एजी की ओर से सरकार को भेजी गयी रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2012 में निरीक्षण के दौरान उपकरणों से छेड़छाड़ कर बिजली का इस्तेमाल करने का मामला पकड़ में आया था. निरीक्षण दल से छेड़छाड़ की वजह से सरकार को 7.22 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने का आकलन किया था. इसके बाद इस कारखाने के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी गयी और बिजली का कनेक्शन काट दिया गया. कारखाने की ओर से बोर्ड की इस कार्रवाई को हाइकोर्ट में चुनौती दी गयी.
अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद तीन दिनों के अंदर काटे गये कनेक्शन को बहाल करने का निर्देश दिया. इस आदेश के आलोक में बोर्ड ने बिजली कनेक्शन बहाल कर दिया. इसके बाद कारखाने पर दंड लगाने की प्रक्रिया शुरू की गयी. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दंड की राशि निर्धारित करने के दौरान बोर्ड के अधिकारियों ने गलत फॉर्मूले का इस्तेमाल किया. इलेक्ट्रिक सप्लाई कोड 2005 में दंड निर्धारित करने के लिए फॉर्मूला बना हुआ है.
इसमें लोड फैक्टर(एफ) को एक मानना है, लेकिन बोर्ड के अधिकारियों ने दंड की गणना के लिए बनाये गये फाॅर्मूले में लोड फैक्टर को 0.75 माना. इससे दंड के रूप में सिर्फ 6.02 करोड़ रुपये तय किया गया. दंड निर्धारित करने के लिए बने फाॅर्मूले में लोड फैक्टर को एक मान कर गणना करने पर दंड की राशि 9.79 करोड़ होती है. इस तरह बोर्ड के अधिकारियों ने गलत फाॅर्मूले का इस्तेमाल कर कारखाना को 3.76 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ पहुंचाया.