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प्रभात खबर से विशेष बातचीत : बोले सुदेश, आम-आवाम, किसान-छात्र-नौजवान के एजेंडे पर हमने सरकार को हमेशा किया आगाह

झारखंड के मुद्दों पर होना चाहिए चुनाव सरकार जनता से चुन कर आती है, फिर शासन के लिए बीडीओ-सीओ, थानेदार को लगा देती है गांव का गवर्मेंट कौन है, तो ब्लॉक ऑफिस़ बीडीओ सीओ, थानेदार और दूसरे अफसर ही उनके लिए सरकार हैं भाजपा से अलग राह पकड़ आजसू पूरी ताकत के साथ चुनावी अभियान […]

झारखंड के मुद्दों पर होना चाहिए चुनाव
सरकार जनता से चुन कर आती है, फिर शासन के लिए बीडीओ-सीओ, थानेदार को लगा देती है
गांव का गवर्मेंट कौन है, तो ब्लॉक ऑफिस़ बीडीओ सीओ, थानेदार और दूसरे अफसर ही उनके लिए सरकार हैं
भाजपा से अलग राह पकड़ आजसू पूरी ताकत के साथ चुनावी अभियान में लगा है़ अब तक आजसू ने 40 से ज्यादा सीटों पर प्रत्याशी दे दिये है़ं आजसू अध्यक्ष सुदेश कुमार महतो का कहना है : वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगा.
पहले गठबंधन के लिए कुर्बानी दी़ बात केवल सीट की नहीं थी, स्वाभिमान की है़ पार्टी के नेतृत्वकर्ता के रूप में जवाबदेही निभा रहे है़ं सरकार में रहते हुए सदन से सड़क तक संघर्ष किया़ जनता के सवालों पर सरकार को सचेत करते रहे़ एक सच्चे साथी की भूमिका निभायी़ झामुमो को भी आजसू ने सुदेश ने आड़े हाथों लिया़
Q विधानसभा चुनाव में आजसू ने नारा दिया है, अबकी बार गांव की सरकार. इसके पीछे की अवधारणा-एप्रोच क्या है?
गांव की सरकार, यह अवधारणा या सोच नयी नहीं है़ देश की आजादी के समय से यह चल रही है़ महात्मा गांधी ने स्वराज का नारा दिया था़ यह महज राजनीतिक नारा नहीं था. इसके पीछे बड़ी सोच थी़ यह सोच गांव की सरकार की थी़ सत्ता-शासन गांव के लोगों के हाथों में रहे, यही सोच थी़ गांव के चौपाल का निर्णय, सरकार का निर्णय बने़ इसी सोच से महात्मा गांधी ने स्वराज की कल्पना की थी़ पिछले कई महीनों में मैंने राज्य के पांच हजार गांवों का दौरा किया़ पदयात्रा कर गांव तक पहुंचा.
मैं गांवों के लोगों तक पहुंच कर पिछले एक साल से उनसे बात कर रहा हू़ं उनकी सोच क्या है, गांव चाहते क्या है़ं मैंने गांव के चौपाल के स्वर सुने है़ं गांव के लोगों का मानना है कि वर्तमान सिस्टम ही उनके विकास में सबसे बड़ी बाधा है़ इस सिस्टम में आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत है़ पुराने सिस्टम को बदल कर गांव के अनुकूल सिस्टम बनाने की जरूरत है़ सत्ता में शीर्ष पर बैठे तीन-चार लोग गांव और ग्रामीणों पर सबकुछ थोप नहीं सकते है़ं सरकार चुन कर आती है, फिर गांव में शासन के लिए बीडीओ, सर्कल आॅफिसर, थानेदार को लगा देती है़ लोकतंत्र में जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है, लेकिन सिस्टम उसी जनता पर शासन करने लगता है़ पंचायत में ग्रामसभा है़ ग्राम सभा का निर्णय ऊपर तक जाना चाहिए़ गांव किस तरह की विकास योजना चाहता है, वही शासन की प्राथमिकता होनी चाहिए़
Q आप यह बदलाव किस तरह लायेंगे, गांव के एजेंडे क्या होंगे?
