इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता अनिल कुमार सिन्हा व अधिवक्ता सौरभ अरुण ने पक्ष रखा. उन्होंने खंडपीठ को बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा कर्नाटक राज्य बनाम उमा देवी व अन्य के मामले में पारित आदेश के आलोक में राज्य सरकार ने अस्थायी कर्मियों की सेवा नियमितीकरण के लिए नियमावली बनायी है. इसमें कट ऑफ डेट 10 अप्रैल 2006 निर्धारित करते हुए संविदा, दैनिक कर्मी के रूप में 10 वर्ष कार्य करनेवाले अस्थायी कर्मियों काे नियमित करने का प्रावधान किया गया है, जो उचित नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के विपरीत है. उल्लेखनीय है कि अस्थायी कर्मियों की सेवा के नियमितीकरण को लेकर अनिल कुमार सिन्हा व अन्य की अोर से याचिका दायर की गयी है. राज्य सरकार के अधीनस्थ अनियमित रूप से नियुक्त व कार्यरत कर्मियों की सेवा नियमितीकरण नियमावली -2015 को चुनौती दी है.
उक्त नियमावली में अस्थायी कर्मियों की नियमितीकरण का कट ऑफ डेट 10 अप्रैल 2006 निर्धारित किया गया है. प्रार्थियों ने इस तिथि को चुनाैती दी है. याचिका में यह भी कहा गया है कि 15 नवंबर 2000 को झारखंड का गठन हुआ था. सरकार द्वारा नियमितीकरण के लिए जो कट अॉफ डेट तय किया गया है, उससे एकीकृत बिहार के समय नियुक्त कर्मियों को लाभ मिलेगा. झारखंड में नियुक्त होनेवाले कर्मी लाभ से वंचित हो जायेंगे. सरकार के स्वास्थ्य विभाग में संविदा के आधार पर पांच वर्ष काम करनेवाले अस्थायी कर्मियों, चिकित्सकों एवं पारा मेडिकल कर्मियों को नियमित करने का प्रावधान किया गया है.