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झारखंड चुनाव : ‘नवरत्नों’ ने डुबोई रघुवर दास की नैया ? जानें कौन हैं वो दिग्गज

भाजपा खास तौर से निवर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास का अभेद्य दुर्ग जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट पर बतौर निर्दलीय प्रत्याशी सरयू राय की भारी मतों से जीत आम लोगों के बीच गंभीर चर्चा का विषय है. हर चौक-चौराहे पर लोग अपने-अपने तरीके से विश्लेषण कर रहे हैं. जमशेदपुर पूर्वी से पिछले 25 वर्षों से लगातार पांच […]

भाजपा खास तौर से निवर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास का अभेद्य दुर्ग जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट पर बतौर निर्दलीय प्रत्याशी सरयू राय की भारी मतों से जीत आम लोगों के बीच गंभीर चर्चा का विषय है. हर चौक-चौराहे पर लोग अपने-अपने तरीके से विश्लेषण कर रहे हैं. जमशेदपुर पूर्वी से पिछले 25 वर्षों से लगातार पांच बार विधायक और पिछले पांच वर्षों से मुख्यमंत्री रहते हुए रघुवर दास का पराजित होना महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम है. रघुवर दास के खिलाफ बिरसानगर में घर ताेड़े जाने का मामला चुनाव में काफी जाेर से उछला. लाेगाें का कहना था कि रघुवर दास के करीबियाें ने 86 बस्ती की जमीन पर बड़े-बड़े महल खड़े कर लिये, जबकि उनकी जीवन भर की पूंजी लगाकर बनायी गयी झाेपड़ियाें काे उजाड़ दिया गया. भाजपा के अंदर भी रघुवर दास के करीबी नेताओं-कार्यकर्ता के प्रति गहरा आक्रोश था, जो अब खुल कर सामनेे आ रहा है. भाजपा के नेता-कार्यकर्ता की बड़ी जमात अब रघुवर दास के ‘किचेन कैबिनेट’ के सदस्यों, जिन्हें ‘नवरत्न’ की संज्ञा से विभूषित किया गया था, के खिलाफ भी मुखर हो रही है. आरोप है कि नवरत्न कहे जानेवाले रघुवर दास के इन करीबियों की निष्क्रियता, एरोगेंट नेचर और दुर्व्यवहार के कारण जनता के बीच रघुवर दास की लोकप्रियता खत्म होती गयी.

रामबाबू तिवारी: रघुवर दास के नवरत्नों में से एक रामबाबू तिवारी के बारे में कहा जाता है कि सरयू राय और रघुवर दास के बीच बढ़ी तल्खी का मुख्य कारण रहे. लगातार सरयू राय के खिलाफ बयानबाजी की. साथ ही रघुवर दास को लगातार गुमराह कर उकसाने का काम किया. वहीं बर्मामाइंस के रघुवर नगर में चुनाव प्रचार के दौरान रामबाबू समर्थकों द्वारा सरयू राय से भिड़ना भी उनके प्रति लोगों में सहानुभूति जगाने का काम कर गया. आसपास के लोगों में रामबाबू के व्यवहार को लेकर नाराजगी बढ़ती गयी. कई राजनीतिक दलाें ने उनके बनाये घर पर टिप्पणी की.

रामबाबू तिवारी का जवाब : मैं मुख्यमंत्री के आवास पर कभी भी बैठकी के लिए नहीं गया. अपने क्षेत्र में लोगों के बीच सक्रिय रहा. रही बात सरयू राय पर बयान देने की, तो राजनीतिक दल के कार्यकर्ता हाेने के कारण आरोप लगाये. सही बात यह है कि कुछ लोग अपनी गलतियां छिपाने के लिए तरह-तरह की बयानबाजी कर रहे हैं. रघुवर दास के साथ उनका संबंध 30 साल पुराना है.

पवन अग्रवाल: मारवाड़ी समाज के समीकरण को सम्मान देते हुए रघुवर दास ने मुख्यमंत्री बनने के डेढ़ साल के अंदर ही श्री श्याम संगठन चलानेवाले पवन अग्रवाल को अपना विधायक प्रतिनिधि बनाया. इसके पहले मिथिलेश सिंह यादव प्रतिनिधि थे, लेकिन उन्हें हटाकर पवन अग्रवाल को यह मौका दिया गया. चर्चा सामने आयी कि रघुवर दास के परिवार के लोगों से मिथिलेश सिंह यादव की कुछ व्यक्तिगत कारणों से अनबन हाे गयी थी. आरोप है कि विधायक प्रतिनिधि बनने के बाद पवन अग्रवाल खुद को सुपर सीएम समझ बैठे. कई बार कुछ विवादों को सुलझाने में श्री अग्रवाल लोगों को फटकारने लगे और अपशब्द तक कह देते थे. भाजपा के एक कार्यकर्ता से चंदा मांगने का विवाद काफी तूल पकड़ा. यह ऑडियो चुनाव के दौरान भी खूब वायरल रहा. श्री अग्रवाल की करतूतों के कारण वर्ष 2016 में सीतारामडेरा थाना में जमकर बवाल हुआ था, जब तत्कालीन मंत्री सरयू राय अपने समर्थक को छुड़ाने के लिए सीतारामडेरा थाना तक पहुंच गये थे. श्री अग्रवाल के कारण भी रघुवर दास की छवि प्रभावित हुई.

