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वनाधिकार पट्टा पर एक जून से एक माह तक चलेगा जागरूकता अभियान, झारखंड में 28107 दावे खारिज

Forest Rights News: जनजातीय कार्य मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को लिखे पत्र में कहा कि यह अभियान राज्य और जिला स्तर पर जिला एफआरए प्रकोष्ठों और परियोजना प्रबंधन इकाइयों के नेतृत्व में चलाया जाना चाहिए. इसमें एफआरए को लागू करने में अनुभव रखने वाले गैर सरकारी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों और समुदाय-आधारित संगठनों के साथ सहयोग करने का आह्वान किया गया.

Forest Rights News:केंद्र सरकार ने झारखंड समेत सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से कहा है कि वे वनाधिकार कानून यानी वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) पर एक महीने तक जागरूकता अभियान चलायें, ताकि लोगों को इसके बारे में जानकारी मिल सके. कानून को लागू करने में सुधार हो और आदिवासी समुदायों एवं अन्य पारंपरिक वनवासियों के बीच व्यापक भागीदारी सुनिश्चित हो सके. सरकार ने एक जून 2025 से एक महीने तक यह अभियान चलाने को कहा है. झारखंड समेत कई राज्यों के द्वारा लाखों वनाधिकार पट्टों के दावों को खारिज किये जाने के बाद यह सलाह दी है.

राज्य और जिला स्तर पर अभियान चलाने का आह्वान

जनजातीय कार्य मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को लिखे पत्र में कहा कि यह अभियान राज्य और जिला स्तर पर जिला एफआरए प्रकोष्ठों और परियोजना प्रबंधन इकाइयों के नेतृत्व में चलाया जाना चाहिए. इसमें एफआरए को लागू करने में अनुभव रखने वाले गैर सरकारी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों और समुदाय-आधारित संगठनों के साथ सहयोग करने का आह्वान किया गया.

दावा दायर करने की प्रक्रिया पर केंद्रित होगा अभियान

जनजातीय कार्य मंत्रालय के अनुसार, अभियान हितधारकों को उनके व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकारों, एफआरए प्रक्रिया में ग्राम सभाओं की भूमिका और दावे दायर करने की प्रक्रियाओं के बारे में जागरूक करने पर ध्यान केंद्रित करेगा. अन्य सुझायी गयी गतिविधियों में एफआरए भूमि अधिकारों (पट्टों) का वितरण, एफआरए लाभार्थियों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड और कृषि संबंधी जानकारी प्रदान करना, उनका आधार नामांकन, उन्हें पीएम-किसान जैसी योजनाओं से जोड़ना और लंबित दावों को निपटाने के लिए साप्ताहिक बैठकें आयोजित करना शामिल हैं.

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कई विभागों के साथ समन्वय बनाने की सलाह

मंत्रालय ने राज्य सरकारों से जिला अधिकारियों, कृषि, मत्स्य पालन, पंचायती राज जैसे संबंधित विभागों के साथ समन्वय कर तुरंत योजना बनाने को कहा है. वन अधिकार अधिनियम, 2006, आदिवासियों और वन-आश्रित समुदायों के उस भूमि पर अधिकारों को मान्यता देता है, जिस पर वे पीढ़ियों से रह रहे हैं और जिसकी रक्षा कर रहे हैं. हालांकि, इसके कार्यान्वयन में उल्लंघन के मामले सामने आये हैं. नीति विशेषज्ञों का दावा है कि बड़ी संख्या में दावों को गलत तरीके से खारिज कर दिया गया.

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कोर्ट ने दावों की समीक्षा का 2019 में दिया था निर्देश

वर्ष 2019 में, एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 17 लाख से अधिक ऐसे परिवारों को बेदखल करने का आदेश दिया, जिनके एफआरए दावे खारिज कर दिये गये थे. देशव्यापी विरोध के बाद, अदालत ने फरवरी 2019 में आदेश पर रोक लगा दी और खारिज दावों की समीक्षा का निर्देश दिया. हालांकि, कई आदिवासी और वन-आश्रित समुदायों का आरोप है कि समीक्षा प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण रही तथा केंद्र और राज्य सरकारें कानून को ईमानदारी से लागू करने में विफल रहीं.

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51 लाख से अधिक दावे मिले, 1 तिहाई से अधिक खारिज

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष 31 जनवरी तक अधिनियम के तहत 51 लाख से अधिक दावे प्राप्त हुए, जिनमें से एक तिहाई से अधिक दावे खारिज कर दिये गये. सर्वाधिक दावे छत्तीसगढ़ (9.41 लाख) में प्राप्त हुए. उसके बाद ओडिशा (7.20 लाख), तेलंगाना (6.55 लाख), मध्यप्रदेश (6.27 लाख) और महाराष्ट्र (4.09 लाख) का स्थान रहा. छत्तीसगढ़ दावों को खारिज करने में शीर्ष पर है. यहां 4 लाख से अधिक दावे खारिज किये गये. मध्यप्रदेश ने 3.22 लाख से अधिक दावे खारिज किये हैं. महाराष्ट्र ने 1.72 लाख, ओडिशा ने 1.44 लाख और झारखंड ने 28,107 दावों को खारिज किया है.

किस राज्य में कितने दावे आये, कितने हुए खारिज

क्रमराज्य का नामदावे आयेदावे खारिज
1छत्तीसगढ़9.41 लाख4.00 लाख से अधिक
2ओडिशा7.20 लाख1.44 लाख से अधिक
3तेलंगाना6.55 लाखNA
4मध्यप्रदेश6.27 लाख3.22 लाख से अधिक
5महाराष्ट्र4.09 लाख1.72 लाख से अधिक
6.झारखंडNA28,107

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