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धर्मांतरण के खिलाफ आजाद भारत का सबसे बड़ा अभियान, गरमा सकती है प्रदेश की राजनीति

मिथिलेश झा रांची : आजादभारत के इतिहास मेंधर्मांतरणके खिलाफसंभवत: सबसेबड़ा अभियान शुरू हुआ है. अभियान की शुरुआत की है रघुवर दास की अगुवाई में झारखंड में चल रही भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने. सरकार ने अपने अभियान को मजबूती देने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी,झारखंडके अमर शहीद बिरसा मुंडा और कार्तिक उरांव का सहारा […]

मिथिलेश झा

रांची : आजादभारत के इतिहास मेंधर्मांतरणके खिलाफसंभवत: सबसेबड़ा अभियान शुरू हुआ है. अभियान की शुरुआत की है रघुवर दास की अगुवाई में झारखंड में चल रही भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने. सरकार ने अपने अभियान को मजबूती देने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी,झारखंडके अमर शहीद बिरसा मुंडा और कार्तिक उरांव का सहारा लिया है. सूचना विभाग की ओर से 11 अगस्त को राज्य के समाचार पत्रों में एक फुल पेज का विज्ञापन छपवाया. इसमें धर्मांतरण विरोधी कानून लाने के सरकार के फैसले को भगवान बिरसा मुंडा और स्व. कार्तिक उरांव का सपना पूरा करने की दिशा में उठाया गया कदम बताया गया है. विज्ञापन में मोटे-मोटे अक्षरों में बापू का एक उद्धरण लिखा गया है, जो इस प्रकार है :

‘यदि ईसाई मिशनरी समझते हैं कि ईसाई धर्म में धर्मांतरण से ही मनुष्य का आध्यात्मिक उद्धार संभव है, तो आप यह काम मुझसे या महादेव देसाई (महात्मा गांधी के निजी सचिव) से क्यों नहीं शुरू करते. क्यों इन भोले-भाले, अबोध, अज्ञानी, गरीब और वनवासियों के धर्मांतरण पर जोर देते हैं. ये बेचारे तो ईसा और मुहम्मद में भेद नहीं कर सकते और न आपके धर्मोपदेश को समझने की पात्रता रखते हैं. वे तो गाय के समान मूक और सरल हैं. जिन भोले-भाले अनपढ़ दलितों और वनवासियों की गरीबी का दोहन करके आप ईसाई बनाते हैं वे ईसा के नहीं ‘चावल’ अर्थात् पेट के लिए ईसाई होते हैं.’

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बापू के इस एक बयान में कई संदेश छिपे हैं. पहला, ईसाई मिशनरी धर्मांतरण कराते हैं. दूसरा, भारत के वनवासी गरीब और पिछड़े हैंऔर ईसाई मिशनरियां इसका फायदा उठाती हैं. गरीबी और पिछड़ापन दूर करने के नाम पर भोली-भाली जनता को अपना धर्म छोड़ कर ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं. गांधी के इस बयान में मिशनरियों के धर्मांतरण के उद्देश्य भी स्पष्ट हैं.

बहरहाल, सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून के पक्ष में बापू के बयान को उद्धृत कर अपने इरादे जाहिर कर दिये हैं. इसके साथ ही झारखंड में इस संवेदनशील मुद्दे पर राजनीतिक सरगर्मी तेज होने की आशंका बढ़ गयी है. विरोधी दल अब तक दबी जुबान से सरकार के धर्मांतरण विरोधी कानून का विरोध कर रहे थे. अब जबकि सरकार ने इस बिल के समर्थन में इतने बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान छेड़ दिया है, विपक्ष भी चुप नहीं बैठेगा. विज्ञापन ने अपना असर दिखाना शुरू भी कर दिया है.

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सबसे पहले सामाजिक कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग ने सरकार के इस विज्ञापन पर फेसबुक पर जबरदस्त प्रतिक्रिया पोस्ट की. उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार यदि कोई बिल पेश करती है, तो उस पर सदन में बहस होनी चाहिए. लेकिन, मीडिया में विज्ञापन देकर राज्य के खजाना को खाली करना सीधे तौर पर जनता के पैसे का दुरुपयोग और मीडिया को अपने पक्ष में खड़ा करने की कोशिशहै. उन्होंने लिखा है कि विज्ञापन में गौर करनेवाली बात यह है कि महात्मा गांधी ने कभी भी ‘वनवासी’ शब्द का उपयोग नहीं किया, बल्कि उन्होंने आदिवासियों के लिए ‘गिरिजन’ शब्द का उपयोग किया था. ‘वनवासी’ शब्द संघ परिवार का गढ़ा हुआ शब्द है, जिसका अर्थ है : जंगली. यानी संघ परिवार आज भी आदिवासियों को जंगली ही मानता है और महात्मा गांधी के नाम का दुरुपयोग करते हुए इसे आदिवासी समाज पर थोपने की कोशिश कर रहा है.

झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी खुल कर धर्मांतरण का विरोध तो नहीं करते, लेकिन पिछले दिनों उन्होंने सवाल किया कि राज्य में धर्मांतरण के कितने मामले हैं. देश जब से आजाद हुआ, तब से लेकर अब तक किस धर्म के लोगों की संख्या बढ़ी है. राज्य को बने हुए 16 साल हो गये. जबरन धर्म परिर्तन के कितने मामले सामने आये. धर्मांतरण विधेयक लाने के पहले सरकार को इन सवालों का जवाब देना चाहिए.

श्री मरांडी ने विधेयक के कई नियमों का विरोध किया है. उन्होंने कहा कि विधेयक में कहा गया है कि अगर कोई अपना धर्म बदलता है, तो इसकी जानकारी लिखित में उपायुक्त को देनी होगी. अगर कोई इसकी जानकारी नहीं देगा, तो उसे 4 साल की सजा होगी. यह गलत है. उन्होंने कहा कि जहां अब तक जबरन धर्म परिवर्तन का मामला ही सामने नहीं आया,उसराज्य में ऐसे कानून की जरूरत क्या है. मरांडी ने संविधान का उल्लेख करते हुए इसे अधिकारों का हनन बताया.

वहीं, अनमोल रंजन कहते हैं कि रघुवर सरकार ने हाल ही में धर्मांतरण बिल पास कर लिया है और दलील दी गयी कि इससे धर्मांतरण पर रोक लगेगी. इस बिल को लाकर सरकार ने ईसाई धर्मावलंबियों को निशाने पर लिया है, क्योंकि सबसे ज्यादा धर्मांतरण का आरोप इन्हीं पर लगाया गया है. मेरा मानना है कि जिन्हें ईसाई धर्म पर अापत्ति है, वे सर्वप्रथम ईसाई शिक्षण संस्थानों और ईसाई संस्थानों से संचालित सेवाओं का लाभ न लें. अगर सरकार विदेशी निवेश से लेकर ईसाई संस्थानों का लाभ जनता को देती है, तो दिखावे का बिल क्यों? जिस उद्देश्य से सरकार ने यह बिल लाया है, उससे कई धर्मावलंबी प्रभावित होंगे. धर्म तो आस्था और विश्वास का प्रतीक है, पर राजनीतिक दलों ने इसे वोट पाने का जरिया बना लिया है.

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इधर, भारतीय जनता पार्टी ने धर्मांतरण पर रोक लगानेवाले झारखंड सरकार के प्रस्तावित विधेयक का स्वागत किया. कहा कि जबरन धर्मांतरण राष्ट्रविरोधी गतिविधि है. इसे हर हाल में रोका जाना चाहिए. झारखंड प्रदेश भाजपा के महामंत्री सह मुख्यालय प्रभारी दीपक प्रकाश ने कहा कि पार्टी राज्य मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत नये धर्मांतरण निरोधी विधेयक से राष्ट्र और विशेषकर आदिवासी संस्कृति की रक्षा हो सकेगी. उन्होंने कहा कि झारखंड में पूर्व में आदिवासियों और शोषितों को बड़े पैमाने पर प्रलोभन देकर एवं जोर-जबर्दस्ती से धर्म परिवर्तन कराया गया. धर्म परिवर्तन के इतिहास को देखते हुए ऐसे कानून की लंबे समय से आवश्यकता थी.

इसके उलट झारखंड की राजधानी रांची के आर्कबिशप कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो ने cruxnow.com से कहा कि इस कानून की कोई जरूरत नहीं थी, क्योंकि झारखंड में ‘जबरन धर्मांतरण’ नहीं कराया जाता. उन्होंने कहा, ‘हम आजाद लोग हैं. हमें सोचने की आजादी है. कोई किसी को धर्म बदलने के लिए मजबूर नहीं कर सकता.’ खुद आदिवासी समुदाय से आनेवाले कार्डिनल टोप्पो ने कहा, ‘दशकों से हम इस राज्य में स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और अन्य स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करा रहे हैं. हम गरीबों की नि:स्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं. आज भी भी उन्हें भूले नहीं हैं. लाखों ऐसे लोग हैं, जिनकी हमने सेवा की है, लेकिन उन्होंने अब तक ईसाई धर्म नहीं अपनाया.’

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जेसुइट फादर जेवियर सोरेंग ने UCANewsसे कहा कि सरकार का यह कदम ईसाई विरोधी मानसिकता को बढ़ावा दे रहा है. ईसाइयों को शुरू से धर्मांतरण के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है. जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ सोशलसर्विसेज के प्रोफेसर सोरेंग ने कहा किराज्य में स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की दिशा में ईसाई समुदाय का अतुलनीय योगदान है. लेकिन,दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी सेवा को अब हमारीसेवा भाव को हमारे खिलाफ ही इस्तेमाल किया जा रहा है.

उधर, भाजपा का दावा है कि ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण कराये जाने के कारण झारखंड में आदिवासियों की संख्या लगातार घटती जा रही है और ईसाई बढ़ रहे हैं. उनका कहना है कि पिछली जनगणना की तुलना में इस बार आदिवासी ईसाइयों की संख्य 30 फीसदी तक बढ़ गयी है. cruxnow.com तो यहां तक कहता है कि भाजपा सरकार ने ईसाई मिशनरियों के खिलाफ एक तरह से जंग छेड़ रखी है. साइट के मुताबिक, सरकार का दावा है कि राज्य में ईसाई मिशनिरयोंसे संबद्ध 106एनजीओ हैं, जो सरकारी धन का इस्तेमाल कर धर्मांतरण करवा रहे हैं.

