Jharkhand Village Story: रांची, गुरुस्वरूप मिश्रा-गांव-गिरांव का नाम लेते ही अक्सर गरीबी और बदहाली की तस्वीरें दिलो-दिमाग में तैरने लगती हैं. ऐसी छवि उभरने लगती है, जहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव हो. विकास से कोसों दूर हो. गांव को लेकर आप भी ऐसा ही सोचते हैं, तो झारखंड का आरा केरम गांव आपका भ्रम तोड़ देगा. ये आदर्श गांव ग्रामीणों की एकजुटता से विकास की नयी गाथा लिख रहा है. नशाबंदी, लोटाबंदी, टांगीबंदी, चराईबंदी और श्रमदान के बाद सबसे खास देसी तकनीक से जल संरक्षण और प्रबंधन के क्षेत्र में इस गांव ने राष्ट्रीय पहचान बनायी है. पीएम नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में जल प्रबंधन के लिए इस गांव के लोगों की सराहना की थी. झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने गांव में बदलाव देख कर एक लाख रुपए का इनाम दिया था.
आदर्श ग्राम की आबादी है 700
राजधानी रांची से करीब 30 किलोमीटर दूर ओरमांझी प्रखंड की टुंडाहुली पंचायत का आरा केरम आदर्श ग्राम है. 130 घर और 700 की आबादी. हरे-भरे जंगलों और पहाड़ों की तराई में बसे इस गांव की खूबसूरती देखते ही बनती है. इस गांव में प्रवेश करते ही आपको आदर्श ग्राम में होने का अहसास होगा. साधारण गांव से आदर्श ग्राम तक का सफर आसान नहीं था. जंगल बचाने की छोटी सी पहल धीरे-धीरे रंग लाने लगी. वक्त के साथ गांव के विकास का रंग गाढ़ा होता गया और गांव की फिज़ा बदल गयी.
आरा केरम में आपका स्वागत है
मुस्कुराइए! आप नशामुक्त ग्राम आरा केरम में प्रवेश कर रहे हैं. सड़क की बायीं ओर नीले रंग का यह बोर्ड आपको बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है. गांव में साफ-सफाई देखते ही बनती है. श्रमदान कर महिला-पुरुष गांव की साफ-सफाई करते हैं. श्रमदान और महिला समूह की ताकत ने इस गांव की रंगत बदल दी है. ग्रामीणों ने कई बड़े कार्य चुटकी में कर लिए. सामूहिक जागरूकता और एकजुटता के बल पर गांव की तस्वीर बदल गयी है. हरे-भरे जंगल, जल संरक्षण और प्रबंधन की देसी तकनीक ने इस गांव को पानीदार बना दिया. आज यहां सालोंभर खेती होती है.

गांव की असाधारण महिलाएं
नीलम, मोनिता, पैरो, करमी, सीमा, शुभंती, देवंती, लीला, सिलेश्वरी, अनीता, कैरो, फूटन और सुनीता देवी जैसी दर्जनों महिलाओं को आप देखेंगे तो सहसा यकीन नहीं होगा कि ये साधारण वेशभूषे में असाधारण महिलाएं हैं. निरक्षर और पांचवीं से स्नातक तक पढ़ीं ये महिलाएं झारखंड के 32 हजार से अधिक गांवों की महिलाओं के लिए रोल मॉडल हैं.
अनोखे गांव की अनोखी महिलाएं
झारखंड का ये इकलौता गांव है, जहां की ग्रामसभा काफी मजबूत है. इसके इशारे के बिना यहां कोई कार्य नहीं होता. वर्ष 2016 से हर गुरुवार को पूरा गांव एक साथ बैठता है और विकास की रूपरेखा तय करता है. हर रविवार को सखी मंडल की महिलाएं बैठक कर तरक्की के लिए मंथन करती हैं. व्यक्तिगत विकास की जगह सामूहिक विकास पर जोर दिया जाता है. ये शायद पहला गांव है, जहां नव जागृति समिति की साप्ताहिक बैठक में हर परिवार पांच रुपए की बचत करता है.
महिला समूह की ताकत से बदली तस्वीर
वर्ष 2016 में महिला समूह का गठन हुआ. हर रविवार को बैठक कर महिलाएं बचत करने लगीं. गांव, घर और समाज की बेहतरी की चर्चा करने लगीं. अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा और स्वच्छता पर जोर देने लगीं. महिलाओं की जागरूकता का असर हुआ कि सभी बच्चे स्कूल जाने लगे. महिलाओं ने खुद से बांस का कूड़ेदान बनाया. प्रमुख जगहों पर इसे रखा गया, ताकि खुले में कूड़ा नहीं फेंका जाए. बचत से कई बड़े कार्य किए जाने लगे. गांव में शौचालय बने और उसका इस्तेमाल भी ग्रामीणों ने करना शुरू किया.
