रांची : भारत के स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड के न जाने कितने लोगोंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया. न जाने कितने लोगों ने आदिवासी समाज और देश की अस्मिता की रक्षा के लिए अपने प्राण कुर्बान कर दिये. ऐसे ही एक महानायक थे वीर बुधु भगत. रांची जिले के चान्हो प्रखंड स्थित सिलागांईगांवमें 17 फरवरी, 1792 को एकउरांव आदिवासी परिवार में जन्मे बुधु भगत 1831-32 के कोल विद्रोह के महानायक थे. बुधु भगत ने अंग्रेजी सेना के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी.
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रांची और आसपास के इलाके के लोगों पर बुधु का जबर्दस्त प्रभाव था. उनके एक इशारे पर हजारों लोग अपनी जान तक कुर्बान करने के लिए तैयार हो जाते थे. बुधु भगत का सैनिक अड्डा चोगारी पहाड़ की चोटी पर घने जंगलों के बीच था. यहीं पर रणनीतियां बनती थीं.
कहा जाता है किवीरबुधु भगत को दैवीय शक्तियां प्राप्त थीं. इसलिए वह एक कुल्हाड़ी सदैवअपने साथ रखते थे. कोल आंदोलन के जननेता बुधु भगत ने अंग्रेजों के चाटुकार जमींदारों, दलालों के विरुद्ध भूमि, वन की सुरक्षा के लिए जंग छेड़ी थी. आंदोलन में भारी संख्या में अंग्रेजी सेना तथा आंदोलनकारी मारे गये थे. बुधु भी 13 फरवरी, 1832 को शहीद हो गये. उनकी कहानियां आज भी उन जंगलों में सुनी जाती हैं.
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कहते हैं कि अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले इस आदिवासी वीर को उनके साथियों के साथ कैप्टन इंपे ने सिलागांईगांव में घेर लिया. बुधु भगत चारों ओर से अंग्रेज सैनिकों से घिर चुके थे. वह जानते थे कि अंग्रेज फायरिंग करेंगे. इसमें बेगुनाह ग्रामीण भी मर सकते हैं. इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पण का प्रस्ताव रखा. लेकिन, क्रूर अंग्रेज अधिकारी ने बुधु भगत और उनके समर्थकों को घेरकर गोलियां चलाने के आदेश दे दिये.
अंग्रेज सैनिकों ने अंधाधुंध गोलियां चलायीं. बच्चे, बूढ़े और महिलाओं तक को नहीं बख्शा. देखते ही देखते 300 लाशें बिछ गयीं. अंग्रेज सैनिकों के खूनी तांडव के बाद लोगों के भीषण चीत्कार से पूरा इलाका कांप उठा. अन्याय के विरुद्ध जन विद्रोह को हथियार के बल पर खामोश कर दिया गया. बुधु भगतअपनेदो बेटों ‘हलधर’ और ‘गिरधर’ के साथ अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गये.