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आगमन का पुण्यकाल-22 : माता- पिता से प्रेम करें

घर में सुबह से ही बड़ी चीख-पुकार मची थी. दरवाजे के पीछे एक वृद्ध औरत सिकुड़ी सकुचाई सी आंसू बहा रही थी. इधर दीपक अपनी बीवी को बार-बार समझा रहा था कि मां ऐसा नहीं कर सकती. दरअसल टेबल पर रखी बहुरानी की कीमती अंगूठी कहीं गुम हो गयी थी. पत्नी चिल्ला रही थी- यह […]

घर में सुबह से ही बड़ी चीख-पुकार मची थी. दरवाजे के पीछे एक वृद्ध औरत सिकुड़ी सकुचाई सी आंसू बहा रही थी. इधर दीपक अपनी बीवी को बार-बार समझा रहा था कि मां ऐसा नहीं कर सकती. दरअसल टेबल पर रखी बहुरानी की कीमती अंगूठी कहीं गुम हो गयी थी. पत्नी चिल्ला रही थी- यह बुढ़िया वहीं बैठी थी, इसी ने मेरी अंगूठी चुराई है. बेचारी मां बेबस सी अपने बेटे की तरफ आस लगा कर देख रही थी. बहुरानी ने समाज के आगे उसकी इज्जत उछालने में कोई कसर छोड़ी ही नहीं थी़
दीपक समझदार था़ उसने पत्नी को शांत करते हुए बताया – जब मैं बहुत छोटा था, उसी समय पिता का देहांत हो गया़ तब से मां ने दूसरों के घरों में बर्तन धो कर और झाड़ू लगा लगा कर मुझे पाला है़ मुझे याद है कि वह मुश्किल से एक वक्त के खाने का इंतजाम कर पाती थी़ आज जब मैं दो रोटी कमाने लायक हो गया, तो क्या यह भूल जाऊं कि मां ने मेरे लिए न जाने अपनी कितनी इच्छाओं का गला घोंटा है? आज उम्र के इस पड़ाव पर आकर क्या मेरी मां को एक अंगूठी का लालच होगा? अगर अपनी मां पर शक किया, तो भगवान मुझे नरक में भी जगह नहीं देगा़
ईश्वर सब जगह विद्यमान नहीं हो सकते, इसलिए उन्होंने हमें मां- बाप दिया है़ वे भगवान का रूप होते है़ं धिक्कार है ऐसे लोगों पर, जो उनके बुढ़ापे का सहारा भी नहीं बन सकते. वे बच्चों को पाल- पोस के बड़ा करता हैं और बदले में मांगते क्या हैं? बुढ़ापे में दो वक्त खाना और अपने बच्चों का प्यार.
इस आगमन काल में हम माता- पिता से प्रेम करने और उनका सम्मान करने का प्रण करें. याद रखें कि हम बड़े हो रहे हैं, जबकि वे बूढ़े हो रहे है़ं
-फादर अशोक कुजूर, डॉन बॉस्को यूथ एंड एजुकेशनल सर्विसेज बरियातू के निदेशक

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