साहिबगंज : राजमहल की ट्रैप चट्टानें साढ़े 12 करोड़ वर्ष पूर्व ज्वालामुखी फटने के बाद उससे निकले लावा से बनी है. यह बातें नेशनल यूनिवर्सिटी मेक्सिको के प्रो लुइस अल्वा भैल्डीविया लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो केके अग्रवाल, डॉ गौरव जोशी, डॉ अमर अग्रवाल, डॉ रंजीत सिंह ने मंगलवार को बोरियो एवं बरहरवा क्षेत्र के चकाजो एवं अमडंडा क्षेत्र का दौरा करने के क्रम में कही. बोरियो के बंदरकोला मौजा में अवस्थित पहाड़ तथा पहाड़ों के दस स्थानों का नमूना लिया.
पूर्व के वैज्ञानिकों ने शोध से की भारत का भू-भाग उस समय के कालखंड में भूमध्य रेखा के ही दक्षिण में था. जैसा की भौतकी विज्ञान के सिद्धांतों से हम जानते है कि सभी पदार्थों में कुछ न कुछ चुमकत्व गुण रहते हैं और पृथ्वी भी चुमक्त्व गुण है और ये भी की पृथ्वी चुमकत्वीय गुण के आधार पर ही पृथ्वी के दक्षिण और पूर्वी ध्रुव को जाना जाता है. कालांतर में पृथ्वी वर्तमान में जो चट्टानों पृथ्वी पर बनी है या बन रही है को पृथ्वी अवशोषित कर संरक्षित कर लेती है.
चट्टानों के चुंबकीय गुणों के अध्यन को ही चुंबकीय विज्ञान कहा जाता है. यह शोध अध्यन दल राजमहल के विभिन्न पहाड़ों के सिंपल या नमूने को विदेशों के अति आधुनिक यंत्र के सहायता से अध्यन कर इनकी चुंबकीय गुण के अध्यन कर तथा इस समय उस काल के चुंबकीय के मान तथा दिशा की जानकारी लेने का प्रयास किया जायेगा. इस अध्यन शोध से राजमहल के चट्टानों का आयु निर्धारण और चुंबकीय गुणों का सटीक जानकारी प्राप्त किया जायेगा. यह शोध भविष्य में और भी विस्तार और यह दूसरे शोध करने वाले के लिये मदद करेगा या किया जा सकेगा. यह दल इसके लिये एक योजना बना कर राजमहल के पहाड़ियों में जो घटनायें सिमटी हैं उसे भू वैज्ञानिकों शिक्षकों छात्रों वैज्ञानिकों या आम नागरिकों को शोध के माध्यम से जानकारी देंगे. यह शैक्षणिक और शोध करने वाले के लिये महत्वपूर्ण है.