रांची. हर घर स्वदेशी, घर-घर स्वदेशी के संकल्प को जन-जन तक पहुंचाने के लिये शुक्रवार को रांची के जैप वन, डोरंडा में खादी महोत्सव-2025 का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का आयोजन खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआइसी), सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किया गया. इसमें मुख्य अतिथि केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री सह रांची सांसद संजय सेठ, केवीआइसी अध्यक्ष मनोज कुमार और विधायक सीपी सिंह भी उपस्थित थे.
नवभारत यात्रा से शुरू हुआ आयोजन
कार्यक्रम की शुरुआत आत्मनिर्भर नवभारत यात्रा से हुई, जो शौर्य सभागार से गोरखा चौक तक निकाली गयी. इसमें स्कूली छात्र-छात्राओं, खादी कारीगरों और स्थानीय लोगों ने भाग लिया. इसके बाद कुम्हार सशक्तिकरण योजना के तहत विद्युत चालित चाक और कारीगरों को इलेक्ट्रिशियन टूल किट का वितरण किया गया.
आर्मी कैंटीन से जुड़ेंगे खादी उत्पाद
मुख्य अतिथि संजय सेठ ने कहा कि जल्द ही आर्मी कैंटीन में खादी और ग्रामोद्योग के उत्पाद उपलब्ध होंगे. सैनिकों को शहद, साबुन, शैंपू और खादी वस्त्र जैसे उत्पाद मिलेंगे. उन्होंने पूर्व सैनिकों से भी केवीआइसी की योजनाओं से जुड़ने की अपील की.
खादी पर जीएसटी समाप्त, रोजगार में बढ़ोतरी
केवीआइसी अध्यक्ष मनोज कुमार ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में स्वदेशी अभियान को नयी गति मिली है. हाल ही में खादी उत्पादों पर जीएसटी समाप्त किया गया है, जिससे उत्पादन और बिक्री में तेजी आयी है. वित्त वर्ष 2024-25 में खादी और ग्रामोद्योग का उत्पादन ₹1.16 लाख करोड़ और बिक्री ₹1.70 लाख करोड़ रही, जिससे दो करोड़ लोगों को रोजगार मिला. पिछले 11 वर्षों में उत्पादन चार गुना, बिक्री पांच गुना और रोजगार 49% बढ़ा है.
राज्य में पीएमइजीपी से 73 हजार से अधिक रोजगार सृजित
राज्य की उपलब्धियों पर उन्होंने बताया कि झारखंड की 22 खादी संस्थाओं के माध्यम से 2903 कारीगरों को रोजगार मिला है. पिछले पांच वर्षों में ₹95.10 करोड़ का उत्पादन और ₹212.80 करोड़ की बिक्री दर्ज की गयी. प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमइजीपी ) के तहत राज्य में 8620 नयी इकाइयां स्थापित हुईं, जिनके लिये ₹215.82 करोड़ की अनुदान राशि दी गयी. इससे 73 हजार से अधिक रोजगार सृजित हुए. ग्रामोद्योग विकास योजनाओं के तहत 2862 लाभार्थियों को 4891 मशीनें और टूल किट दिये गये. मधुमक्खी पालन, कुम्हारी चाक, इमली प्रसंस्करण, फल प्रसंस्करण, बांस-केन शिल्प, चमड़ा उद्योग, अगरबत्ती निर्माण और सबई घास के बर्तन जैसे कार्यों से हजारों लोग जुड़े हैं.
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