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मेकैनिकल विंग के चारों प्लांटों की नीलामी की तैयारी

रांची : पथ निर्माण विभाग के मेकैनिकल विंग के चारों प्लांटों (नामकुम, तोरपा, देवघर व साहेबगंज) की नीलामी की तैयारी कर ली गयी है. प्लांटों के सभी सामान नीलाम किये जायेंगे. नीलामी की संचिका फिलहाल सरकार के पास है, जहां नीलामी पर फैसला होना है. जानकारी के मुताबिक वर्षों से बंद पड़े इन चारों प्लांटों […]

रांची : पथ निर्माण विभाग के मेकैनिकल विंग के चारों प्लांटों (नामकुम, तोरपा, देवघर व साहेबगंज) की नीलामी की तैयारी कर ली गयी है. प्लांटों के सभी सामान नीलाम किये जायेंगे. नीलामी की संचिका फिलहाल सरकार के पास है, जहां नीलामी पर फैसला होना है.

जानकारी के मुताबिक वर्षों से बंद पड़े इन चारों प्लांटों में पेवर, लोडर, मिक्सचर मशीन, रोड रोलर सहित सड़क निर्माण के लगभग सभी उपकरण मौजूद हैं. कुछ प्लांटों में लैब की भी स्थापना की गयी थी, जिनके जरिये सड़क की गुणवत्ता की जांच की जाती है. इधर, डेढ़ साल पहले सरकार ने मेकैनिकल विंग को ही बंद करने का फैसला ले लिया. इसके बाद इनके सभी इंजीनियरों और टेक्निकल मैन को दूसरी जगहों पर एडजस्ट किया गया. यानी कुल मिलाकर इस विंग का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया गया है.

क्या था मेकैनिकल विंग : मेकैनिकल विंग के माध्यम से सरकार सड़क का निर्माण कराती थी. खास कर जहां पर तत्काल में सड़क निर्माण या मरम्मत की जरूरत होती थी, वहां पर मेकैनिकल विंग के इंजीनियरों की मदद से तुरंत सड़क दुरुस्त कर दी जाती थी.

इसके लिए विभाग को टेंडर की लंबी प्रक्रिया व ठेकेदारों का इंतजार नहीं करना पड़ता था.

राशि की भी होती थी बचत : किसी भी योजना में ठेकेदारों का लाभ 10 फीसदी होता है. यानी योजना का इस्टीमेट ठेकेदार के लाभ को जोड़ कर बनाया जाता है, लेकिन अक्सर ठेकेदारों को योजना की लागत से कई फीसदी अधिक रेट पर काम मिलता है. ऐसी स्थिति में सरकार को इस्टीमेट से ज्यादा का भुगतान ठेकेदारों को करना पड़ता है, लेकिन मेकैनिकल विंग के माध्यम से काम कराने पर पहले तो 10 फीसदी राशि सीधे सरकार को बचती थी. इसके ऊपर कभी भी राशि नहीं लगती थी.

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