22.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

झारखंड सरकार 1000 दिन पूरा करने के करीब, सरकारी दावों से इतर पढ़िये क्या है जमीनी हकीकत

।।पंकज कुमार पाठक।। रांची :झारखंड की रघुवर दास सरकार 1000 दिन पूरा करने के करीब है. 22 सितंबर को सरकार 1000 दिन पूरा करेगी, जिसका रिपोर्ट कार्ड तैयार करने में सरकारी महकमा जुटा हुआ है. सरकार 11 वे 22 सितंबर तक विभिन्न कार्यक्रम चला कर अपनी उपलब्धियां बतायेगी. इस दिन स्मार्ट सिटी के शिलान्यास की […]

।।पंकज कुमार पाठक।।

रांची :झारखंड की रघुवर दास सरकार 1000 दिन पूरा करने के करीब है. 22 सितंबर को सरकार 1000 दिन पूरा करेगी, जिसका रिपोर्ट कार्ड तैयार करने में सरकारी महकमा जुटा हुआ है. सरकार 11 वे 22 सितंबर तक विभिन्न कार्यक्रम चला कर अपनी उपलब्धियां बतायेगी. इस दिन स्मार्ट सिटी के शिलान्यास की भी संभावना है. राज्य ने कितना विकास किया, शिक्षा, चिकित्सा जैसी जरूरी सुविधाएं आप तक कितनी आसानी से पहुंचने लगी हैं, यह बात सरकार बता रही है, आगे भी बतायेगी.

मुख्यमंत्री रघुवर दास 1000 दिन पूरा होने पर उपलब्धि और आने वाली योजनाओं पर चर्चा करते हुए कह चुके हैं कि हमारे राज्य में गरीबी है और इस गरीबी को जड़ से मिटाना हमारा लक्ष्य है. हमें तेज निर्णय लेकर योजनाओं को तत्काल जमीन पर उतारना होगा. देश में झारखंड की विकास दर में दूसरे नंबर पर रहा, विकास की गति को और तेज करना है. झारखंड सरकार के 1000 दिन पूरे होने पर सरकारी दावे आप खूब पढ़ेंगे. इस रिपोर्ट में पढ़िये क्या है मूलभूत सुविधाओं का हाल :

रोटी

बीते दिनों झारखंड में एक महीने में पांच किसानों ने आत्महत्या कर ली. अब भी कई जिलों में किसानों की हालत खस्ता है. कहीं कर्ज तो कहीं खराब फसल, खेती के मौसम में संसाधन और सुविधा की कमी है. यह स्थिति किसानों की हिम्मत तोड़ रही है. खराब किस्म के बीज और नकली खाद इनकी फसल को बर्बाद कर रहे हैं. कलेश्वर महतो जैसे अच्छे किसान जो नयी तकनीक के सहारे वैज्ञानिक ढंग से खेती कर रहे थे, कर्ज और खराब फसल का दबाव सह नहीं पाये.

राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार, कृषि के क्षेत्र में रोजगार में करीब तीन फीसदी की कमी आयी है. निर्माण के क्षेत्र में करीब आठ फीसदी की वृद्धि हुई है. 1994 में कृषि और गैर कृषि के क्षेत्र में रोजगार करनेवालों का अनुपात 68 और 32 था. 2002 में इसमें बहुत बदलाव नहीं हुआ. यह अनुपात 62 और 38 हो गया. लेकिन, 2012-15 में यह 50-50 हो गया है. किसानों की बढ़ती आत्महत्या राज्य में रोटी और पेट की क्या स्थिति है, यह बयां करती है.

शिक्षा

राज्य में खराब होते रिजल्ट और छात्रों का प्रदर्शन ही अगर शिक्षा के स्तर का मापक है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि राज्य में शिक्षा की क्या हालत है. देश-दुनिया की आर्थिक परिस्थिति पर पकड़ रखनेवाली डॉ मुरगई झारखंड में शिक्षा की स्थिति पर चिंता जताती हैं. वह कहती हैं : राज्य में स्कूल जानेवाले बच्चों की संख्या जरूर बढ़ रही है लेकिन गुणवत्ता काफी खराब है. इसमें कई राज्यों की तुलना में झारखंड काफी नीचे है. करोड़ों खर्च करके सरकार सुविधाएं पहुंचाने का दावा करती है लेकिन अभी भी स्कूलों तक बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंच रही. मध्याह्न भोजन, स्कूल ड्रेस, जूता, स्कॉलरशिप, किताब से वंचित बच्चों की खबरें आप तक पहुंचती रहती है.

ये तो हुई उन्हें मिलने वाली सुविधाओं की बात. योग्य शिक्षकों की कमी, पारा शिक्षकों की हड़ताल और विरोध के कारण आये दिन बंद होते स्कूल बच्चों की शिक्षा पर सीधा प्रभाव डालते हैं. शिक्षक नियुक्ति को लेकर बार-बार फंसता पेंच और शिक्षकों की कमी जरा आकड़ों में समझिये स्थिति है क्या? हाईस्कूल में 75 फीसद पद खाली हैं. 23 हजार पद सृजित हैं, इनमें से 17,572 पद खाली हैं. लंबे अरसे से ही शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है. राजकीय उच्च विद्यालय में 30 वर्ष से शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गयी है. 1300 अपग्रेड हाइस्कूल में से मात्र 338 हाइस्कूल में ही शिक्षकों की नियुक्ति हुई है.

