सुतिर्थ सागर जी महाराज ने समझाया पिच्छी का आध्यात्मिक महत्व
रांची. दिगंबर जैन संत आचार्य 108 सूरत्न सागर जी महाराज के प्रभावक शिष्य 108 श्री सुतिर्थ सागर जी महाराज का प्रवचन रविवार को आयोजित हुआ. प्रवचन से पूर्व मंगलाचरण और मुनिश्री का पिच्छिका परिवर्तन सम्पन्न हुआ. पुरानी पिच्छिका श्वेता सिद्धार्थ काशलीवाल परिवार को प्राप्त हुई. पाद प्रक्षालन का सौभाग्य नंदलाल, सुधीर कुमार और संदीप कुमार छाबड़ा परिवार को मिला, जबकि मुनिश्री को शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य सुनील कुमार, अनिल कुमार चांदूवाड़ परिवार को प्राप्त हुआ. प्रवचन में मुनिश्री ने बताया कि जैन मुनिराजों द्वारा धारण की जाने वाली ‘पिच्छी’ (मयूर पिच्छिका) जैन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह अहिंसा के महाव्रत व संयम की पहचान का प्रतीक है. पिच्छी का प्रमुख उपयोग जीव-रक्षा के लिए होता है. मुनिराज जब किसी स्थान पर बैठते, सोते या चलते हैं, तो वे उस स्थान को पिच्छी से धीरे-धीरे साफ करते हैं, ताकि कोई सूक्ष्म जीव या कीड़ा अनजाने में कुचला न जाए. मोर के पंख अत्यंत कोमल होते हैं, जिससे जीवों को हानि नहीं पहुंचती और वे केवल हट जाते हैं. मुनिश्री ने बताया कि मुनिराज भौतिक वस्तुओं का त्याग करते हैं और पिच्छी उन कुछ स्वीकृत उपकरणों में से एक है, जो यह दर्शाती है कि वे न्यूनतम संपत्ति रखते हैं. यह पिच्छी उन्हीं मोर पंखों से बनायी जाती है, जिन्हें मोर स्वाभाविक रूप से गिराते हैं. किसी जीवित मोर को मारा या उसके पंख नहीं तोड़े जाते, इसलिए इसमें हिंसा नहीं होती. पिच्छी संयम का अनिवार्य उपकरण मानी जाती है. प्राचीन जैन ग्रंथों (जैसे मूलाचार) के अनुसार, एक दिगंबर जैन साधु बिना पिच्छी के सात कदम भी नहीं चल सकते. पिच्छी उन्हें हर क्रिया में सावधानी बरतने की याद दिलाती है. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि माना जाता है कि मोर ऐसा प्राणी है जो रति क्रिया नहीं करता और मोरनी मोर के आंसू पीकर गर्भवती होती है. इसलिए ब्रह्मचर्य के आराधक मुनियों के लिए मोर पंख की पिच्छी विशेष रूप से उपयुक्त मानी जाती है. मोर पंख धूल और अन्य कणों को आसानी से नहीं पकड़ते, जिससे वे अपेक्षाकृत साफ रहते हैं और बार-बार सफाई की आवश्यकता नहीं होती. मुनिश्री ने कहा कि संक्षेप में पिच्छी जैन मुनि के जीवन मूल्यों अहिंसा, अपरिग्रह और संयम का मूर्त रूप है. मुनिराजों की तपस्या का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि सर्दी हो या गर्मी, उनकी तपस्या में कोई अंतर नहीं आता. उन्होंने कहा कि जैन धर्म सबसे प्राचीन धर्म है और इसे आगे कैसे ले जाया जाए, इसे लेकर उन्होंने सरल शब्दों में दिशा निर्देश दिए. महिलाओं से उन्होंने आग्रह किया कि वे घर में बच्चों को संस्कार दें और उनके प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करें, ताकि एक सुदृढ़ भविष्य का निर्माण हो सके.इस अवसर पर पूर्व अध्यक्ष पूरणमल सेठी, वर्तमान कार्यकारिणी सदस्य, बाहर से आए अतिथि तथा अध्यक्ष प्रदीप बाकलीवाल, मंत्री जीतेंद्र छाबड़ा, माणिकचंद काला, नरेंद्र पांड्या, प्रमोद झांझरी, कैलाशचंद बड़जात्या, चेतन पाटनी, टिकमचंद छाबड़ा, सुबोध बड़जात्या, मनोज काला, मीडिया प्रभारी राकेश काशलीवाल, सौरभ विनायक्या, राजेश छाबड़ा सहित अन्य उपस्थित थे.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

