World Tribal Day 2025: भगवान बिरसा मुंडा आज भी आदिवासियों के लोक नायक हैं. उन्हें आदिवासियों का लोक नायक इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने न केवल ब्रिटिश शासन, जमींदारी प्रथा और अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष किया, बल्कि आदिवासी समाज की अस्मिता, अधिकार और संस्कृति की रक्षा एवं पुनर्स्थापना के लिए भी असाधारण काम किये. बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को ‘उलगुलान’ (महाविद्रोह) के लिए संगठित किया. इसके बाद जल-जंगल-जमीन और पारंपरिक अधिकारों की रक्षा के लिए अंग्रेजों के खिलाफ व्यापक विद्रोह छेड़ दिया.
बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को किया जागरूक
बिरसा ने मुंडा सहित पूरे आदिवासी समुदाय को अपनी पहचान, धार्मिक-सांस्कृतिक अस्तित्व और आत्मसम्मान को बनाये रखने के लिए जागरूक किया. आदिवासियों को अपने धर्म, संस्कृति और परंपरा की ओर लौटने और मिशनरियों के प्रभाव से दूर रहने का संदेश दिया. उन्होंने आदिवासियों को अंग्रेजों की दासता और शोषण से मुक्त रहकर सम्मान से जीने की प्रेरणा दी. बिरसा के नेतृत्व में नयी सामाजिक-धार्मिक चेतना का निर्माण हुआ. इसके बाद उन्हें ‘धरती आबा’ (धरती के पिता) के रूप में पूजा जाने लगा.
भगवान की तरह पूजे जाते हैं बिरसा मुंडा
अंग्रेजों के खिलाफ आजादी जंग लड़ने वाले बिरसा मुंडा के योगदान और बलिदान को आज भी झारखंड, बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में भगवान की तरह पूजा जाता है. राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार, भहवान बिरसा मुंडा को समान महत्व देती है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने तो भगवान बिरसा के जन्मदिन को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाना शुरू कर दिया है. उनकी जयंती पर 15 नवंबर को हर साल विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.
विश्व आदिवासी दिवस से जुड़ी खबरें यहां पढ़ें
सामूहिक पहचान की सबसे सशक्त आवाज बिरसा
बिरसा मुंडा न केवल ऐतिहासिक स्वतंत्रता सेनानी, बल्कि आदिवासी समाज के लोकनायक और उनके अधिकारों के लिए जंग के प्रतीक भी माने जाते हैं. बिरसा मुंडा ने ‘अबुआ दिशोम, अबुआ राज’ (हमारा देश, हमारा शासन) आज भी आदिवासी स्वशासन, जंगल-जमीन के अधिकार और सामूहिक पहचान की सबसे सशक्त आवाज है.
जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनती है बिरसा जयंती
उनके संघर्ष और बलिदान ने आदिवासियों को अपनी जड़ों, रीति-रिवाज, संस्कृति और पारंपरिक न्याय प्रणाली के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी. इसलिए उनकी जयंती को राष्ट्रीय स्तर पर जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है. इससे उनका महत्व और बढ़ गया है. झारखंड के खूंटी जिले के उलिहातू में जन्मे बिरसा मुंडा को बििहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी क्षेत्रों में भी पूजा जाता है. इन राज्यों में उनके नाम पर कई संस्थान और स्मारक हैं. उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर विभिन्न सांस्कृतिक समारोहों के आयोजन होते हैं.
झारखंड की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
बिरसा के अनुयायी उनको स्मरण करके ही करते हैं किसी काम की शुरुआत
भगवान बिरसा का स्मरण करके ही किसी काम की शुरुआत करते हैं मुंडा समाज के लोग
मुंडा समाज के लोग अपने किसी भी काम की शुरुआत भगवान बिरसा मुंडा का स्मरण करके करते हैं. उनके उपदेशों का अनुसरण करते हैं. इससे समुदाय को एकता, आत्मसम्मान और सांस्कृतिक गौरव मिलता है. स्वशासन, सांस्कृतिक और आर्थिक न्याय के धरती आबा के सपनों को पूरा करने के लिए आज भी आंदोलन जारी है. यही वजह है कि बिरसा मुंडा की विरासत आज भी सामाजिक-राजनीतिक विमर्श में भी जीवंत है.
बिरसा मुंडा के आंदोलनों के प्रभाव
- आदिवासी अधिकारों की लड़ाई को बल : भगवान बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए विद्रोहों ने आदिवासियों को उनके प्राकृतिक संसाधनों और स्वायत्तता की रक्षा के लिए संगठित किया. इसके बाद ही आदिवासी समाज ने अपने हक के लिए आवाज उठायी.
- सांस्कृतिक और सामाजिक पुनरुत्थान : बिरसा मुंडा ने जंगल, जमीन और पारंपरिक रीति-रिवाजों की रक्षा के लिए संघर्ष किया, जिससे सांस्कृतिक चेतना भी पुनर्जीवित हुई. आज भी आदिवासी समाज में बिरसा मुंडा सामाजिक और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक हैं.
- राजनीतिक सक्रियता और नेतृत्व के विकास को बढ़ावा : आदिवासियों ने स्वशासन और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए आंदोलन जारी रखा. आधुनिक आदिवासी संगठनों, महासभाओं और नवयुवकों में बिरसा जैसे नेताओं की विचारधारा की छाया स्पष्ट है, जो राजनीतिक और सामाजिक नेतृत्व को मजबूत करती है.
- शिक्षा और चेतना में वृद्धि : आदिवासी युवाओं और समुदायों में अपने ऐतिहासिक संघर्षों के प्रति जागरूकता बढ़ी है. नयी पीढ़ी को अपने अधिकारों के प्रति जिम्मेदार और सक्रिय बनाया जा रहा है.
- आर्थिक और सामाजिक न्याय की मांगें : आदिवासी आंदोलनों ने आर्थिक शोषण, भूमि हड़पने और सामाजिक उत्पीड़न के खिलाफ लगातार आवाज उठायी है. आधुनिक समय में भी आदिवासी समुदाय इन मुद्दों के समाधान और अधिकारों के लिए संगठित होकर आंदोलन करते हैं.
- स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों की पहचान : आदिवासी आंदोलनों ने स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों की भूमिका को उजागर किया है, जिससे वे राष्ट्रीय फलक पर अपने उचित स्थान के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
बिरसा के संदेश से आदिवासियों के जीवन में आये ये बदलाव
कुल मिलाकर भगवान बिरसा मुंडा और अन्य आदिवासी नायकों के आंदोलन आदिवासी समाज को न केवल राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों के लिए लड़ाई का मार्ग दिखाते हैं, बल्कि सांस्कृतिक आत्मसाक्षरता, सामाजिक एकता और आधुनिक आदिवासी चेतना के केंद्र भी हैं. यह विरासत आज भी आदिवासी समाज के संगठनों, आंदोलनों और सामूहिक संघर्षों में जीवंत है. यह उनकी सामाजिक-राजनीतिक स्थिति सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.
इसे भी पढ़ें
आदिवासियों के बारे में नहीं जानते होंगे ये 7 बातें, जानकर दांतों तले दबा लेंगे उंगलियां
World Tribal Day 2025: भारत के राष्ट्रीय आदिवासी नायक
झारखंड में 2 दिन प्रचंड वर्षा की चेतावनी, जानें कहां-कहां कहर बरपायेगा मानसून
World Tribal Day 2025: पीएम मोदी के ‘मन’ को भायी संथाली साहित्यकार धर्मेजय हेंब्रम की रचना

