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झारखंड के मनरेगा श्रमिकों को पसंद है बेरोजगारी, क्योंकि गुजारे के लायक भी नहीं मिलता पैसा

मिथिलेश झा रांची : झारखंड में किसी भी योजना की शुरुअात जोर-शोर से होती है. लेकिन, इसे लागू करने में वह उत्साह नहीं दिखाया जाता. उस योजना को धरातल पर उतारने में भी अधिकारी और सरकार की बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती. इसलिए महात्मा गांधी रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) जैसी बड़ी और बेरोजगारी दूर करनेवाली […]

मिथिलेश झा

रांची : झारखंड में किसी भी योजना की शुरुअात जोर-शोर से होती है. लेकिन, इसे लागू करने में वह उत्साह नहीं दिखाया जाता. उस योजना को धरातल पर उतारने में भी अधिकारी और सरकार की बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती. इसलिए महात्मा गांधी रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) जैसी बड़ी और बेरोजगारी दूर करनेवाली महत्वाकांक्षी योजना झारखंड में फेल होती नजर आ रही है. अब तो आलम यह है कि लोग बेरोजगार रहना पसंद करते हैं, लेकिन मनरेगा योजना में काम नहीं करना चाहते.

इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इस योजना के तहत पर्याप्त पारिश्रमिक नहीं मिलता. झारखंड में वर्तमान में श्रमिकों को प्रतिदिन 167.97 रुपये मेहनताना मिलता है, जो देश के किसी भी राज्य की न्यूनतम मजदूरी से कम है. झारखंड में न्यूनतम मजदूरी 225 रुपये तय है.

मनरेगा योजना में गबन मामले में कार्रवाई

मनरेगा मजदूरों की पारिश्रमिक पुनरीक्षण के लिए बनी समिति ने कहा है कि देश के 15 राज्य ऐसे हैं, जहां इस योजना के तहत लोगों को पारिश्रमिक मिलता है, उन राज्यों के कृषि मजदूरों की पारिश्रमिक से कम है. इन राज्यों में झारखंड के अलावा कर्नाटक, पंजाब, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, मिजोरम और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं.

इतना ही नहीं, बिहार, मध्यप्रदेश, हरियाणा, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और सिक्किम भी उन राज्यों में शामिल हैं, जहां मनरेगा योजना में काम करनेवालों को कृषि मजदूरों के बराबर पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है. राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में मनरेगा मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी से कुछ ज्यादा पारिश्रमिक मिलता है.

मनरेगा के कार्यों में हुई भारी गड़बड़ी

ग्रामीण विकास मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव नागेश सिंह की अगुवाई में बनी समिति अगस्त, 2017 में अपनी रिपोर्ट दे सकती है. नागेश सिंह ने कहा है कि वह अपनी रिपोर्ट में मनरेगा मजदूरों की पारिश्रमिक बढ़ाने की सिफारिश करेंगे. उन्होंने अब तक जो आकलन किया है, उसके आधार पर मनरेगा का बजट 4,500 करोड़ रुपये बढ़ाने की जरूरत है.

सिंह ने यह भी कहा कि मनरेगा के तहत मिलनेवाली मजदूरी में वृद्धि का जो फॉर्मूला तय होगा, उसमें इस बात की व्यवस्था की जायेगी कि जहां लोगों को पहले से न्यूनतम मजदूरी के समान या उससे अधिक पैसे मिलते हैं, उन्हें कोई नुकसान न हो.

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अधिकारियों का दावा है कि इस वर्ष मनरेगा का बजट 48,000 करोड़ रुपये था, जो अब तक का सबसे बड़ा बजट था. लेकिन मजदूरों की पारिश्रमिक में महज 2.7 फीसदी का इजाफा किया गया. इससे झारखंड, बिहार, असम, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में प्रति श्रमिक को 1 रुपया का फायदा होगा. अन्य राज्यों में मनरेगा मजदूरों को 2 या 3 रुपये का फायदा हो सकता है.

