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सरकारी अधिकारियों के बारे में झारखंड मुखिया संघ ने कही यह बड़ी बात, विधायकों-सांसदों को लिखा पत्र

रांची : झारखंड मुखिया संघ ने सभी विधायकों और सांसदों को पत्र लिखाहै. पत्र में ग्राम पंचायतों को सुदृढ़ करने की मांग की गयी है. संघ के प्रदेश अध्यक्ष विकास कुमार महतो ने कहा है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का विशेष महत्व है. वहीं, प्रशासनिक अधिकारियों में जवाबदेही की कमी है. इसका सीधा […]

रांची : झारखंड मुखिया संघ ने सभी विधायकों और सांसदों को पत्र लिखाहै. पत्र में ग्राम पंचायतों को सुदृढ़ करने की मांग की गयी है. संघ के प्रदेश अध्यक्ष विकास कुमार महतो ने कहा है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का विशेष महत्व है. वहीं, प्रशासनिक अधिकारियों में जवाबदेही की कमी है. इसका सीधा असर विकास कार्यों पर पड़ता है. योजनाओं के लिए लाभुकों का चयन और उनके आवेदनों का समय पर निबटारा नहीं हो पाता. इसलिए जरूरी है कि सत्ता का विकेंद्रीकरण हो और पंचायतों को अधिकारसंपन्न बनाया जाये.

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विकास कुमार ने पत्र में स्पष्ट लिखा है कि झारखंड की ग्राम पंचायतें प्रशासन की मोहताज है. यहां तक कि रोजगार सेवक, पंचायत सेवक, कनीय अभियंता भी प्रशासन के प्रति जवाबदेह हैं. पंचायतों के प्रति नहीं. पत्र में यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार ने कैबिनेट के एक फैसले के जरिये कई मुखिया की वित्तीय शक्तियों को निलंबित कर दिया. मुखिया संघ का आरोप है कि ग्राम पंचायतोंके प्रतिनिधियों को उपायुक्त धमकियां देते हैं. प्रशासनिक आदेश उन पर थोपे जाते हैं. यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.

संघ ने अपने पत्र में इस बात को लेकर भी आक्रोश जताया है कि राज्य सरकार द्वारा गांवों में आदिवासी/ग्राम विकास समिति के जरिये जो विकास योजनाएं चला रही हैं, उसमें मुखिया और संबंधित प्रधान को कोई महत्व नहीं दिया गया है. कहा है कि इसमें प्रधान और मुखिया महज विशेष आमंत्रित सदस्य होंगे. इन समितियों का प्रशासनिक व वित्तीय नियंत्रण प्रखंड विकास पदाधिकारी के अधीन है. सरकार के इस फैसले को संघ ने संविधान के 73वें संशोधन और 5वीं अनुसूची का उल्लंघन करार दिया है.

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संघ ने झारखंड के सांसदों और विधायकों से अपील करते हुए कहा है कि लंबे संघर्ष के बाद झारखंड का गठन हुआ था. आंदोलन के दौरान लोगों ने कई सपने देखे थे. उन सपनों को तभी हासिल किया जा सकता है, जब पंचायतें सशक्त होंगी. इसलिए सांसदों और विधायकों की जिम्मेवारी है कि वे पंचायतों को सशक्त बनाने का राज्य और केंद्र सरकार पर दबाव बनायें.

संघ की अन्य प्रमुख मांगेंइस प्रकार हैं :

1. ग्राम/आदिवासी विकास समिति के गठन व कार्यान्वयन से संबंधित सभी निर्देशोंको तुरंत रद्द किया जाये.

2. ग्राम पंचायत स्तरीय सभी कर्मियों और सेवा प्रदाताओं का वित्तीय व प्रशासनिक नियंत्रण ग्राम पंचायतों को दिया जाये.

3. मनरेगा योजनाओं की प्रशासनिक स्वीकृति का अधिकार ग्राम पंचायतों को मिले और MIS की व्यवस्था पंचायत भवन में सुनिश्चित हो.

4. राज्य वित्तीय आयोग को सक्रिय किया जाये और त्रि-स्तरीय पंचायती राज सरकारों को निधि प्रदान किया जाये.

5. पेसा कानून अविलंब लागू हो और पेसा का नियमावली बनाया जाये.

6. सभी जन कल्याणकारी योजनाओं का आधार से जुड़ाव समाप्त किया जाये.

7. जन वितरण प्रणाली और सामाजिक सुरक्षा पेंशन का सार्वभौमीकरण किया जाये और पेंशन की राशि को बढ़ाकर 2000 रुपये किया जाये. सभी एकल महिलाओं और आदिम जनजाति के परिवारों को अंत्योदय राशन कार्ड दिया जाये. निजी राशन डीलरों को हटाकर ग्राम पंचायतों/महिला संगठनों को राशन वितरण की जिम्मेवारी दी जाये.

8. आंगनबाड़ी और मध्याह्न भोजन में बच्चों को सप्ताह में 5 दिन अंडा दिया जाये.

9. मनरेगा मजदूरी दर को बढ़ाकर कम-से-कम राज्य के न्यूनतम मजदूरी दर के बराबर किया जाये.

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