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शरद पूर्णिमा के साथ महर्षि वाल्मीकि जयंती मनायी गयी

शरद पूर्णिमा के साथ महर्षि वाल्मीकि जयंती मनायी गयी

भंडरा़ प्रखंड के अंबेरा गांव में शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्रद्धा और भक्ति के साथ सत्यनारायण भगवान की पूजा-अर्चना की गयी. इसी अवसर पर रामायण के रचयिता आदि कवि महर्षि वाल्मीकि की जयंती भी हर्षोल्लास के साथ मनायी गयी. कार्यक्रम में विश्व हिंदू परिषद मार्गदर्शक मंडल संयोजक सह अखिल संत समिति के प्रांत अध्यक्ष स्वामी कृष्ण चैतन्य ब्रह्मचारी ने शरद पूर्णिमा की महिमा और महर्षि वाल्मीकि के जीवन दर्शन पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि महर्षि वाल्मीकि प्रजापति प्रचेता के दसवें पुत्र थे. वे केवल कवि ही नहीं, बल्कि दिव्य अस्त्रों के ज्ञाता और महान तपस्वी थे. उनके ही प्रयासों से लव-कुश जैसे तेजस्वी, विद्वान और पराक्रमी पुत्र बने. स्वामी ब्रह्मचारी ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि के कारण ही हम भगवान श्रीराम के आदर्श, मर्यादा और उदार चरित्र से परिचित हुए. रामायण आज भी मानव जीवन के लिए मार्गदर्शक ग्रंथ के रूप में पूजनीय है. उन्होंने बताया कि जब माता सीता को समाज से बहिष्कृत होना पड़ा, तब महर्षि वाल्मीकि ने उन्हें अपने आश्रम में आश्रय दिया, जहां लव-कुश का जन्म हुआ. उनके संस्कार और शिक्षा के बल पर ही लव-कुश ने भगवान श्रीराम की सेना तक को परास्त किया. स्वामी जी ने कहा कि यद्यपि महर्षि वाल्मीकि का जन्म मेहतर जाति में हुआ था, परंतु अपने तप, ज्ञान और योगबल से उन्होंने यह सिद्ध किया कि कर्म ही व्यक्ति की वास्तविक पहचान है. इस अवसर पर रामकृत यादव, दशरथ यादव, आकाश यादव, अमित कुमार यादव, नारायण यादव, भोला यादव, सुनील कुमार यादव, लक्ष्मी देवी, शीला देवी, मीना देवी, बसंती देवी, मंजू देवी, अमृता देवी, श्रुति कुमारी, होलिका कुमारी, रूपा देवी समेत अनेक श्रद्धालु उपस्थित थे.

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