1901 की जनगणना में कुड़मी-महतो समेत अन्य जनजातियों को “एबोरिजिनल ” बताया गया
Jamshedpur News :
आदिवासी कुड़मी समाज के केंद्रीय महासचिव अधिवक्ता सुनील महतो ने राज्य सरकार पर कुड़मी समुदाय को लेकर गलत जानकारी देने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि 1901 की जनगणना में कुड़मी महतो समेत अन्य जनजातियों को “एबोरिजिनल ” (मूल निवासी) बताया गया था. सीएनटी एक्ट 1908 भी एबोरिजिनल रैयतों की जमीन की सुरक्षा के लिए बना था. उस समय एसटी, एससी, ओबीसी या आदिवासी शब्द प्रचलन में नहीं थे. सुनील महतो ने कहा कि 1913 में कस्टमरी लॉ लागू होने के बाद कुड़मी-महतो समेत अन्य ट्राइबल रैयतों को सीएनटी एक्ट में एबोरिजिनल रैयत के रूप में शामिल किया गया, जो 5 नवंबर 1955 तक लागू था. उस समय सीएनटी एक्ट में एसटी शब्द का उल्लेख नहीं था.उन्होंने सवाल उठाया कि झारखंड सरकार किस आधार पर दावा कर रही है कि सीएनटी एक्ट में कुड़मी को आदिवासी नहीं माना गया. उन्होंने कहा कि संविधान में “आदिवासी ” शब्द नहीं है और न ही किसी को आदिवासी होने का प्रमाण पत्र दिया जाता है.
सुनील महतो ने आरोप लगाया कि झारखंड में कुड़मियों को लेकर राजनीतिक साजिश की गयी है. उन्होंने कहा कि ईसाई मिशनरियों ने कुड़मी महतो समुदाय के बड़े पैमाने पर धर्मांतरण की कोशिश की, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो सके. एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे में भी स्पष्ट किया गया है कि कुड़मी और कुरमी अलग हैं.उन्होंने कहा कि 1793 से 1955 तक कुड़मी रैयतों की जमीन किसी को हस्तांतरित नहीं की जा सकती थी. उनकी जमीन हड़पने के लिए ही उन्हें एसटी सूची से बाहर किया गया.
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