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यहां बताना प्रासंगिक होगा कि रघुवर दास की अगुवाईवाली भाजपा सरकारकी कैबिनेट ने ‘झारखंड धर्म स्वतंत्र विधेयक 2017’ के प्रारूप को मंजूरी दे दी है. विधेयक के प्रारूप की धारा-3 में बलपूर्वक धर्मांतरण को गैरकानूनी बताया गया है. धारा-3 के उपबंध का उल्लंघन करनेवाले व्यक्ति को 3 वर्ष तक के कारावास या 50 हजार रुपये का जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है. यदि यह अपराध नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के प्रति किया गया है, तो कारावास 4 वर्षों तक और जुर्माना एक लाख रुपये तक होगा.

बिल में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करता है, तो उसे स्थानीय प्रशासन को अनिवार्य रूप से सूचित करना होगा. उपायुक्त को यह भी बताना होगा कि उसने कहां, किस समारोह में और किन लोगों के समक्ष धर्म परिवर्तन किया है. स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन की सूचना सरकार को नहीं देने पर कठोर कार्रवाई के विधेयक में प्रावधान किये गये हैं.

यहां बताना प्रासंगिक होगा कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए अलग से कानून बनाने की घोषणा की थी. वर्ष 2016 में पलामू में हुई भाजपा की कार्यसमिति में भी धर्मांतरण निषेध बिल लाने का प्रस्ताव पारित हुआ था. विरोधी दल ऐसे किसी नये कानून का विरोध करेंगे, इसका अंदाजा मुख्यमंत्री को था. इसलिए उन्होंने गृह विभाग को देश के विभिन्न राज्यों में लागू कानून का अध्ययन करने का निर्देश दिया. सात राज्यों के कानून का अध्ययन करने के बाद झारखंड ने अपने विधेयक का प्रारूप तैयार किया. धर्मांतरण निषेध कानून विधानसभा से पास हो जाने के बाद सरकार उन कार्यक्रमों पर भी रोक लगाने के लिए एक विधेयक ला सकती है, जिसमें अंधविश्वास को बढ़ावा दिया जाता है.

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यह बात दीगर है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है. हमारा संविधान हर किसी को अपना धर्म चुनने और अपनी परंपरा के पालन की आजादी देता है. संविधान के आर्टिकल 25 से आर्टिकल 28 तक में अपने धर्म और अपनी परंपराओं के अनुपालन की गारंटी सुनिश्चित की गयी है. लेकिन, हाल के दशकों में राजनीतिक दलों और मीडिया में धर्मांतरण पर एक जबरदस्त बहस छिड़ी है. देश के7 राज्यों (हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, ओड़िशा और आंध्रप्रदेश) में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू हैं. बिल पास हो गया, तो इस सूची में शामिल होनेवाला झारखंड आठवां राज्य बन जायेगा. विधानसभा में सरकार के पास पूर्ण बहुमत है, लेकिन सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन का जो हश्र हुआ, उसे देखते हुए सरकार इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है. विपक्षी दल और कई सामाजिक और धार्मिक संगठनोंने प्रस्तावित बिल का विरोध शुरू कर दिया है.

‘झारखंड धर्म स्वतंत्र विधेयक 2017’केक्या हैं प्रावधान

  1. बलपूर्वक, लालच देकर अथवा कपटपूर्ण तरीके से धर्म परिवर्तन कराने पर3 साल की सजाऔर 50 हजार रुपये जुर्माना.
  2. महिला, एसटी, एससी के मामले में4 साल की सजा या1 लाख रुपये जुर्माना या दोनोंसजासंभव.
  3. धर्म परिवर्तन के लिए अब डीसी से अनुमति लेना अनिवार्य होगा.
  4. बिना पूर्व अनुमति के किया गया धर्मांतरण अब अवैध माना जायेगा. धर्मांतरण के लिए होनेवाले संस्कार या समारोह के आयोजन के लिए भी सूचना देकर जिला उपायुक्तों से पहले अनुमति लेनी होगी.
  5. कानून बन जाने के बाद गैरकानूनी तरीके से धर्म परिवर्तन कराना संज्ञेय अपराध माना जायेगा और यह गैर जमानती होगा.
  6. धर्मांतरण निषेध अधिनियम के अधीन के अपराध के लिए कोई भी अभियोजन डीसी या उनकी अनुमति से एसडीओ या प्राधिकृत अधिकारी ही देंगे.
  7. स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन पर रोक नहीं है,लेकिन स्थानीय प्रशासन को अनिवार्य रूप से शपथ पत्र देकर इसकी सूचना डीसी को देनी होगी. उसे बताना होगा कि वह कहां, किस समारोह में और किन लोगों के समक्ष धर्मांतरण करा रहे हैं.

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