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रांची : नियमों को ताक पर रख कर हड्डी विभाग में चल रहा इंप्लांट का खेल, पिता विभागाध्यक्ष, बेटा कर रहा इंप्लांट सप्लाई

II राजीव पांडेय II रांची : रिम्स के हड्डी विभाग में नौ फर्म द्वारा रिम्स के डॉक्टरों को इंप्लांट सर्जरी के उपकरण की सप्लाई की जाती है. इनमें स्पार्क सर्जिकल, आॅर्थो प्वाइंट, अग्रवाल सर्जिकल, श्री साईं आॅर्थो, सुधीर सर्जिकल, आस्मा फार्मा, न्यू डायनेमिक एसोसिएट, आयुष फार्मा व तिरुपति सर्जिकल शामिल हैं. हर यूनिट इंचार्ज की […]

II राजीव पांडेय II
रांची : रिम्स के हड्डी विभाग में नौ फर्म द्वारा रिम्स के डॉक्टरों को इंप्लांट सर्जरी के उपकरण की सप्लाई की जाती है. इनमें स्पार्क सर्जिकल, आॅर्थो प्वाइंट, अग्रवाल सर्जिकल, श्री साईं आॅर्थो, सुधीर सर्जिकल, आस्मा फार्मा, न्यू डायनेमिक एसोसिएट, आयुष फार्मा व तिरुपति सर्जिकल शामिल हैं. हर यूनिट इंचार्ज की अलग-अलग सप्लायर से सेटिंग है, जिसकी सेटिंग यूनिट इंचार्ज से हो जाती है, वह उसी डॉक्टर को इंप्लांट सप्लाई करता है.
आस्मा फार्मा हड्डी के विभागाध्यक्ष डॉ मांझी के बेटे का फर्म है, जो रिम्स में हड्डी के इंप्लांट की सप्लाई करता है. सूत्रों की मानें, तो डॉ मांझी एक ओटी के दिन करीब पांच से छह मरीजों की मेजर सर्जरी करते हैं.
इसमें तीन से चार इंप्लांट उनके बेटे के फर्म से आते हैं. एक या दो इंप्लांट व उपकरण अन्य सप्लायर से मंगाये जाते हैं.बाजार में हैं सस्ता, पर मरीजों को मिलता है महंगा : रिम्स के मरीजों को बाजार मूल्य से अधिक कीमत में इंप्लांट व सर्जरी के उपकरण उपलब्ध कराये जाते हैं. जो उपकरण बाजार में 1200 से 1500 में मिल जाता है, वह मरीज को 4500 से 5000 में दिया जाता है. उदाहरण के तौर पर फीमर एलएन की बाजार मूल्य 1500 से 1800 रुपये है, लेकिन रिम्स में मरीजों को यही इंप्लांट 5500 से 6000 रुपये में दिया जाता है.
विभाग डेढ़ साल पहले कर चुका है उपकरण उपलब्ध कराने की मांग : रिम्स के हड्डी रोग के विभागाध्यक्ष डाॅ एलबी मांझी ने प्रबंधन से करीब डेढ़ साल पहले ही हड्डी के इंप्लांट व सर्जरी के उपकरण की मांग कर चुके हैं. लेकिन, प्रबंधन द्वारा अभी तक इस पर ठोस पहल नहीं की गयी है. नतीजा यह है कि राजधानी के विभिन्न एजेंसियों से डॉक्टर उपकरण मंगाते हैं. एजेंसियां अपने मनमुताबिक दर पर मरीजों को उपकरण उपलब्ध कराती हैं.
रिम्स का कैथलैब हुआ दुरुस्त आज से हृदय रोगियों को राहत
रांची : रिम्स के कार्डियोलाॅजी विंग में करीब 12 दिन से खराब पड़ा कैथलैब शुक्रवार को दुरुस्त हो गया. शनिवार से हृदय रोगियों को चिकित्सीय परामर्श के बाद एंजियोप्लास्टी, एंजियोग्राफी और पेसमेकर लगाने की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी. गौरतलब है कि रिम्स के आइसीयू में कई ऐसे मरीज भी भर्ती हैं, जिनकी एंजियोग्राफी जांच के बाद एंजियोप्लास्टी व पेसमेकर लगाने की प्रक्रिया पूरी करनी है. वहीं, जिन मरीजों को घर भेज दिया गया है, उनको फोन के माध्यम से मशीन के दुरुस्त हाेने की सूचना भी दी जा रही है.
डॉ एलबी मांझी से सीधी बातचीत
अाप विभागाध्यक्ष हैं, आपका बेटा सप्लायर. उसके फर्म से इंप्लांट की सप्लाई कहां तक सही है?
हमारे बेटा के फर्म से इंप्लांट और उपकरण आते हैं, लेकिन क्या वह एजेंसी नहीं संचालित कर सकता? वह बिजनेस करने के लिए स्वतंत्र है.
अगर आप लोगों को दिक्कत है, ताे बंद करा देते हैं. वह सस्ते दर पर उपकरण उपलब्ध कराता है. इससे मरीजों को लाभ होता है.
इंप्लांट व सर्जरी के उपकरण में काफी मार्जिन है, रिम्स क्यों नहीं उपकरण उपलब्ध कराता है?
इसके बारे में आप प्रबंधन से पूछिये. हम तो डेढ़ साल पहले प्रबंधन को एजेंसी चयनित कर उपकरण उपलब्ध कराने की मांग कर चुके हैं. कई बार पत्र लिखा, पर प्रबंधन से सहयोग नहीं मिलता है. एजेंसी चयनित कर प्राइस फिक्स कर दिया जाये, हम मरीज को उसी से उपकरण मंगवा लेंगे.

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