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Ranchi News : झारखंड के वनों में मौसमी बदलाव की होगी वैज्ञानिक निगरानी

झारखंड के वनों में मौसमी बदलावों की वैज्ञानिक और सटीक निगरानी के उद्देश्य से मंगलवार को इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी), बीआइटी मेसरा और झारखंड वन विभाग के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये गये.

इसरो, बीआइटी मेसरा और वन विभाग के बीच फेनोकैम आधारित परियोजना को लेकर एमओयू

सैटेलाइट और फेनोकैम तकनीक के माध्यम से झारखंड के वनों की मौसमी निगरानी को मिलेगी नयी दिशा

रांची. झारखंड के वनों में मौसमी बदलावों की वैज्ञानिक और सटीक निगरानी के उद्देश्य से मंगलवार को इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी), बीआइटी मेसरा और झारखंड वन विभाग के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये गये. इसके तहत राज्य में ‘फेनोकैम आधारित वन फेनोलॉजी मॉनिटरिंग प्रोग्राम’ की शुरुआत की जायेगी, जिसमें उपग्रह आंकड़ों के साथ ग्राउंड आधारित फेनोकैम तकनीक का समन्वय किया जायेगा. कार्यक्रम के दौरान एनआरएससी, इसरो, बीआइटी मेसरा और झारखंड वन विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अधिकारी उपस्थित रहे. बीआइटी मेसरा के रिमोट सेंसिंग और जियोइन्फॉर्मेटिक्स विभागाध्यक्ष डॉ वीएस राठौड़ ने कहा कि पर्यावरणीय शोध में शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी एजेंसियों के बीच सहयोग समय की मांग है. एनआरएससी कोलकाता के वैज्ञानिक डॉ नीरज प्रियदर्शी ने परियोजना की तकनीकी जानकारी साझा करते हुए बताया कि फेनोकैम सेंसर और सैटेलाइट डेटा के समन्वित उपयोग से वनस्पति में होने वाले मौसमी परिवर्तनों की वास्तविक और सतत निगरानी संभव हो सकेगी. इसरो मुख्यालय, बेंगलुरु से जुड़े वैज्ञानिक डॉ गिरीश पुजार ने इस पहल को जलवायु परिवर्तन की समझ और वन प्रबंधन में महत्वपूर्ण बताया. एनआरएससी हैदराबाद के निदेशक डॉ प्रकाश चौहान ने कहा कि फेनोलॉजिकल निगरानी वनस्पति की जलवायु प्रतिक्रिया को समझने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. झारखंड सरकार के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) परितोष उपाध्याय ने कहा कि यह परियोजना वन प्रबंधन को और अधिक वैज्ञानिक व डेटा-संचालित बनायेगी. क्षेत्रीय रिमोट सेंसिंग केंद्र (इसरो) के मुख्य महाप्रबंधक डॉ एसके श्रीवास्तव ने सैटेलाइट डेटा के स्थानीय और क्षेत्रीय उपयोग की संभावनाओं पर प्रकाश डाला.

क्या है फेनोकैम?

फेनोकैम एक स्थायी डिजिटल कैमरा प्रणाली है, जिसे वनों में स्थापित किया जाता है. यह पेड़ों की हरियाली, पत्तियों के उगने, फूलों के खिलने और झड़ने जैसे मौसमी परिवर्तनों की नियमित फोटो कैप्चर करता है. जब इसे उपग्रह डेटा से जोड़ा जाता है, तो वन स्वास्थ्य का मूल्यांकन, जलवायु संबंधी चेतावनी संकेतों की पहचान और सैटेलाइट डेटा का स्थलीय सत्यापन करना संभव हो जाता है. इस परियोजना के अंतर्गत वन फेनोलॉजी की निगरानी के अलावा जलवायु अनुसंधान, कार्बन उत्सर्जन विश्लेषण और जैव विविधता संरक्षण जैसे क्षेत्रों में उपयोगी डेटा जुटाया जायेगा, जो राज्य के पर्यावरणीय नीति निर्माण और संरक्षण कार्यक्रमों को सशक्त करेगा.

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