शराबबंदी के लिए महिलाओं ने खोला मोर्चा, बना दिया नशामुक्त गांव
आरा केरम वर्ष 2016 से पहले अन्य गांवों की तरह ही था. शराब के नशे में ग्रामीण चूर रहते थे. इसका खामियाजा महिलाएं और बच्चों को भुगतना पड़ता था. गांव का विकास भी रुका हुआ था. जंगल बचाने के बहाने वर्ष 2016 में महिलाएं जागरूक हुईं और नशामुक्ति अभियान चलाना शुरू किया. यह काम उतना आसान नहीं था, लेकिन जिद और संघर्ष के बलबूते महिलाओं ने गांव को नशामुक्त बना दिया. शराबबंदी के लिए महिलाएं घर से बाहर निकलीं. हर उस घर में गयीं, जहां शराब बनती थी. पहले तो बात मान-मनौव्वल से शुरू हुई, पर जब शराब बनाने वाली महिलाएं नहीं मानीं, तो महिलाओं ने बल प्रयोग भी किया. शराब बनाने और सेवन करने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई की जाने लगी. आखिरकार शराब बेचने वाली महिलाएं मान गयीं. अब शराब बनाना और बिक्री का काम बंद हो गया. अब कोई शराब नहीं पीता. गांव नशामुक्त बन गया.

शराबबंदी से मिली पहली जीत
कभी शराब के नशे में डूबा रहने वाला गांव अब दूध बेचता है. खेती के साथ-साथ गौ पालन, बकरी, सूकर व मछली पालन से लोग आर्थिक रूप से मजूबत हो रहे हैं. वर्ष 2016 में झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी की ओर से सखी मंडल का गठन किया गया. दीदियां बचत कर जागरूक होने लगीं. इसका असर हुआ कि उन्होंने शराबबंदी को लेकर नशामुक्ति अभियान चलाया और कड़ी मशक्कत के बाद गांव को नशामुक्त बना दिया.
ग्रामसभा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता
400 एकड़ से अधिक वन क्षेत्र वाले इस गांव में टांगीबंदी और चराईबंदी जैसे सख्त नियम के उल्लंघन पर आर्थिक दंड का प्रावधान है. जंगल से पेड़ काटना तो दूर, लोग दातून भी नहीं तोड़ते. हजारीबाग के पर्यावरण प्रेमी महादेव महतो की पहल पर पहली बार 14 अप्रैल 2015 को वन रक्षाबंधन पर्व मनाया गया. ग्रामसभा के बिना एक पत्ता नहीं हिलता.
देसी तकनीक से रोका झरने का पानी
बड़का पहाड़ के झरने का पानी पहले यूं ही बहकर दूसरे गांव में चला जाता था. इससे उपजाऊ मिट्टी का कटाव भी होता था और सिंचाई के लिए गांव में पानी की किल्लत हो जाती थी. गांव का पानी गांव में थामने का निर्णय लिया गया. दो महीने तक महिलाओं ने श्रमदान कर लूज बोल्डर स्ट्रक्चर (एलबीएस) के जरिए 400 चेकडैम बना दिए. अब गांव का पानी गांव में रहता है. ग्रामीणों के सहयोग से कुल 700 चेकडैम बनाए गए हैं. करीब एक करोड़ का काम इन्होंने चुटकी में कर दिखाया.

आरा केरम के ग्रामीणों से सीखिए जल प्रबंधन
आरा केरम के ग्रामीणों ने बेहतर जल प्रबंधन के जरिए देशभर में झारखंड का नाम रोशन किया है. इस गांव में डीप बोरिंग करना सख्त मना है. जल संरक्षण के लिए महिलाओं ने 30 एकड़ में करीब 1500 ट्रेंच कम बंड (टीसीबी) बनाए. मनरेगा और श्रमदान से इसे बनाया गया. सामूहिक प्रयास से 60 एकड़ में करीब 3 हजार ट्रेंच कम बंड (टीसीबी) बनाए गए हैं. वर्ष 2016 में 45 और वर्ष 2018 में 20 यानी 65 डोभा का निर्माण किया गया था. सभी घरों में सोख्ता गड्ढे बनाए गए हैं. चापाकलों के पास भी सोख्ता गड्ढे हैं. इसके जरिए भी पानी रोकने का प्रयास किया गया है. लूज बोल्डर स्ट्रक्चर, टीसीबी, डोभा, सोख्ता गड्ढा, मेड़बंदी और वृक्षारोपण कर महिलाओं ने आरा-केरम को पानीदार बना दिया. सीमा देवी बताती हैं कि 2016 से पहले 10 फीट पर पानी मिलता था, लेकिन अब 4-5 फीट पर ही पानी मिल जाता है.
अब साल में चार खेती
पहले साल में 10-20 एकड़ में सिर्फ धान की होती थी, लेकिन अब सालभर में 60 एकड़ से अधिक में चार खेती होती है. 95 फीसदी आबादी आजीविका के लिए कृषि और पशुपालन पर निर्भर है. हर रोज ड़ेढ़ टन से अधिक सब्जी की बिक्री होती है. शिमला मिर्च, तरबूज, और टमाटर का अच्छा उत्पादन होता है. पारंपरिक खेती के बजाय आधुनिक खेती से किसान अच्छी उपज करते हैं.
