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ईसाई महासंघ ने कहा, पत्थलगड़ी में मिशनरियों की संलिप्तता दिखाने की कोशिश, ST प्रमाण पत्र पर CM का बयान असंवैधानिक
रांची में हुआ राष्ट्रीय ईसाई महासंघ का कार्यक्रम रांची : राष्ट्रीय ईसाई महासंघ के अध्यक्ष प्रभाकर तिर्की ने कहा है कि ईसाई आदिवासियों के जाति प्रमाण पत्र के मामले में मुख्यमंत्री का बयान असंवैधानिक ही नहीं, गैरजिम्मेदाराना है. समस्त आदिवासी समाज की पहचान को नकारने की कोशिश है. इस मसले पर महाधिवक्ता ने भी राज्य […]
रांची में हुआ राष्ट्रीय ईसाई महासंघ का कार्यक्रम
रांची : राष्ट्रीय ईसाई महासंघ के अध्यक्ष प्रभाकर तिर्की ने कहा है कि ईसाई आदिवासियों के जाति प्रमाण पत्र के मामले में मुख्यमंत्री का बयान असंवैधानिक ही नहीं, गैरजिम्मेदाराना है. समस्त आदिवासी समाज की पहचान को नकारने की कोशिश है.
इस मसले पर महाधिवक्ता ने भी राज्य सरकार को सलाह देकर आदिवासियत की एक नयी व्याख्या करने की कोशिश की है, जिसका अधिकार उन्हें नहीं है. प्रभाकर तिर्की रविवार को एक्सआइएसएस सभागार में ईसाई आदिवासियों को आरक्षण विषय पर आयोजित परिचर्चा में बोल रहे थे. उन्होंने कहा : इस मामले में संवैधानिक स्पष्टता के बाद भी यदि राज्य सरकार किसी समुदाय और धर्म विशेष को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित करने की कोशिश करेगी, तो फिर आदिवासियों के प्रति सरकार की मंशा किसी खास रणनीति की ओर इशारा करती है. कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय ईसाई महासंघ की ओर से किया गया था. कार्यक्रम में अधिक भीड़ होने के कारण परिचर्चा संत जोसफ क्लब के सभागार में भी आयोजित की गयी. परिचर्चा में निर्णय लिया गया कि 15 जुलाई को राजधानी में मौन प्रदर्शन किया जायेगा.
संवैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता : उन्होंने कहा : भारत में आदिवासी समाज की पहचान नस्लीय है, जिसका निर्धारण उसके जन्म के साथ होता है (जस्टिस ईएस वेंकटारमैया, सुप्रीम कोर्ट 1985, एससीसी 714 पारा 110 व जस्टिस सुप्रा). किसी धर्म के मानने से उसकी नस्लीय या जातीय पहचान नहीं मिटती.
इसकी व्याख्या सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न परिवादों के माध्यम से कई बार किया है. संविधान की धारा 25 व 26 में भी धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार निहित है, जिन्हें मौलिक अधिकारों की श्रेणी में रखा गया है. धारा 15 में यह व्याख्या स्पष्ट रूप से दी गयी है कि नस्ल, धर्म अथवा जाति के आधार पर किसी भी नागरिक को उसके संवैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता.
कार्यक्रम में थे : कार्यक्रम को अधिवक्ता शुभाशीष सोरेन, राष्ट्रीय ईसाई महासंघ के महासचिव क्रिस्टी अब्राहम, प्रदेश अध्यक्ष दीपक तिर्की, कैथोलिक युवा संघ के अध्यक्ष कुलदीप तिर्की, एफआइए के स्टेट इंचार्ज जॉनसन तोपनो, आदिवासी सेंगेल आंदोलन के अध्यक्ष थियोडोर किड़ो, हेमंत तिर्की, उज्ज्वल खलखो, केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की, रॉनी कुजूर, अरुणा तिर्की आदि ने भी संबोधित किया़
पत्थलगड़ी में ईसाई मिशनरियों की संलिप्तता दिखाने की काेशिश
प्रभाकर तिर्की ने कहा : खूंटी में पत्थलगड़ी मामले में ईसाई मिशनरियों की संलिप्तता दिखाने की कोशिश की जा रही है. प्रशासनिक व पुलिसिया कार्रवाई के तहत एक ईसाई धर्मसंघी की गिरफ्तारी ईसाई मिशनरियों को बदनाम करने की सुनियोजित साजिश है, ताकि आदिवासियों को धर्म के नाम पर विभाजित किया जा सके.
प्रजातंत्र के सभी स्तंभ पर उच्च वर्णवालों का कब्जा
अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के विश्वनाथ तिर्की ने कहा : प्रजातंत्र के चारों स्तंभों में आदिवासियों की संख्या नगण्य है, इसलिए उन्हें न्याय नहीं मिलता. जनप्रतिनिधि राजनीतिक पार्टियों का प्रतिनिधत्व करते हैं, आदिवासी हित का नहीं. विधि को लागू करानेवालों में 80 प्रतिशत और न्यायपालिका में 97 प्रतिशत उच्च वर्ण के लोग हैं. मीडिया भी उनकी है. देश हिंदू राष्ट्र बन चुका है़
आदिवासियत की व्याख्या सूक्ष्म तरीके से
प्रभाकर तिर्की ने कहा : भारतीय संविधान में आदिवासियत की व्याख्या सूक्ष्म तरीके से की गयी है. उनकी सुरक्षा के कई उपाय किये गये हैं. संविधान की धारा 342 के तहत उन्हें अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में एक विशिष्ट समुदाय के रूप में सूचिबद्ध किया गया है. देश के राष्ट्रपति ही किसी समुदाय को अजजा श्रेणी में शामिल अथवा इससे वंचित कर सकते हैं.
इस संवैधानिक व्यवस्था से इतर कोई भी व्यक्ति आदिवासियत की अलग व्याख्या नहीं कर सकता. ईसाई आदिवासियों के मामले में जाति प्रमाण पत्र व आरक्षण से वंचित करने की राज्य सरकार की मंशा संविधान के विपरीत है.
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