर से बाहर निकलेंगे.
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