इसी संगठन ने 16 अक्तूबर को भोगनाडीह में कराया था सिदो-कान्हू की प्रतिमा का शुद्धिकरण कार्यक्रम, जुटे थे कई राज्यों से आदिवासी
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एसपीटी-सीएनटी एक्ट में संशोधन पर लौ-वीर बैसी का फरमान
इसी संगठन ने 16 अक्तूबर को भोगनाडीह में कराया था सिदो-कान्हू की प्रतिमा का शुद्धिकरण कार्यक्रम, जुटे थे कई राज्यों से आदिवासी बरहेट (साहिबगंज) : झारखंड विधानसभा में एसपीटी व सीएनटी एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव लाने के विरोध में सिदो-कान्हू लौ-वीर बैसी के सलाहकार समिति की बैठक भोगनाडीह पंचायत में समिति के संयोजक रूपचांद […]
बरहेट (साहिबगंज) : झारखंड विधानसभा में एसपीटी व सीएनटी एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव लाने के विरोध में सिदो-कान्हू लौ-वीर बैसी के सलाहकार समिति की बैठक भोगनाडीह पंचायत में समिति के संयोजक रूपचांद मुर्मू व मंडल मुर्मू के नेतृत्व हुई. सलाहकार समिति में एसपीटी व सीएनटी एक्ट के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा किया गया.
संयोजक रूपचांद मुर्मू व मंडल मुर्मू ने कहा कि इस एक्ट में अगर किसी प्रकार का संसोधन किया जाता है तो हमलोग एक और हूल का आह्वान करेंगे. आंदोलन को लेकर नीति तैयार किया गया. बैठक में यह प्रस्ताव लिया गया कि सरकार प्रत्येक साल भोगनाडीह में विकास मेले का आयोजन करती है और अपनी उपलब्धियां गिनाती है, किंतु इस बार भोगनाडीह में कोई भी सरकारी कार्यक्रम नहीं होने दिया जायेगा. साथ ही आम लोगों द्वारा कोई कार्यक्रम का आयोजन भोगनाडीह में किया जाता है
तो उसमें विधायक, सांसद, मंत्री को शामिल होने नहीं दिया जायेगा. जनप्रतिनिधियों को सामाजिक बहिष्कार किया जायेगा. आंदोलन में प्रखंड से लेकर राज्य स्तर पर चरणबद्ध तरीके से धरना दिया जायेगा. मौके पर डॉ सुशीला मरांडी (सेवानिवृत्त एडीएम), ऑगिस्टीन किस्कू, रवीनाथ टुडू, जेम्स मुर्मू के अलावा अन्य लोग मौजूद थे.
क्या है लौ-वीर बैसी
17 सितंबर में भोगनाडीह में पान का पीक फेंकने के बाद अशुद्ध हुई सिदो-कान्हू की प्रतिमा की शुद्धिकरण कराने के लिए 16 अक्तूबर को शुद्धिकरण कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए लौ-वीर बैसी नामक संगठन बना था. इस संगठन में अब तक न तो कोई अध्यक्ष है और न ही कोई सचिव या कोषाध्यक्ष. बावजूद इसके नेटवर्क का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि एक आह्वान पर 16 अक्तूबर को झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों से हजारों की संख्या में जगह-जगह नाकाबंदी के बावजूद हजारों आदिवासी भोगनाडीह पहुंचे थे.
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