चुनाव के बाद गांव के लोग सरकार को खोजते है़ं उनके लिए सरकार कौन है़ गांव का गवर्मेंट कौन है, तो ब्लॉक ऑफिस़ बीडीओ-सीओ, थानेदार और दूसरे अफसर ही उनके लिए सरकार है़ं ये कितने सुगम हैं, कितनी सहजता से इन तक गांव की पहुंच है़ इस पर विचार होना चाहिए़ लोकतंत्र में यह रोल बदलना होगा़ आज योजनाएं सरकार तय कर रही हैं, गांव का अपना प्लान हो़ नाली बनेगी, सड़क बनेगी, पीने का पानी जरूरी है या फिर डोभा की आवश्यकता है, गांव को तय करने दे़ं
Q पंचायती राज व्यवस्था की अवधारणा तो पहले से है, आप सरकार में भी रहे, क्यों नहीं लागू कराया?
मैंने अपने कार्यकाल में पंचायत चुनाव कराया़ बिहार से अलग होने के बाद पंचायत चुनाव नहीं हुआ था़ गांव की सरकार को मान्यता मिली़ मैंने सरकार में रहते हुए कई विभागों के अधिकार पंचायतों को दिये़
Q विभाग पंचायतों को अधिकार देने में आनाकानी करते रहे़ ऐसे हालात में पंचायतों को कैसे अधिकार मिलेगा?
मेरे कार्यकाल में आठ विभागों ने पंचायतों को अधिकार दिया़ यह सही है कि सरकार के विभाग पंचायत को अधिकार नहीं दे रहे है़ं बाद के शासन में यह व्यवस्था और कमजोर हुई है़ कुछ काम हुए, लेकिन पंचायती राज व्यवस्था का पूरा सिस्टम लागू नहीं हो पाया़ जिन विभागों को अपना अधिकार छोड़ना था, वह नहीं कर पाये़ इसलिए मैं कहता हूं कि व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन होना चाहिए़
Q आप गांव की बात करते हैं, आपने कितने उम्मीदवार गांव से दिये?
मेरे 90 प्रतिशत उम्मीदवार गांव के लोग है़ं उनकी सोच, उनकी अवधारणा गांव के विकास से जुड़ी है़ मेरे उम्मीदवार ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते है़ं गांव से उनका सरोकार है़
Q आप अब तक आधी सीट पर चुनाव लड़ रहे है़ं इस चुनाव से आजसू को क्या उम्मीद है ?
अभी कहना मुश्किल होगा़ पूरे राज्य में 45-50 सीटों पर हम ही चुनाव लड़ रहे है़ं राज्य में भाजपा के बाद सबसे अधिक सीटों पर आजसू ही चुनाव लड़ रहा है़ चुनाव ही नहीं लड़ रहे, बल्कि मजबूती से लड़ रहे है़ं आनेवाले चुनाव में आजसू बड़ी पार्टी बन कर उभरेगा.
Q सरकार में आपकी पांच वर्षों तक साझेदारी चली़ झारखंड के एजेंडे आप सरकार में क्यों नहीं लागू करा पाये?
हम तो अपनी बात बता ही सकते है़ं मेरी भूमिका सुझाव देने की थी़ आम-अावाम की बातें हों, किसान की बात हो, छात्र-नौजवान के एजेंडे हों, समय-समय पर हमने सरकार को आगाह किया़ हमारे विधायकों ने हाउस के माध्यम से, मंत्री ने कैबिनेट के माध्यम से सरकार तक बातें पहुंचायी़ मानना, नहीं मानना उनका काम था़ अच्छा दोस्त वही है, जो समय रहते आपको आगाह कर दे़ हमें जब लगा कि सड़क पर उतर कर अपनी बातें रखना चाहिए, तो सड़क पर उतरे़ कई ऐसे विषय आये, जिसमें हमलोगों ने सड़क पर उतर कर बात रखी़ सड़क से सदन तक हमने संघर्ष किया. झारखंड के एजेंडे को सामने लाया़ सरकार ने तब हमारी नहीं सुनी़ सरकार बैकफुट पर आयी, लेकिन विपक्ष के सामने आने के बाद़
Q कई मामले में आपकी बातें नहीं सुनी गयीं, तब अलग क्यों नहीं हो गये?
तब ना मंच था, ना पंच था़ हम किस पंच तक अपनी बात रखते़
Q सरकार में साथ चले, एक झटके में गठबंधन तोड़ दिया?