इसके साथ राजकीयकृत उच्च विद्यालय में भी 17 वर्ष में मात्र एक बार वर्ष 2010 में शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी. राज्य में सैकड़ों ऐसे हाइस्कूल हैं, जो एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. एक ओर जहां हाइस्कूल में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई, वहीं दूसरी ओर राज्य गठन के बाद से हाइस्कूल में विद्यार्थियों की संख्या लगभग दोगुनी हो गयी है. प्रति वर्ष लगभग 4.50 लाख विद्यार्थी मैट्रिक की परीक्षा में शामिल होते हैं. अगर आप इशारों में बातें समझते हैं तो इसकी हकीकत मंत्रियों के बयानों से समझ सकते हैं. नगर विकास मंत्री श्री सी.पी सिंह का ताजा बयान देखिये, उन्होंने कहा कि स्नातक कर चुके छात्रों को ठीक से आवेदन लिखना नहीं आता. आप समझिये ये किसकी कमी है, छात्रों की या शिक्षा व्यवस्था पर एक कड़क सवाल है , जो छात्र आवेदन लिख नहीं सकते उन्हें कैसे स्नातक की डिग्री मिल जाती है.

मकान

इंदिरा आवास में घोटाले की खबर नयी नहीं हैं. पंचायत में कई आवेदन लंबित हैं. कहीं छोटे तो कहीं बड़े स्तर पर घोटाला है. आज भी कई गरीब परिवार इंदिरा आवास की सुविधा से वंचित हैं. पिठौरिया में आत्महत्या करने वाले किसान बलदेव महतो के भाई सत्यनारायण महतो ने अपना घर दिखाते हुए कहा कि देखिये इस टूटी छत में मैं पांच बच्चियों के साथ रहता हूं. आय का माध्यम खेती के अलावा कुछ नहीं है आप उनकी हालत तो देख रहे हैं. नुकसान के कारण भाई ने आत्महत्या कर ली. ना घर है ना स्वच्छ भारत अभियान के तरह मिलने वाले शौचालय की सुविधा. जरूरतमंदों की जगह पक्के मकान व नौकरी पेशा वालों का नाम शामिल है. जिसे पहले भी आवास मिल चुका है, उसका भी नाम सूची में दर्ज है. पंचायत के मुखिया इसको लेकर पसोपेश में है.

चतरा जिले के पत्थरगड्डा प्रखंड की नावाडीह पंचायत में कई पक्का मकान वाले लोगों का नाम इंदिरा आवास की सूची में है. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मुख्यमंत्री रघुवर दास ने नवंबर में झारखंड फाउंडेशन वीक के दौरान आयोजित होने वाले हाउस वार्मिंग समारोह में राज्य सरकार प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2.2 लाख घरों को लाभार्थियों को सौंपने की बात कही थी.

चिकित्सा

राजधानी रांची में मौजूद बड़े अस्पताल रिम्स की व्यवस्था पर सवाल उठते रहे हैं. कभी गरीब को जमीन पर खाना देने वाली खबर सुर्खियां बटोरती हैं तो कभी मरीज के परिवार वाले लापरवाही का आरोप लगाकर हंगामा करते हैं. राज्य की राजधानी में चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल उठते हैं तो आप गांव और पंचायतों में चिकित्सा की स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं. हाल में ही चतरा जिले में अस्पताल द्वारा एंबुलेंस देने से इनकार करने पर एक व्यक्ति तथा उसकी भाभी को अपने परिजन के शव को खुद अपने कंधों पर लादकर घर ले जाना पड़ा. मीडिया में आयी खबरों के मुताबिक, चतरा जिले के सिदपा गांव में राजेंद्र उरांव को सांप ने डंस लिया था. उसे इलाज के लिए चतरा जिला सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां रविवार को उसने दम तोड़ दिया. हालांकि स्वास्थ्य मंत्री के दावों की मानें तो राज्य ने इसमें काफी सुधार किया है. मंत्री के अनुसार, स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने में पहले हम 18 नंबर पर थे, अब तीसरे नंबर पर पहुंच गये हैं.

रोजगार

झारखंड में पलायन गंभीर समस्या है. रोजगार की तलाश में यहां के लोग पंजाब, केरल, महाराष्ट्र जैसे औद्योगिक व संपन्न राज्य जाते हैं. बड़े शहरों का रुख करने वाले लोग भी कम नहीं हैं. सरकार भी इसे एक चुनौती के रूप में मानती है. आकड़े बताते हैं कि खेती में कम मुनाफा और रोजगार की कमी उन्हें दूसरे शहरों का रुख करने पर मजबूर करती है. पलायन की समस्या और बढ़ती बेरोजगारी एक बड़ा संकेत हैं. एक तरफ खेतीहर मजदूर दूसरे शहरों का रुख कर रहे हैं तो हर साल पढ़े-लिखे युवाओं की लंबी फौज खड़ी हो रही है.

जेपीएससी की परीक्षा से लेकर कई छोटी- छोटी परीक्षाएं विवाद में रहीं है. सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले छात्र कोर्ट का चक्कर लगाकर परेशान हैं. कई नियुक्तियां रद्द हुईं हैं. अब भी कई विभाग हैं जिनमें पद खाली हैं, लेकिन आवेदन की प्रक्रिया रुकी हुई है. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत सरकार पलायन रोकने की कोशिश में लगी है, लेकिन आकड़े बताते हैं कि धरातल पर इसकी स्थिति अच्छी नहीं है. 15 राज्यों जिनमें झारखंड भी शामिल है, उनमें मनरेगा की मजदूरी से न्यूनतम कृषि मजदूरी अधिक है. झारखंड की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा ने हाल ही में एक पत्र लिख कर इससे जुड़े मामल से केंद्र को अवगत कराया था. उन्होंने पत्र में बताया कि राज्य के द्वारा दिए जाने वाले 224 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी, बढ़ोतरी के बाद भी मनरेगा के तहत दिए जाने वाले 168 रुपये की मजदूरी से कहीं ज्यादा है.

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel