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वाम इतिहासकारों ने भारत की गलत छवि दिखायी है

रांची : डेविड फ्राली (स्वामी वामदेव शास्त्री) का मानना है कि वामपंथी विचारधारा से प्रभावित इतिहासकारों ने भारत की गलत छवि विश्व में पेश की है. हिंदुओं के बारे में गलत जानकारी दी. इससे भारत को नुकसान उठाना पड़ा है. अमेरिकन वैदिक इंस्टीट्यूट चलानेवाले श्री फ्राली शुक्रवार को खेलगांव स्थित लोकमंथन कार्यक्रम में विश्व की […]

रांची : डेविड फ्राली (स्वामी वामदेव शास्त्री) का मानना है कि वामपंथी विचारधारा से प्रभावित इतिहासकारों ने भारत की गलत छवि विश्व में पेश की है. हिंदुओं के बारे में गलत जानकारी दी. इससे भारत को नुकसान उठाना पड़ा है. अमेरिकन वैदिक इंस्टीट्यूट चलानेवाले श्री फ्राली शुक्रवार को खेलगांव स्थित लोकमंथन कार्यक्रम में विश्व की दृष्टि में भारत विषय पर व्याख्यान दे रहे थे.
असल में भारत विश्व में सभ्यता की मातृभूमि है
उन्होंने कहा कि 19वीं सदी से पहले भारत की विश्व में काफी इज्जत थी. अंग्रेसी शासन के बाद इसके गलत रूप को दिखाया गया. असल में भारत विश्व में सभ्यता की मातृभूमि है. यहां का रहन-सहन, संस्कृति लोगों को प्रभावित करती है. आज भी पूरा विश्व भारत की इस शक्ति की बात करता है. लेकिन, भारत ही अपनी असली शक्ति को नहीं पहचान पाया है.
इसके पीछे यहां के लोगों में इसकी समग्र जानकारी की कमी भी कही जा सकती है. यहां हिंदुओं की आवाज नहीं सुनी जाती थी. अब पूरा विश्व हिंदुओं की सुन रहा है. समय नयी तकनीक का है. नयी तकनीक के गलत इस्तेमाल से विश्व में कई तरह की बीमारियां हो रही हैं. इससे बचने का रास्ता भारत का अाध्यात्मिक ज्ञान ही है. यहां के लोग मेडिटेशन, योग आदि अपना कर तकनीक से दुष्प्रभाव से बचने का रास्ता खोज रहे हैं. वेस्टर्न मॉडल आज भी चीजों को सबूत (एविडेंस) आधारित सूचना की बात करते हैं.
भारत अंतररात्मा की बात करता है. यहां आत्मा और परमात्मा की बात होती है. इसके लिए कोई सबूत की जरूरत नहीं है. यह अंत:करण की बात है. इसे विश्व इतनी आसानी से नहीं समझ सकता है. इससे पूर्व भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की सदस्य डॉ मीनाक्षी जैन ने कहा कि 1900 ई. से पहले भारत में जितने भी विदेशी आये, उन्होंने भारत की सभ्यता और संस्कृति की तारीफ की है.
इसके कई उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं. 1900 ई. के बाद अंग्रेजों के शासन के बाद भारत की गरीबी और यहां की आर्थिक स्थिति को पेश किया गया. इससे विश्व में भारत की छवि खराब की गयी. अंग्रेजों के आने से पहले यहां कई देशों से लोग बौद्ध धर्म, यहां की संस्कृति और संपत्ति लेने के लिए आये.

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