कथावाचक इंद्रेश जी महाराज ने सुनाये श्रीकृष्ण का लीला
नामकुम.
टाटीसिलवे इइएफ मैदान में चल रहे श्रीमद भागवत कथा के चौथे दिन भक्ति व श्रद्धा का अद्भुत संगम देखने को मिला. कथावाचक इंद्रेश जी उपाध्याय ने श्रीकृष्ण लीला के विभिन्न प्रसंगों का वर्णन किया. श्रद्धालु भाव-विभोर हो गये. भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का प्रसंग सुनते ही वातावरण नंद के घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की के जयकारों से गूंज उठा. महाराज जी ने बताया कि जब-जब धरती पर अधर्म और अन्याय बढ़ता है, तब भगवान स्वयं अवतरित होते हैं. श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ, जहां उनके माता-पिता वसुदेव व देवकी कैद में थे. बाल गोपाल प्रकट होते ही अंधकारमय पूरा कारागार प्रकाश से जगमगा उठा.इंद्रेश जी उपाध्याय ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण की माखन चोरी लीला केवल एक बाल लीला नहीं, बल्कि गहरा आध्यात्मिक संदेश देता है. जिस प्रकार ग्वालबाल व गोपियां श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं, उसी तरह हमें भी अपने हृदय में भक्ति को स्थान देना चाहिए. बताया कि प्रत्येक मनुष्य को जीवन में चार ऋण (देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण, मानव ऋण) चुकाने होते हैं. उन्होंने सभी ऋण का वर्णन किया. महाराज जी ने कहा मांसाहार मनुष्य के क्रोध और अहंकार को बढ़ाता है जबकि सात्त्विक भोजन से मन और आत्मा शुद्ध होता है, जिससे आध्यात्मिक उन्नति संभव होती है. कहा भारतीय संस्कृति में पत्नी को पति का सम्मान करना सिखाया गया है. पति-पत्नी का संबंध प्रेम, विश्वास और समर्पण पर आधारित होता है. पति को परमेश्वर मानने का अर्थ है कि उसमें ईश्वर का अंश देखना और पारिवारिक जीवन को प्रेममय बनाना.
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