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दो हजार से ज्यादा बॉक्साइट ट्रकों का परिचालन बंद, परेशानी

लोहरदगा : लोहरदगा जिला में 10 महीने से दो हजार से ज्यादा बॉक्साइट ट्रकों का परिचालन बंद है. नतिजन या तो ट्रक मालिक अपने ट्रकों को औने-पौने दाम पर बेच रहे हैं या फिर इस ट्रक के धंधे से मुक्ति पाने के फिराक में लगे हैं. मिली जानकारी अनुसार अब तक लगभग 300 ट्रकों को […]

लोहरदगा : लोहरदगा जिला में 10 महीने से दो हजार से ज्यादा बॉक्साइट ट्रकों का परिचालन बंद है. नतिजन या तो ट्रक मालिक अपने ट्रकों को औने-पौने दाम पर बेच रहे हैं या फिर इस ट्रक के धंधे से मुक्ति पाने के फिराक में लगे हैं. मिली जानकारी अनुसार अब तक लगभग 300 ट्रकों को फाइनांशर खींच चुके हैं. किस्त नहीं देने के कारण ज्यादातर ट्रक ओनर डीफॉल्टर हो चुके हैं. कई ट्रक मालिकों ने तो अपने पुराने ट्रकों को कबाड़ी में कटवा कर बेच दिये. हिंडालको कंपनी की मुरी फैक्ट्री एक हादसे के बाद लगभग 10 महीने से बंद है.

इसका सीधा प्रभाव लोहरदगा के व्यवसाय पर पड़ा है. बाजार में जो रौनक हुआ करती थी वो बॉक्साइट ट्रकों के कारण ज्यादा थी लेकिन वर्तमान समय में बॉक्साइट खनन और परिवहन दोनों बंद है. ऐसी स्थिति में लोहरदगा के बाजार में मंदी हर ओर देखी जा रही है. ट्रक व्यवसायी कर्ज के बोझ तले दबे हैं. इनकी स्थिति बद से बदतर हो गयी है.
उनके लिए टैक्स चुकाना भी मुश्किल हो गया है. इंश्योरेंश अधिकतर वाहनों का फेल हो चुका है. ट्रक ओनरों ने अपने चालकों तथा सह चालकों की छुट्टी कर दी है. अधिकतर ट्रक चालक दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके हैं. जो थोड़े बहुत बचे हैं वे भी खेती-बारी कर अपना जीवनयापन कर रहे हैं. ट्रक ओनरो का कहना है कि लोहरदगा, गुमला, लातेहार का इलाका पूरी तरह बॉक्साइट पर आधारित है और पूरा बाजार इसी से नियंत्रित होता है. कहने को तो यहां बड़े-बड़े नेता हैं लेकिन जब कभी जरूरत होती है तो ये नेता गधे की सिंग की तरह गायब हो जाते हैं.
ट्रक ओनरों के कई एसोसिएशन भी हैं लेकिन इनमें से अधिकांश एसोसिएशन विज्ञप्ति छाप है. अखबारों में विज्ञप्ति देकर इनका कर्तव्य समाप्त हो जाता है. ट्रक ओनरों का कहना है कि आज लोहरदगा कि एक बड़ी आबादी इस व्यवस्था से त्रस्त है. लेकिन इसके निदान के लिए न तो अधिकारी आगे आ रहें हैं और न ही जनप्रतिनिधि ही अपनी ओर से कोई प्रयास कर रहे हैं. विधानसभा चुनाव में यह एक अहम मुद्दा होगा.
बड़े-बड़े नेताओं के रहने के बावजूद यहां के ट्रक ओनर बदहाली के कगार पर पहुंच गये हैं लेकिन नेताओं ने कभी भी इनकी समस्याओं के निदान के लिए ईमानदारी से प्रयास नहीं किया है. इससे ट्रक मालिकों के साथ-साथ ड्राइवर, खलासी, मजदूर, लोडर, अनलोडर, गैरेज, ढाबा, टायर दुकानदार सभी परेशान हैं.

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