प्रवीण मुंडा, रांची. उत्तरी बंगाल में लगभग 400 चाय बागान हैं. इन क्षेत्रों में सरोगेसी के लिए बालिकाओं की तस्करी का ट्रेंड बढ़ा है. मानव तस्कर 16 से 19 वर्ष की लड़कियों को फंसाकर सरोगेसी के लिए बेच रहे हैं. ब्रिटिश डिप्टी हाई कमीशन के कोलकाता में हुई कार्यशाला में पश्चिम बंगाल की पत्रकार सुनीता जायसवाल ने बताया कि ऐसे मामले सामने आये हैं, जिसमें पीड़िता को बच्चे पैदा करने के लिए बेचा गया. मानव तस्करों ने नवजात बच्चे को बेच दिया और फिर से पीड़िता को किसी और ने भी खरीद लिया. इस तरह एक ही लड़की कई बार बेची और खरीदी जा रही है. उनके साथ हो रहे शोषण का यह अंतहीन सिलसिला जैसा है. झारखंड भी है मानव तस्करी से पीड़ित राज्य : झारखंड में भी इस तरह के मामले यदा-कदा होते रहे हैं. मानव तस्करी व बाल श्रम के खिलाफ काम करनेवाले सामाजिक कार्यकर्ता बैजनाथ कहते हैं कि कुछ वर्ष पहले बसिया क्षेत्र की एक लड़की को बच्चे पैदा करने के लिए बेच दिया गया था. इस तरह के और भी मामले यहां हो सकते हैं पर पीड़ित परिवार कमजोर वर्गों से आते हैं इसलिए ज्यादातर मामले में रिपोर्ट दर्ज नहीं होती. बैजनाथ कहते हैं- पहले मानव तस्कर झारखंड की लड़कियों को दिल्ली और अन्य महानगरों में बंधुआ मजदूरी और दाई का काम करने के लिए भेजते थे. कोरोना के बाद से यहां भी ट्रेंड बदला है. अब लड़कियां दक्षिण भारत के शहरों में भेजी जा रही हैं. इन लड़कियों को कपड़ा या अन्य उद्योगों में काम करने के लिए भेजा जाता है. इन लड़कियों को रोजगार के नाम पर भेज तो दिया जाता है पर वहां जाकर ये लड़कियां बंधुआ मजदूर बन जाती हैं. इन्हें बिना वेतन के खटाया जाता है. अभी हाल फिलहाल में ही दक्षिण के शहरों से बड़ी संख्या में लड़कियों को सरकार की पहल पर मुक्त कराकर लाया गया है. सरकार व स्वयंसेवी संस्थाओं की पहल से रेस्क्यू की गयी लड़कियों के पुनर्वास की कोशिश चल रही है. पर अभी भी मानव तस्करी पर अंकुश के लिए काफी कुछ किया जाना बाकी है.
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