ज्ञात हो कि एस महेंद्र देव कमेटी ने मनरेगा मजदूरों का पारिश्रमिक अकुशल कामगारों को मिलनेवाली न्यूनतम मजदूरी के बराबर करने की सिफारिश की थी, लेकिन वित्त मंत्रालय ने उन सिफारिशों को खारिज कर दिया था. देव कमेटी की अगुवाईवाले एक्सपर्ट पैनल ने कहा था कि गांवों में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स के आधार पर मनरेगा मजदूरों का मेहनताना तय किया जाये. कृषि श्रमिकों के लिए बने कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स को इसका आधार नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि यह 1983 के कंजंप्शन पैटर्न पर आधारित हैं, जो आज अप्रासंगिक हो गये हैं.

मनरेगा का आधा काम अब पंचायत समिति के हवाले

यहां बताना प्रासंगिक होगा कि झारखंड की मुख्य सिचव राजबाला वर्मा ने हाल ही में ग्रामीण विकास मंत्रालय को एक कड़ा पत्र लिखा था. इसमें उन्होंने कहा था कि राज्य के मनरेगा मजदूरों की पारिश्रमिक बढ़ा कर न्यूनतम पारिश्रमिक के बराबर की जाये. वर्तमान में झारखंड में न्यूनतम मजदूरी 224 रुपये प्रतिदिन है, जबकि मनरेगा मजदूरों को हर दिन महज 168 रुपये ही मिलते हैं.

बहरहाल, झारखंड के 24 जिलों के 263 ब्लाॅक के 4,410 ग्राम पंचायतों में 80 लाख 47 हजार कामगार हैं. राज्य में 42 लाख 21 हजार जाॅबकार्ड जारी किये गये हैं. इनमें से महज 20 लाख 83 हजार जाॅब कार्ड एक्टिव हैं. राज्य में सक्रिय कामगारों की संख्या 27 लाख 36 हजार है. झारखंड में कुल श्रम बल में अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 11.23 फीसदी है, जबकि अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी 34.95 फीसदी है.

मनरेगा के सभी वेंडरों पर मुकदमा दर्ज

लोगों को काम उपलब्ध कराने के सरकारी आंकड़ों पर गौर करेंगे, तो पायेंगे कि 100 दिन की गारंटी के मुकाबले झारखंड पिछले चार साल में वित्त वर्ष 2015-16 में सर्वाधिक 52.01 दिन ही रोजगार दे पाये. वर्ष 2013-14 में लोगों को औसतन 38.3 दिन, 2014-15 में 40.8 दिन, 2015-16 में 52.01 दिन, 2016-17 में 40.6 दिन और वित्त वर्ष 2017-18 में अब तक यानी 10 जुलाई तक हर घर को 26.25 दिन काम उपलब्ध कराया गया.

100 दिन रोजगार पानेवालों की संख्या पर नजर डालें, तो कोई भी चौंक जायेगा. जिस राज्य में 42.21 लाख जाॅब कार्ड जारी किये गये हों, उस राज्य में सबसे ज्यादा 1,74,276 लोगों को 100 दिन रोजगार दिया जा सका. यह आंकड़ा भी वर्ष 2015-16 का है.

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इससे पहले की बात करें, तो वर्ष 2013-14 में 68,861, वर्ष 2014-15 में 82,412, वर्ष 2015-16 में 1,74,276, वर्ष 2016-17 में 37,163 और ताजा वित्त वर्ष 2017-18 के छह महीनों में महज 1,349 लोगों को महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत 100 दिन रोजगार मिला है.

शारीरिक रूप से निःशक्त लोग भी मनरेगा के तहत काम करते हैं. वर्ष 2013-14 में 4,964, वर्ष 2014-15 में 5,458, वर्ष 2015-16 में 5,719, वर्ष 2016-17 में 7,851 और वर्ष 2017-18 में 3,718 निःशक्तों ने मनरेगा के तहत काम किया.

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