एक झटके में कहां तोड़ दिया़ 2014 में ही हम साथ लड़े थे़ पहले तो हम अकेले ही लड़ते रहे़ हमने सरकार में हर समय साथ दिया़ जब भी जरूरत पड़ी सुदेश महतो खड़ा रहा़ हमारे राजनीतिक एजेंडे पर चोट होने लगी, तो क्या करता़
Q लोगों का कहना है कि आजसू की महत्वाकांक्षा ज्यादा हो गयी?
महत्वाकांक्षा किसके पास नहीं है़ उनकी पार्टी तो दो से चली थी, 300 पार आ गये़ यह उनकी महत्वाकांक्षा नहीं थी़ हर व्यक्ति का अधिकार है कि वह महत्वाकांक्षा पाले़ मैं पार्टी चला रहा हू़ं उसकी भी कोई शर्त है़ नेतृत्वकर्ता के रूप में हमारी भी कोई जवाबदेही है़ पार्टी के प्रति मेरा भी कोई दायित्व है़ उससे मैं बाहर कैसे रह सकता हू़ं लड़ाई को मुकाम तक पहुंचाने की जवाबदेही पार्टी ने दी है़
Q आपको कम सीटें मिल रही थीं, इसलिए गठबंधन तोड़ दिया?
केवल गठबंधन में सीट शेयरिंग विषय नहीं था़ स्वाभिमान पर चोट हो, तो विचार करना पड़ता है़
Q सिल्ली में भाजपा उम्मीदवार नहीं दे रही है, आप भी जमशेदपुर पूर्वी में उम्मीदवार नहीं देंगे?
मैंने तो आग्रह किया है कि भाजपा सिल्ली से उम्मीदवार दे़ उनकी पार्टी है, उनको निश्चित रूप से लड़ना चाहिए़ जहां तक जमशेदपुर पूर्वी का मामला है, तो मैंने तो पहले ही कहा है कि सरयू राय अपना एजेंडा बतायें, फिर पार्टी विचार करेगी़
Q स्थानीयता की नीति को लेकर आपका क्या स्टैंड है़ आपको खामी दिखती है, तो फिर सरकार में रहते क्या किया?
हमने जो कुछ भी सरकार में रह कर कहा है, उसके लिखित रिकॉर्ड है़ं आपके पास भी रिकॉर्ड होंगे. सर्वदलीय बैठक बुलायी गयी थी, तो हमने लिखित सुझाव सरकार को दिया़ हम स्थानीयता को नये सिरे से परिभाषित करेंगे़
Q सीएनटी-एसपीटी का आप सड़क पर विरोध करते रहे, सरकार में रहते हुए आपने क्या किया?
सीएनटी-एसपीटी में जब सरकार ने संशोधन किया, तो हमने लिखित दिया़ मेरे मंत्री ने कैबिनेट में विरोध किया़ अपनी बातें रखी़ं हमारे विधायक हाउस में बोले़ किसी पार्टी ने वो नहीं किया, जो हमने किया़
Q भाजपा क्या केंद्रीय योजनाओं की उपलब्धियों को बता रही है?
सुबह-सुबह अखबार, मीडिया देखता हूं, उसी से लगता है कि चुनाव में राज्य के मुद्दे नहीं आ रहे़ नेशनल एजेंडा लेकर कुछ लोग जा रहे है़ं
Q आप वर्ष 2000 से भाजपा के साथ हैं, तब की भाजपा और आज की भाजपा में क्या फर्क देख रहे हैं?
मुझे अटल जी, आडवाणी जी, जार्ज फर्नांडीस जी के साथ जुड़ कर काम करने का मौका मिला़ ये जन नेता थे़ ये बड़ी जमात का नेतृत्व करनेवाले संवेदनशील लोग थे़ फर्क तो पड़ा है़ भाजपा के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सकारात्मक पहल की है. इनका नेतृत्व बेहतर रहा है़ लेकिन अब चुनाव प्रबंधन का विषय हो गया है़ प्रबंधन से चुनाव परिणाम तक जाने की कोशिश हो रही है़ जनता से जुड़ने के बजाय, प्रबंधन पर जोर है़ पंच और मंच में दूरी बढ़ी है़
Q भाजपा ने तो झारखंड में राजनीति के पैटर्न बदले, सिलबेस बदला़ गैर आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाया?
मुख्यमंत्री कोई भी बन सकता है़ इसके लिए कोई राजनीतिक शर्त नहीं है़
Q मूलवासी मुख्यमंत्री बने, आनेवाले दिनों में यह आपकी शर्त होगी?
