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रांची : विकास योजनाओं के 5153 करोड़ पड़े हैं सिविल डिपोजिट में

शकील अख्तर रांची : विकास की विभिन्न योजनाओं से जुड़ी 5153.68 करोड़ रुपये की राशि सिविल डिपोजिट में पड़ी है. राज्य गठन के दूसरे वित्तीय वर्ष में यह राशि सिर्फ 178.14 करोड़ रुपये थी, जो वित्तीय वर्ष 2017-18 तक बढ़ कर 5153.68 करोड़ रुपये हो गयी. यानी वित्तीय वर्ष 2002-03 की तुलना में 2017-18 तक […]

शकील अख्तर
रांची : विकास की विभिन्न योजनाओं से जुड़ी 5153.68 करोड़ रुपये की राशि सिविल डिपोजिट में पड़ी है. राज्य गठन के दूसरे वित्तीय वर्ष में यह राशि सिर्फ 178.14 करोड़ रुपये थी, जो वित्तीय वर्ष 2017-18 तक बढ़ कर 5153.68 करोड़ रुपये हो गयी. यानी वित्तीय वर्ष 2002-03 की तुलना में 2017-18 तक सिविल डिपोजिट में पड़ी राशि में 28.93 गुना की वृद्धि हुई. राज्य सरकार के वित्तीय आंकड़ों से इस बात की जानकारी मिलती है.
राज्य सरकार हर वित्तीय वर्ष के अंत में बजटीय प्रावधान में वैसी राशि निकाल लेती है, जिसे वह उस वित्तीय वर्ष में खर्च नहीं कर सकती है. साथ ही अंतिम दिनों में निकासी की गयी राशि को सिविल डिपोजिट में रखती है. ऐसा वह संबंधित योजनाओं की राशि को लैप्स होने से बचाने के लिए करती है. यह झारखंड ट्रेजरी कोड के प्रावधानों के खिलाफ है.
ट्रेजरी कोड में निहित प्रावधानों के तहत वित्तीय वर्ष के अंत तक किसी राशि के खर्च नहीं होने की स्थिति में उसे निकाल कर सिविल डिपोजिट में रख देना गलत है. ऐसा करने से किसी योजना के पूरा या शुरू हुए बिना ही उस योजना के लिए स्वीकृत राशि बजटीय आंकड़ों में खर्च दिखायी जाती है.
इसके बावजूद राज्य सरकार ने पहले वित्तीय वर्ष से ही विकास योजनाओं का पैसा निकाल पर सिविल डिपोजिट में रखना शुरू किया. वित्तीय नियमों का उल्लंघन कर सिविल डिपोजिट में रखी गयी राशि को दूसरे वित्तीय वर्ष में खर्च कर योजनाओं को पूरा या शुरू करती है. हालांकि राशि लैप्स होने से बचाने के लिए एक वित्तीय वर्ष में जितनी राशि सिविल डिपोजिट में रखी गयी, उतनी राशि दूसरे वर्ष खर्च नहीं की जा सकी. इससे सिविल डिपोजिट की राशि लगातार बढ़ती गयी. वित्तीय वर्ष 2002-03 से 2007-08 तक की अवधि में सिविल डिपोडिट में हर साल 1000 करोड़ रुपये से कम रखे गये. वर्ष 2008-09 से 2015-16 तक की अवधि में एक से दो हजार करोड़ रुपये हर साल सिविल डिपोजिट में रखे गये.
लेकिन 2016-17 से सालाना 2000 करोड़ रुपये से अधिक राशि सिविल डिपोजिट में रखी जाने लगी. आंकड़ों के अनुसार, राज्य के पहले वित्तीय वर्ष (2001-02) में सरकार ने 130.14 करोड़ रुपये सिविल डिपोजिट में रखे. वित्तीय वर्ष 2002-03 में 363.83 करोड़ रुपये सिविल डिपोजिट में रखा गया. वित्तीय वर्ष 2002-03 में सिविल डिपोजिट में जमा कुल 493.97 करोड़ में 315.83 करोड़ रुपये खर्च किये गये. इस तरह वित्तीय वर्ष 2002-03 के अंत में सिविल डिपोजिट में विकास योजनाओं की राशि सिर्फ 178.14 करोड़ बच गयी.
इसके बाद से सिविल डिपोजिट में जमा कु‌ल राशि के मुकाबले खर्च कम होता गया, जिससे सिविल डिपोजिट में पड़ी राशि बढ़ती गयी. आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2016-17 में सरकार ने 2094.04 करोड़ रुपये सिविल डिपोजिट में रखा. सिविल में 2015-16 के अंत तक 3383.70 करोड़ पहले से पड़ी थी. वित्तीय वर्ष 2016-17 में सिविल डिपोजिट में पड़ी कुल 5477.74 करोड़ में से सरकार ने 1328.35 करोड़ रुपये खर्च किया.
इसी तरह सरकार ने वित्तीय वर्ष 2017-17 मेें 2570.94 करोड़ रुपये सिविल डिपोडिट में रखा. हालांकि वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान सिविल डिपोजिट में पड़ी कुल 6720.33 करोड़ की राशि में से सिर्फ 1566.65 करोड़ रुपये खर्च किये. इससे वित्तीय वर्ष 2016-ॅ17 के अंत में सिविल डिपोजिट में पड़ी राशि बढ़ कर 5153.68 करोड़ रुपये हो गयी.
क्या है सिविल डिपोजिट
राज्य सरकार हर वित्तीय वर्ष के अंत में बजटीय प्रावधान में वैसी राशि निकाल लेती है, जिसे वह उस वित्तीय वर्ष में खर्च नहीं कर सकती है. साथ ही अंतिम दिनों में निकासी की गयी राशि को सिविल डिपोजिट में रखती है. ऐसा वह संबंधित योजनाओं की राशि को लैप्स होने से बचाने के लिए करती है.
प्रावधानों का उल्लंघन
यह झारखंड ट्रेजरी कोड में निहित प्रावधानों के खिलाफ है. ट्रेजरी कोड में निहित प्रावधानों के तहत वित्तीय वर्ष के अंत तक किसी राशि के खर्च नहीं होने की स्थिति में उसे निकाल कर सिविल डिपोजिट में रख देना गलत है. ऐसा करने से किसी योजना के पूरा या शुरू हुए बिना ही उस योजना के लिए स्वीकृत राशि बजटीय आंकड़ों में खर्च दिखायी जाती है.
सिविल डिपोजिट में बची राशि (करोड़ में)
वित्तीय वर्ष बची राशि
2002-03 178.14
2003-04 173.38
2004-05 252.36
2005-06 496.56
2006-07 585.60
2007-08 858.20
2008-09 1433.80
2009-10 1425.41
वित्तीय वर्ष बची राशि
2010-11 1610.46
2011-12 2172.93
2012-13 2705.49
2013-14 2795.51
2014-15 3185.12
2015-16 3383.70
2016-17 4149.39
2017-18 5153.68

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