रांची : झारखंड में आये दिन बलात्कार की घटनाओं से मुख्यमंत्री रघुवर दास बेहद चिंतित हैं. उन्होंने इस सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए पुलिस महानिदेशक डीके पांडेय को ठोस कदम उठाने के निर्देश दिये हैं. इसके बाद झारखंड पुलिस ने आदतन बलात्कारियों और बार-बार सेक्स से जुड़े अपराध में लिप्त लोगों का डेटाबेस बनाने का निर्णय लिया है.
आइजी नवीन कुमार सिंह ने बताया कि पुलिस बलात्कार से जुड़े अपराध और अपराधियों का राज्य स्तर पर एक डाटा बैंक बना रही है. भारत सरकार राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा ही एक डाटा बैंक बना रही है. श्री सिंह ने बताया कि डाटा बैंक बन जाने के बाद अपराधियों की तलाश, उनकी गिरफ्तारी, उनके खिलाफ मुकदमा चलाने और उन्हें सजा दिलाने में मदद मिलेगी. इससे अलग-अलग राज्यों की पुलिस के बीच सहयोग और समन्वय स्थापित करने में भी मदद मिलेगी.
आइजी ने कहा कि राज्य में बलात्कार के मामलों की जांच में पुलिस की सफलता की दर से वे संतुष्ट हैं. झारखंड पुलिस का जोर अब ऐसे अपराध को होने से रोकने और पुलिसिंग बीट को बढ़ावा देने पर है. इसके लिए पुलिस-पब्लिक के बीच संवाद और कुछ खास जगहों पर विशेष निगरानी के लिए कदम उठाये गये हैं.
श्री सिंह ने बताया कि कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसेड्योर (CrPc) में संशोधन के बाद बलात्कार के मामलों की जांच, चार्जशीट और ट्रायल शुरू करने के लिए 60 दिन की समयसीमा तय कर दी गयी है. अब पुलिस और अभियोजन को यह सुनिश्चित करना होगा कि बलात्कार का मुकदमा दर्ज होने के 120 दिन के अंदर अपराधी पर आरोप तय हो जाये. उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में प्रभावी कार्रवाई के लिए कोर्ट में विशेष रूप से प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों को तैनात किया जा रहा है.
आइजी ने कहा कि इस सामाजिक बुराई को मिटाने के लिए झारखंड पुलिस कई रणनीति पर काम कर रही है. उन्होंने कहा कि सभी जिलों के एसपी को निर्देश दिया गया है कि वे शैक्षणिक संस्थानों, रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंडों और सुनसान इलाकों में असामाजिक तत्वों पर खासतौर से नजर रखें. ऐसी जगहों पर पावरफुल सीसीटीवी स्थापित करें, जो अंधेरे में भी साफ तस्वीर कैच करे.
श्री सिंह ने कहा कि यौन अपराधों को रोकने के लिए पुलिसिंग बीट बेहद अहम है. राज्य के सभी महत्वपूर्ण शहरों में इसे लागू करने पर बल दिया गया है. इससे पुलिस का खुफिया तंत्र मजबूत होगा, पुलिस को आम लोगों के करीब लाने में मदद मिलेगी. इतना ही नहीं, इससे पीड़ितोंतकयह बात भी पहुंचायी जा सकेगी कि उनके पास कौन-कौन से कानूनी विकल्प उपलब्ध हैं.