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झारखंड : हेमंत सोरेन का दावा, केंद्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल किया वापस
रांची : केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार के भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल 2017 को पुनर्विचार के लिए वापस कर दिया है. भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने झारखंड सरकार के इस संशोधन बिल पर सहमति नहीं देने का परामर्श गृह मंत्रालय को दिया है. इसके बाद ही गृह मंत्रालय ने इसे पुनर्विचार के लिए […]
रांची : केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार के भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल 2017 को पुनर्विचार के लिए वापस कर दिया है. भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने झारखंड सरकार के इस संशोधन बिल पर सहमति नहीं देने का परामर्श गृह मंत्रालय को दिया है.
इसके बाद ही गृह मंत्रालय ने इसे पुनर्विचार के लिए झारखंड सरकार को भेज दिया है. यह जानकारी गुरुवार को प्रतिपक्ष नेता हेमंत सोरेन ने पत्रकारों को दी. उन्होंने बताया कि कृषि भूमि का उपयोग गैर कृषि कार्यों के रूप में करने की अनुमति देने का यह प्रस्ताव था.
केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय ने लिखा है कि राज्य सरकार के संशोधन पर सहमति देने से कृषि योग्य भूमि में कमी आयेगी. इससे कृषि भूमि के गैर कृषि उपयोग के लिए हस्तांतरण में तेजी आयेगी. यह झारखंड सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधन राष्ट्रीय कृषि नीति 2007 तथा राष्ट्रीय पुनर्वास नीति 2007 के उद्देश्यों व प्रावधानों के प्रतिकूल है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने लिखा है कि भारत सरकार की यह नीति है कि कृषि भूमि का हस्तांतरण गैर कृषि कार्य के लिए नहीं किया जायेगा. परियोजनाएं बंजर भूमि पर लगायी जाये.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने इस आपत्ति को आधार बनाते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय को संशोधन बिल को पुनर्विचार के लिए वापस करने को लिखा है. श्री सोरेन ने कहा कि बिल को वापस करने का विरोध व मांगें जायज थीं. मुख्यमंत्री को नैतिकता के आधार पर पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि झामुमो ने इसका हर स्तर पर विरोध किया था. शिबू सोरेन के नेतृत्व में राज्यपाल व राष्ट्रपति से मिल कर संशोधन विधेयक 2017 पर सहमति नहीं देने का अनुरोध किया गया था.
गलत फैसला ले रही है सरकार : मेयर व डिप्टी मेयर का चुनाव दलगत होने पर उन्होंने कहा कि कहा कि सरकार उलूल-जुलूल निर्णय ले रही है. अब इस पर भी विपक्ष चिंता करे और कानून बनाये.
पूरे मामले की हो जांच
हेमंत सोरेन ने कहा कि आखिर किन ताकतों के दबाव में आदिवासियों व मूलवासियों के हितों व भारत सरकार की नीतियों के विरुद्ध जाकर राज्य सरकार भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन का बार-बार प्रयास कर रही है. इसकी जांच होनी चाहिए. सरकार के इन प्रयासों से स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री का भू-माफियाअों व पूंजीपतियों से सांठ-गांठ है.
12 अगस्त को पारित हुआ था विधेयक
पिछले मॉनसून सत्र में 12 अगस्त को विधानसभा से भूमि अर्जन-पुनर्वासन एवं पुर्नस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार, झारखंड संशोधन विधेयक-2017 पारित हुआ था़
इसमें सोशल इंपैक्ट के अध्ययन के प्रावधान को खत्म किया गया था़ स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, अस्पताल, पंचायत भवन, आंगनबाड़ी, रेल परियोजना, सिंचाई योजना, विद्युतीकरण, जलापूर्ति योजना, सड़क, पाइप लाइन, जलमार्ग और गरीबों के आवास के निर्माण में भू-अर्जन में सोशल इंपैक्ट स्टडी (सर्वे) नहीं करने की बात थी़ मॉनसून सत्र के दौरान इस संशोधन को लेकर विपक्ष ने आपत्ति जतायी थी़ शोर-शराबे के बीच ध्वनिमत से बिल पारित किया गया था़
झारखंड सरकार जल्द भेजेगी केंद्र को जवाब
भूमि अधिग्रहण बिल पर केंद्रीय कृषि मंत्रालय की ओर से दिये गये सुझाव पर झारखंड सरकार की ओर से पक्ष तैयार कर लिया गया है. जल्द ही इसका जवाब कृषि मंत्रालय को भेजा जायेगा. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, सरकार की ओर तैयार जवाब में कहा गया है कि वेस्टलैंड, अनुपयोगी, अनउपजाऊ बंजर भूमि के अधिग्रहण के लिए पहले से कानून बना हुआ है.
किसी भी जिला में बहुफसलीय सिंचित क्षेत्र का दो प्रतिशत से अधिक जमीन अर्जित नहीं किया जायेगा. किसी भी जिला में कुल शुद्ध बोया क्षेत्र के एक चौथाई से अधिक भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जायेगा.
झारखंड भूमि अर्जन पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार नियमावली 2015 में ये बातें दर्ज हैं. कृषि मंत्रालय ने अपने सुझाव में कहा है कि कृषि भूमि का गैर कृषि कार्य के लिए सहमति नहीं दे सकते. इससे कृषि और गैर कृषि भूमि का अंतर बढ़ जायेगा.
यह भी सुझाव दिया गया है कि सबसे उत्तम कृषि भूमि का संरक्षण किया जाये. अपवाद स्वरूप ही इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर ऐसी भूमि ली गयी है, तो उतनी जमीन गैर कृषि से कृषि योग्य भूमि में तब्दील करना होगा. वेस्ट लैंड (अनुउपयोगी भूमि) का गैर कृषि के लिए इस्तेमाल किया जाये.
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