हैदरनगर : कभी पलामू व एकिकृत बिहार की शान रहा जपला सीमेंट कारखाना अब नीलामी के बाद इतिहास के पन्नों तक सीमित रह गया है. गुरुवार को पटना उच्च न्यायालय ने कारखाना को नीलाम कर दिया. नीलामी की बोली में सबसे अधिक उपेंद्र निखिल हाइटेक कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड ने 13 करोड़ 56 लाख की बोली लगाकर 1992 से बंद पड़ी जपला सीमेंट कारखाने की मशीनों व अन्य सामान के मालिक बन गये है. यह खबर जपला सीमेंट कारखाना के मजदूर व उनके परिजनों के बीच जंगल की आग की तरह फैल गयी.
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जान दे देंगे, पर कारखाना का सामान नहीं जाने देंगे
हैदरनगर : कभी पलामू व एकिकृत बिहार की शान रहा जपला सीमेंट कारखाना अब नीलामी के बाद इतिहास के पन्नों तक सीमित रह गया है. गुरुवार को पटना उच्च न्यायालय ने कारखाना को नीलाम कर दिया. नीलामी की बोली में सबसे अधिक उपेंद्र निखिल हाइटेक कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड ने 13 करोड़ 56 लाख की बोली […]
खबर मिलते ही उनके नीचे से जमीन खिसक गयी. वह अवाक रह गये. कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह जिस कारखाने को फिर से चालू होने की आस लगाकर अबतक जिंदा हैं. वह कबाड़ी में बिक जायेगा. कारखाने के मजदूर नंदू प्रसाद ने कहा कि यह कारखाना उनकी रोजी रोटी है. उनका श्रम व उनका धन उसमें लगा है. वह इसे इतनी आसानी से बर्बाद नहीं होने देंगे. मजदूर रामचंद्र चौधरी ने कहा कि सभी राजनीतिक नेताओं ने कारखाना के लोगों के साथ साथ हुसैनाबाद व पलामू के सीधे साधे लोगों को ठगने का काम किया है.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आश्वासन पर आश्वासन दिया. मगर कारखाने को लेकर कभी ईमानदार प्रयास नहीं किया. मजदूर सरयू मेहता ने कहा कि कारखाना को नीलाम करने से क्या होगा. उन्होंने कहा कि हुसैनाबाद की एक एक जनता कारखाना के सामने बैठ जायेंगे. यहां से एक भी सामान जाने नहीं देंगे. उन्होंने राज्य की सरकार जपला सीमेंट कारखाना शुरू नहीं करा सकती है, तो अन्य उद्योग की स्थापना इसी धरती पर कराने की प्रक्रिया शुरू करे.
क्या कहते हैं राजनीतिक दल के लोग
राकांपा नेता व पूर्व मंत्री कमलेश कुमार सिंह ने कहा कि सरकार की उदासीनता की वजह से आज जपला सीमेंट कारखाना समाप्त हो रहा है. उन्होंने राज्य व केंद्र की सरकार से पहल कर कारखाने को चालू कराने की मांग की है. उन्होंने कहा कि जपला सीमेंट कारखाना से हुसैनाबाद का भवनात्मक लगाव है. अनुमंडल के सभी गांव से मजदूर इसमें काम करते थे. उन्होंने मजदूरों का बकाया भुगतान कराने व कारखाना शुरू कराने की मांग की है. उन्होंने इस मामले को लेकर आंदोलन चलाने की बात कही. उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने कार्यकाल में कारखाना प्रबंधक के साथ लगातार तत्कालीन मुख्यमंत्री के साथ बैठक करायी थी. सरकार के गिर जाने के बाद मामला ठंडे बस्ते में पड़ गया.
क्या कहते हैं मजदूर नेता
जपला सीमेंट कारखाना के मजदूर नेता भोला सिंह ने कहा कि कारखाना को कभी खत्म नहीं होने दिया जायेगा. उन्होंने कहा कि पटना उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध मजदूर व हुसैनाबाद के प्रबुद्ध नागरिकों के सहयोग से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटायेंगे. उन्होंने कहा कि कारखाना यहां के मजदूरों की मान प्रतिष्ठा से जुड़ा है. इसमें हुसैनाबाद के लोगों का पसीना व व्यक्ति की भावना जुड़ी है. जपला रेलवे स्टेशन का नाम इसी कारखाने की वजह से है. इसे किसी कीमत पर खत्म नहीं होने दिया जायेगा.
फैक्ट्री की बौलिया माइंस की मशीनरी भी नीलाम
नौशाद-जितेंद्र4हुसैनाबाद(पलामू)
29 मई 1992 से बंद पलामू प्रमंडल का एकमात्र जपला सीमेंट फैक्ट्री की बौलिया माइंस की मशीनरी भी पटना उच्च न्यायालय ने नीलाम कर दिया. मशीनरी को उत्तर प्रदेश के मां विंध्यावासिनी प्राइवेट लिमिटेड ने दो करोड़, 28 लाख की बोली लगा कर अपने नाम की. नीलामी प्रक्रिया में बिहार सरकार व झारखंड सरकार के उद्योग विभाग के अधिकारी भी मौजूद थे. मालूम हो कि जपला सीमेंट फैक्ट्री के साथ-साथ बौलिया माइंस की मशीनरी व प्लांट के लिए एक साथ निविदा निकाली गयी थी. जपला सीमेंट फैक्ट्री व बौलिया माइंस दोनों जगह मिला कर पांच हजार मजदूर कार्यरत थे. इस फैक्ट्री पर करीब 20 करोड़ रुपये मजदूरों का बकाया बताया जाता है.
इसकी स्थापना ब्रिटिश शासन काल में इंग्लैंड की कंपनी मार्टिन बर्न ने 1917 में की थी. फैक्ट्री में काम कर चुके सेवानिवृत्त मजदूर व मजदूर नेता बुद्धि नारायण सिंह ने बताया कि यह हुसैनाबाद क्षेत्र नबाबो का था. फैक्ट्री की जमीन बैरिस्टर सैयद हसन इमाम की थी, जो आजादी के पूर्व कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं की सूची में थे. उन्होंने ही मार्टिन बर्न को यहां उद्योग लगाने को कहा था. फैक्ट्री की साइड सभी संसाधनों परिपूर्ण देखने के बाद मार्टिन बर्न ने फैक्ट्री को लगाने का निर्णय लिया था. इसके लिए उन्होंने अपनी जमीन को सोन वैली पोर्टलैंड के नाम लीज कर दिया था. फैक्ट्री व इसके आवासीय परिसर में उस समय बिजली थी,
जब इस क्षेत्र में बिजली नही थी. सोन नदी के किनारे स्थापित इस फैक्ट्री का अपना पावर प्लांट, बगल में लाइम स्टोन व चूना पत्थर का भंडार था. उस समय से बंदी तक फैक्ट्री का सीमेंट अपनी गुणवता के लिए देश व विदेशों में प्रसिद्ध था. इस फैक्ट्री को 1984 में सिन्हा ग्रुप द्वारा लेने के बाद फैक्ट्री व मजदूरों के भविष्य पर ग्रहण लगना शुरू हो गया था. आखिरकार इस ग्रहण ने फैक्ट्री का आस्तित्व समाप्त कर दिया.
मां विंध्यावासिनी प्रा लि (उत्तरप्रदेश) ने मशीनरी को 2.28 करोड़ की बोली लगा कर अपने नाम किया
नीलामी प्रक्रिया में बिहार सरकार व झारखंड सरकार के उद्योग विभाग के अधिकारी भी मौजूद थे
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