मेरी कोई शर्त नहीं है़ उनके नेतृत्व को तय करना है़ यह मेरा विषय नहीं है़
Q आप वर्ष 2000 में उभर कर आये़ राज्य आप जैसे युवा नेता में संभावना देख रहा था़ ऐसा नहीं है कि आप हमेशा गठबंधन में सिमटे रहें?
ऐसा नहीं है़ मैं कह रहा हूं कि 2014 से पहले हम कभी साथ नहीं लड़े़ मंत्री रहते हमने 2004 में संसदीय चुनाव लड़ा़ मैं खुद चुनाव मैदान में उतरा़ अर्जुन मुंडा की सरकार थी, हम हटिया का उपचुनाव अकेले लड़े़ ऐसा नहीं है कि हम गठबंधन के दायरे में रहे़ इस राज्य के लिए एक दल के नेतृत्वकर्ता के रूप में हमेशा झारखंडी मानस के भावनाओं के अनुरूप काम किया़ पहले अनुभव होता था, जैसे कश्मीर से सेब आता है, टाटा से लोहा आता है, उसी तरह दिल्ली से नेता आते है़ं पहले लगता था कि दिल्ली में नेताओं के उत्पादन का कारखाना है़ इसके बाद हमने राज्य में नेतृत्व को आगे बढ़ाने की कल्पना की़ अपनी मिट्टी से नेता आने चाहिए़
Q पांच वर्षों तक आपने राज्य में स्थिर सरकार चलाने में सहयोग दिया़ सरकार के कामकाज से कितना संतुष्ट हैं?
मैंने हमेशा सरकार बनाने में साथ दिया़ सुदेश नहीं होता तो सरकार नहीं होती़ 2000 में अकेले थे, तो सरकार बनवायी. 2004 में दो लोग थे, तो सरकार बनवायी. 2009 में पांच लोग थे, तो सरकार बनवायी. कांग्रेस-झामुमो ने निर्दलीय को मुख्यमंत्री बनवाया़ फिर क्या हुआ, सबको मालूम है़ 2014 में हमने कुर्बानी दी़ हमने सीटिंग सीट भाजपा को दी. सहयोगी कहते हैं कि उन्होंने हमें गिरिडीह सीट दी़ पहले हमने त्याग की परंपरा दिखायी थी़ इस सरकार ने राज्य के मूलभूत विषय को हिलाया है़ बिजली कितनी दे रहे हैं, गांव को बिजली मिल रही या नही़ं कितने घंटे मिल रही है़ पारा शिक्षक, सहिया, जल सहिया के साथ हमार बर्ताव कैसा है़ न्यूनतम वेज भी नहीं देते़ झारखंड देश का पहला ऐसा राज्य है, जिसने अपनी स्वायत्तता के लिए इतनी लंबी लड़ाई लड़ी हो़ उनके सम्मान के लिए हमने उन्हें फ्रीडम फाइटर का दर्जा देने का संकल्प लिया है़ आप सीएनटी-एसपीटी को छेड़ेंगे, वह भी बिना सहमति लिये, तो स्वाभिमान पर चोट होगा़
Q सरकार का कोई अच्छा काम, जो याद हो?
याद करना पड़ रहा है़
Q झामुमो व आजसू झारखंड के आंदोलन से उपजी पार्टियां हैं, फिर अब इतना दुराव क्यों?
झामुमो की आप एक उपलब्धि बता दे़ं शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन तीन बार सरकार में रहे़ केंद्र में मंत्री रहे, कोल मिनिस्टर रहे़ लेकिन झामुमो के नेताओं ने नरसिंहा राव की सरकार में जो किया, उसके लिए जाने जाते है़ं हमारा परिचय है कि हमारा अगुवा नेता झारखंड के लिए पहले दिन विधानसभा से इस्तीफा दे देता है़
Q झामुमो तो कहता है कि आप सत्ता में रह कर मलाई खाते रहे?
यह उनकी भाषा हो सकती है, मेरी भाषा यह नहीं है़ सत्ता उनके लिए मलाई हो सकती है, मेरे लिए तो सेवा है़ विरासत में राजनीति मिली है, अभी और सीखने की जरूरत है़ हम संघर्ष से आये हैं, वो बाप-दादा की कमाई खा रहे है़ं

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