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Azadi Ka Amrit Mahotsav: सुखेंदु शेखर मिश्रा ने मानभूम में किया था अंग्रेजों की नाक में दम

हम आजादी का अमृत उत्सव मना रहे हैं. भारत की आजादी के लिए अपने प्राण और जीवन की आहूति देनेवाले वीर योद्धाओं को याद कर रहे हैं. आजादी के ऐसे भी दीवाने थे, जिन्हें देश-दुनिया बहुत नहीं जानती वह गुमनाम रहे और आजादी के जुनून के लिए सारा जीवन खपा दिया. झारखंड की माटी ऐसे आजादी के सिपाहियों की गवाह रही है.

Azadi Ka Amrit Mahotsav: आजादी की लड़ाई परवान चढ़ाने के लिए चास के सुखेंदु शेखर मिश्र ने अपना जीवन समर्पित कर दिया था. वह तत्कालीन मानभूम जिला के हुड़ा थाना क्षेत्र में विशेष तौर पर सक्रिय थे. वहां ब्रिटिश पुलिस की नाक में दम कर रखा था. अतुल मिश्र, किस्टो चौधरी इनके सहयोगी हुआ करते थे. हुड़ा में डाकखाना जलाने, पुलिस स्टेशन पर हमला एवं रेलवे लाइन को नष्ट करने के बाद इतने चर्चित हो गये कि पुलिस ने इनकी गिरफ्तारी के लिए चारों तरफ जाल बिछा दिया. हुड़ा के थानेदार से इनकी मित्रता थी. उसी मित्रता की आड़ में थानेदार ने इनकी गिरफ्तारी के लिए चाल चली.

योजनाबद्ध तरीके से पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया. पहले बांकीपुर जेल, फिर हजारीबाग जेल में रखा गया. जेल जाने से इनकी मां शोकाकुल रहने लगी एवं बीमार पड़ गयीं. इनसे मिलने के लिए सुखेंदु शेखर को सात दिनों की पेरोल मिली. मां की इच्छा बनारस जाने की थी. उन्हें वहां भेजा भी गया, पर उसी दौरान उनकी मृत्यु हो गयी. मिश्रा को जेल में भोला पासवान शास्त्री के साथ रहने का मौका मिला था. वे इन्हें गुरुजी कहते थे. जब मुख्यमंत्री बने, तब इनसे मिलने चास आये. जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे, तब इन्हें ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया.

किसी प्रकार के लोभ-लालच में नहीं पड़े

सुखेंदु शेखर मिश्र को केंद्र सरकार ने रेलवे का पास दिया था. एक अटेंडेंट के साथ. लेकिन कभी भी उसका उपयोग नहीं किया. वे सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करने वालों में थे. उन्हें रवींद्र संगीत काफी पसंद था. वह अपने बच्चों को आदर्श नागरिक बनने तथा सभ्यता-संस्कृति की शिक्षा देते थे. उनमें किसी प्रकार का लोभ-लालच नहीं था. एकबार उनके पुत्र वासुदेव मिश्र ने कहा कि इतने ऊंच पद पर हैं. इसका राजनीतिक लाभ लेना चाहिए. इस पर उन्होंने बड़े ही साफ शब्दों में कहा : बेटा, मैंने किसी स्वार्थ के लिए आंदोलन नहीं किया. देशभक्त हूं. कोई भी लाभ उठाउंगा तो मेरा संघर्ष व्यर्थ चला जायेगा. आजादी के बाद इनका सामाजिक योगदान भी काफी रहा. पुपुनकी में विद्यालय की स्थापना करायी. अस्पताल बनाने के लिए जमीन दान कर दी थी.

सुखेंदु शेखर मिश्र को तीन पुत्र वासुदेव मिश्र, वाचस्पति मिश्र एवं बुद्धदेव मिश्र एवं तीन पुत्री वसुंधरा, विजया एवं सीमा थे. वाचस्पति की एक सड़क हादसे में मृत्यु हो गयी थी. तब इनका पुत्र रंजू मिश्र महज तीन-चार वर्ष का था. सुखेंदु शेखर मिश्रा मूलतः चास प्रखंड के पुपुनकी गांव के निवासी थे. हरिहर मिश्र के पांच पुत्रों में वह चौथे नंबर पर थे. बड़े पुत्र अरदेंदु शेखर मिश्र जमींदार थे. दूसरे नंबर पर पुर्णेंदु शेखर मिश्र सेल्स टैक्स में कमिश्नर थे. तीसरे पुत्र शरदेंदु शेखर संस्कृत के प्रकांड विद्वान एवं वेद-वेदांत में एमए थे तथा घाटशिला उच्च विद्यालय में शिक्षक थे. सबसे छोटे पुत्र का नाम था प्रणविंदु मिश्र. सुखेंदु शेखर की एकमात्र बहन थी लुतु बाला. उनका विवाह दुगदा में हुआ. इनकी मां सुशीला देवी राजमहल के कमालपुर गांव की थी. इनकी शिक्षा-दीक्षा उच्च विद्यालय कतरास से हुई थी.

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