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लोवाडीह में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं

लोवाडीह में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं 1बीएचयू-19-गांव का एकमात्र चापानल, 20-सड़क का हाल. पानी के लिए 13-14 व पढ़ाई के लिए 20 किमी दूर जाते हैं ग्रामीण 27 किमी दूर मिलता है राशन-किरासन.भदानीनगर. पतरातू प्रखंड अंतर्गत बारीडीह पंचायत की तलहटी में बसा लोवाडीह गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित है. आदिवासी व हरिजन बहुल यह गांव […]

लोवाडीह में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं 1बीएचयू-19-गांव का एकमात्र चापानल, 20-सड़क का हाल. पानी के लिए 13-14 व पढ़ाई के लिए 20 किमी दूर जाते हैं ग्रामीण 27 किमी दूर मिलता है राशन-किरासन.भदानीनगर. पतरातू प्रखंड अंतर्गत बारीडीह पंचायत की तलहटी में बसा लोवाडीह गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित है. आदिवासी व हरिजन बहुल यह गांव विकास किरणों से कोसों दूर है. गांव के लोग पेयजल, सड़क, स्वास्थ्य उप केंद्र, जनवितरण प्रणाली, विद्यालय आदि बुनियादी सुविधाओं से दूर हैं. सड़क पर बड़े-बड़े पत्थर निकल जाने से यह अपना अस्तित्व खो चुका है. पेयजल सुविधा नहीं है. पानी भरने के लिए चापानल पर हमेशा भीड़ लगी रहती है. लोगों के बीच अक्सर बकझक भी होती रहती है. गरमी के दिनों में चापानल करीब-करीब सूख जाता है. ग्रामीणों को एक-डेढ़ किमी का फासला तय कर झरना, खेत के कुओं व चुआं से पानी लाना पड़ता है. यही वजह है कि गांव में हमेशा डायरिया, मलेरिया, पेचिस आदि बीमारी फैली रहती है. ग्रामीण राजेश बेदिया, सिकंदर मुंडा, कैलाश गंझू, विजय बेदिया, सुखनाथ मुंडा आदि ने कहा कि चुनाव के वक्त तो वोट के लिए नेता पहुंचते हैं, लेकिन जीतने के बाद कोई झांकने तक नहीं आता है.नहीं है स्वास्थ्य उप केंद्र : गांव में इलाज के लिए स्वास्थ्य उप केंद्र नहीं है. नतीजतन गांव के लोग मामूली बीमारी से लेकर अन्य बीमारियों के इलाज के लिए 13-14 किमी दूरी तय कर निम्मी उप स्वास्थ्य केंद्र पहुंचते हैं या फिर रांची स्थित ओरमांझी जाते हैं. सड़क की बदहाली के कारण ग्रामीण पतरातू प्रखंड मुख्यालय जाने से परहेज करते हैं. ग्रामीण भुवनेश्वर बेदिया,जयराम बेदिया, सहिया दीदी सहबतिया देवी, वीर मोहन करमाली आदि बताते हैं कि गंभीर अवस्था में कई मरीजों की मौत भी हो जाती है. वर्तमान में दर्जनों लोग मलेरिया से ग्रस्त हैं. पंचायत से 27 किमी दूर है लोवाडीह.अपने पंचायत बारीडीह से लोवाडीह गांव की दूरी लगभग 27 किमी है. ऐसे में ग्रामीणों को राशन, किरासन आदि सामग्री लाने में भारी फजीहत का सामना करना पड़ता है. गांव में एक ही नव प्राथमिक विद्यालय है. हाइ स्कूल या कॉलेज की पढ़ाई के लिए विद्यार्थियों को लगभग 20 किमी दूर भुरकुंडा आना पड़ता है.पेंशन सुविधा का भी बुरा हाल.गांव में सरकारी पेंशन की सुविधा का भी बुरा हाल है. गांव के काफी कम लोगों को विधवा, वृद्धा, विकलांग पेंशन मिलता है. कई ग्रामीण पात्रता के बावजूद पेंशन से वंचित हैं. जहां तक बिजली का प्रश्न है, तो आजादी के 68 वर्षों बाद दो-तीन पूर्व गांव में बिजली पहुंच चुकी है.

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