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jamshedpur : कांस में दिखेगी बारीडीह के युग यादव की फिल्म बदगुमान

फिल्म ‘बदगुमान’ 20 मई को फ्रांस के कांस में आयोजित फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित की जायेगी

रीमा डे, जमशेदपुर शहर के युवाओं ने मुंबई नगरी में जाकर सिर्फ पर्दे पर ही नहीं, बल्कि पर्दे के पीछे भी अपनी प्रतिभा का लोहा का मनवाया है. जी हां, हम बात कर रहे हैं बारीडीह बस्ती की भोजपुर कॉलोनी के रहने वाले युवा निर्देशक, राइटर युग यादव की. 25 साल के युग के निर्देशन में बनी पहली फीचर फिल्म ‘बदगुमान’ 20 मई को फ्रांस के कांस में आयोजित फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित की जायेगी. युग यादव ने प्रभात खबर से बातचीत में बताया कि उनकी दस साल की तपस्या और संघर्ष को अब कांस में पूरी दुनिया देखेगी. बदगुमान फिल्म के निर्माता मेघना हिरावत उपाध्याय हैं. छायांकन निलेश केनी, संगीत विदित रावत, कलाकार त्रिपुरारी यादव, ऋतिका सिंह कंवर व जीतू सम्राट हैं. उन्होंने बताया कि ”बदगुमान” मेरे अंदर पलती उस आग का नतीजा है, जो तब लगी जब लोगों ने मुझे शक भरी निगाहों से देखा. ताने मारे गये. लेकिन, शायद वही शक और ताने मेरी ताकत बन गये. अब जब यह फिल्म कांस में प्रदर्शित होने जा रही है, तो मैं उन सबका शुक्रिया कहना चाहता हूं, जिन्होंने कभी मुझ पर विश्वास नहीं किया. क्योंकि, वही शक मेरे हौसले की नींव बना. युग ने कहा कि “जब इरादे मजबूत हों, तो बस्ती की गलियों से निकलकर भी सपने सात समंदर पार पूरे होते हैं.

मां ने 2015 में पांच हजार रुपये देकर मुंबई भेजा

युग ने बताया कि मां लाखा प्रतिदेवी ने उनकी प्रतिभा देखकर हमेशा प्रोत्साहित किया. उन्होंने घर के खर्च से पैसा बचा कर पांच हजार रुपये मुंबई जाने के लिए दिया. सिदगोड़ा स्थित एसडीएसएम स्कूल से 10वीं पास करने के बाद वह 2015 में मुंबई चले गये. यहां एक-एक कदम बढ़ाते गये. कई चुनौतियां मिलीं. इस बीच सीरियल में काम मिला. सावधान इंडिया, कुमकुम भाग्या, कुंडली भाग्या, बहू सिल्क हमारी के डायलॉग लिखे. लेकिन, फ्रंट में पहचान नहीं मिली. घोष लेखक के रूप में ही उन दिनों काम किया है. उनके पिता लाल मोहन सिंह इंडियन आर्मी में थे, जो अब टाटा स्टील कंपनी में कार्यरत हैं. उनका एक छोटा भाई भी है.

शिक्षक शशि शर्मा हैं गुरु

युग ने बताया कि शिक्षक शशि शर्मा ने उन्हें हमेशा सहयोग किया. वे आज भी उनके गुरु हैं. उन्होंने वर्ष 2011 में जब लिखना शुरू किया, तो शशि शर्मा सर ही उसमें सुधार करते थे. तुलसी भवन में हुए युवा रचनाकार में शामिल हुए थे, जिसमें विजयी रहे थे.

फिल्म की यह है कहानी

बदगुमान इंसानी रिश्तों की पेचीदगियों, आंतरिक संघर्ष और सामाजिक वास्तविकताओं की पड़ताल करती फिल्म है. यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक दर्पण है, जो दर्शकों को खुद से रूबरू कराती है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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