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राम के सामने सूर्पनखा ने विवाह का प्रस्ताव रखा, लक्ष्मण ने नाक काटी…

खरसावां में दीदी दिव्यांशी की रामकथा सुनने काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे.

खरसावां.

खरसावां के बेहरासाही में नौ दिवसीय श्री रामकथा के सातवें दिन वृंदावन से आयीं कथावाचिका दीदी दिव्यांशी ने सूर्पनखा नकछेदन, सीताहरण, राम विलाप, राम-सबरी भेंट, राम हनुमान मिलन, राम सुग्रीव मित्रता की कथा सुनायी. दीदी दिव्यांशी ने कहा कि पंचवटी में जब रावण की बहन सूर्पनखा वहां पहुंचती है. राम के रूप को देखकर वह मोहित हो जाती है. वह राम के सामने विवाह का प्रस्ताव रखती है. राम अपनी विवाहित होने की बात बताने पर सूर्पनखा क्रोधित होकर सीता को अपनी शादी में बाधा मानकर लक्ष्मण पर झपटती है. लक्ष्मण उसे सजा देते हुए उसकी नाक काट देते हैं. इसके बाद रावण मायावी राक्षस मारीच के साथ मिलकर माता सीता के हरण की योजना तैयार करता है. रावण मारीच को स्वर्ण मृग बनाकर पंचवटी के लिए भेजता है. जहां पर भगवान श्री राम, माता सीता के कहने पर स्वर्ण मृग का पीछा करते हुए जंगल की ओर दौड़ पड़ते हैं. तभी राक्षस मारीच भगवान श्री राम की आवाज को धारण कर छोटे भाई लक्ष्मण को पुकारता है. इससे व्याकुल होकर माता सीता लक्ष्मण को भगवान श्री राम की रक्षा के लिए वन में भेज देती है. जहां पर रावण साधु का वेश धारण कर माता सीता को धोखे से हरण कर अपने साथ लंका ले जाता है. रास्ते में जटायु रावण से युद्ध कर माता सीता को छुड़ाने का प्रयास करता है लेकिन रावण अपनी चंद्रहास खड़क से जटायु का पंख काट देता है. सीता की खोज में भटकते राम, सीता का पता पूछते हुए जटायु से मिलते हैं. जटायु रावण से युद्ध करता है, लेकिन परास्त होकर राम को सीता का पूरा वृतांत बताता है. राम उसे अपने धाम भेजकर मुक्ति प्रदान करते हैं.

शबरी मगन है राम भजन में, राम दरस की आस है मन में….

मंच से शबरी मगन है राम भजन में, राम दरस की आस है मन में, देख लो राम को इस जीवन में, राम दरस की आस है मन में, शबरी मगन है राम भजन में पेश कर श्रद्धालुओं को झुमाया. दीदी दिव्यांशी ने कहा कि रावण ने माता सीता के हरण के बाद भगवान राम और लक्ष्मण जंगलों में भटकते हुए आगे बढ़ते हैं. तभी भगवान राम की भेंट श्री मतंग की परम शिष्य माता शबरी से होती है. भगवान माता शबरी को भक्ति प्रदान करते है. माता शबरी भगवान माता सीता की खोज के लिए सुग्रीव से भेंट करने को कहती है. शबरी से सीता जी जानकारी कर राम आगे ऋष्यमूक पर्वत की ओर प्रस्थान कर जाते हैं. यहीं राम-हनुमान मिलन होता है. राम सीता हरण के घटना की सारी बात बताते हैं. हनुमान जी राम व सुग्रीव की मित्रता कराते हैं. इसके बाद सुग्रीव ने उन्हें माता सीता को ढूंढने में सहायता का वचन देते हैं.

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