ग्रामसभा के पैसे से किए गए विकास के कई कार्य
ग्रामसभा के पास अपना फंड है. इससे बदलाव के कई कार्य किए गए हैं. यहां आठवीं तक सरकारी स्कूल है. चार पारा टीचर समेत 12 शिक्षक हैं. आठ शिक्षक ग्राम सभा द्वारा रखे गए हैं. इन्हें मानदेय ग्रामसभा देती है. करीब 40 बच्चों का हॉस्टल है. हॉस्टल का निर्माण भी ग्रामसभा द्वारा कराया गया है.
मन की बात कार्यक्रम में पीएम मोदी ने की थी सराहना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में 28 जुलाई 2019 को मन की बात कार्यक्रम में जल प्रबंधन के लिए रांची के ओरमांझी प्रखंड के आरा केरम गांव के लोगों की सराहना की थी. झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने गांव में बदलाव देख एक लाख रुपए का इनाम दिया था. उन्होंने घोषणा की थी कि राज्य में 1000 गांव इसी गांव की तर्ज पर बनेंगे.
जंगल बचाने की जिद से गांव में आया बदलाव : रमेश बेदिया
ग्राम वन प्रबंधन एवं संरक्षण समिति के अध्यक्ष और टुंडाहुली पंचायत के मुखिया रमेश बेदिया कहते हैं कि गांव को एकजुट करने में जंगल ने अहम भूमिका निभाई. इसे बचाने के लिए पहली बार हम सब एकजुट हुए. बैठक करने लगे. धीरे-धीरे जंगल के अलावा दूसरी बातों पर भी चर्चा होने लगी. इससे ग्रामीणों में जागरूकता आने लगी. गांव के पास 400 एकड़ वनक्षेत्र है. इसमें तीन एकड़ साठ डिसमिल प्राकृतिक वन क्षेत्र है. 31 एकड़ क्षेत्र में वन विभाग द्वारा वन लगाए गए हैं. शुरुआती दौर में वन सुरक्षा समिति को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा. जंगल के बहाने एकजुटता से गांव की सूरत बदल गयी.
सामूहिक निर्णय से ही आया गांव में बदलाव : दुबेश्वर बेदिया
मुंबई के दिशोम दा लीडरशिप स्कूल से फेलोशिप कर चुके दुबेश्वर बेदिया कहते हैं कि सामूहिक निर्णय से ही गांव में बदलाव आया है. ये सफर उतना आसान नहीं था, काफी संघर्ष भी करना पड़ा, लेकिन एकजुटता से ग्रामीणों ने इसे कर दिखाया. इसी की परिणाम है कि झारखंड समेत कई राज्यों से लोग गांव का मॉडल देखने आते हैं और प्रभावित होते हैं.
जल संरक्षण की देसी तकनीक को पीएम ने भी सराहा : सीमा देवी
इंटरमीडिएट पास सीमा देवी कहती हैं कि पहले यह गांव शराब के लिए बदनाम था. महिलाओं के साथ रोज मारपीट की जाती थी. गांव काफी पिछड़ा था. वर्ष 2016 में महिलाओं में एकजुटता से जागरूकता आने लगी. शराबबंदी, लोटाबंदी, श्रमदान, चराईबंदी, कुल्हाड़ीबंदी, नसबंदी और महाराष्ट्र में जल संरक्षण की तकनीक देखने के बाद देसी तकनीक से झरने का पानी रोक कर जलस्तर बढ़ाया गया. प्रधानमंत्री ने उनके कार्यों की सराहना की. इससे उनका हौसला बढ़ा है.
सफल किसान हैं रामदास महतो
किसान रामदास महतो ने अपनी मेहनत से न सिर्फ अपने संघर्षपूर्ण जीवन को आसान बनाया, बल्कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी. वे खुद पांचवीं तक पढ़े हैं, लेकिन अपने बच्चों की पढ़ाई में उन्होंने कोई कमी नहीं होने दी. बड़े बेटे को जहां इंजीनियरिंग पढ़ाया, वहीं बेटी को बीआईटी से पॉलिटेक्निक कराया. अन्य दो बेटे-बेटियों को भी अच्छी शिक्षा दी. पहले वह दैनिक मजदूर थे. करीब तीन दशक पहले रामदास ने खेती-बाड़ी की शुरुआत की थी. मौसम के हिसाब से खेती करने लगे. इसका फायदा हुआ और आमदनी बढ़ने लगी. आज एक सफल किसान हैं. रामदास कहते हैं कि खेती करना उनके लिए काफी फायदेमंद रहा. उन्नत तकनीक से खेती कर किसान खुशहाल हो सकते हैं.
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