पवन अग्रवाल का जवाब : रघुवर दास के साथ उनका करीबी संबंध रहा है. सामाजिक पहचान को प्रभावित करने के उद्देश्य से लोग तरह-तरह के आरोप लगा रहे हैं. इनमें कोई सच्चाई नहीं है.

गुंजन यादव: भाजयुमो के प्रदेश महामंत्री गुंजन यादव नवरत्नों में ओबीसी चेहरा रहे हैं. चर्चा है कि इनके कारण भाजपा के कई पुराने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से रघुवर दास की दूरी बन गयी. रघुवर दास के शहर आते ही गुंजन साये की तरह उनके साथ रहते थे. गुंजन की इजाजत के बिना कोई पार्टी कार्यकर्ता या फरियादी रघुवर दास तक पहुंच नहीं सकता था. हवाई राजनीति के चक्कर में इनकी जमीनी पकड़ कमजोर हो गयी. यादव वोट अबकी चुनाव में भाजपा के पक्ष में परिवर्तित नहीं हो सका.

गुंजन का जवाब : ऐसे आरोप लगानेवालों को सामने आकर प्रमाण देना चाहिए. मुख्यमंत्री रहते रघुवर दास अपने कार्यालय को तब तक नहीं छोड़ते थे, जब तक वे मिलने आये एक-एक व्यक्ति से नहीं मिल लेते थे. आपसी विवाद बढ़ाने के लिए इस तरह के आरोप लगाना उचित नहीं है.

गुरुदेव सिंह राजा: रघुवर दास के नवरत्नों में से गुरुदेव सिंह राजा को राज्य अल्पसंख्यक आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया था. बड़े ओहदे पर होने के बावजूद सिख समाज में इनकी पकड़ अत्यंत कमजाेर रही. नये सिख युवाओं को भाजपा से जोड़ पाने में पूरी तरह से विफल रहे और चुनाव में भी अपनी उपयोगिता साबित नहीं कर सके. साकची स्थित इनकी आइसक्रीम पार्लर दुकान का प्रकरण भी बतौर सीएम रघुवर दास की छवि को नुकसान पहुंचाने वाला रहा, जहां अतिक्रमण हटाने गये जमशेदपुर अक्षेस के अधिकारियों के साथ भाजपा समर्थकों ने मारपीट और अभद्रता की. उस प्रकरण का वीडियो भी सोशल मीडिया पर चुनाव के दौरान आग में घी का काम करता रहा.

गुरुदेव सिंह राजा का जवाब : फोन नहीं उठाया.

मिथिलेश सिंह यादव: ओबीसी समाज के मिथिलेश सिंह यादव लंबे समय तक रघुवर दास के विधायक प्रतिनिधि रहे. तीन वर्ष पूर्व इन्हें हटाकर पवन अग्रवाल को जिम्मेदारी सौंपी गयी और इनको भाजपा में प्रदेश कार्यसमिति का जिम्मेदारी सौंपी गयी. साफ छवि होने के बावजूद ये मुख्यधारा की राजनीति से कटे रहे और वास्तविक कमियों से रघुवर दास को अवगत नहीं कराया.

मिथिलेश का जवाब : मुझे कुछ नहीं कहना.

कुलवंत सिंह बंटी: खादी बोर्ड के सदस्य की जिम्मेदारी संभालते ही कुलवंत ने मीडिया से मधुर संबंध स्थापित किये. लेकिन संवादहीनता का मुख्य कारक भी रहे. कुलवंत सिंह बंटी इससे पहले से ही रघुवर दास के मीडिया प्रबंधन का कार्य देखते थे. इनकी छवि एक कॉर्पोरेट मीडिएटर की बन चुकी थी. वहीं टाटा मोटर्स में स्थायी कर्मियों की सूची में नाम नहीं होने के बावजूद इनका स्थायीकरण भी रघुवर दास के खिलाफ चुनाव अभियान में एक सशक्त मुद्दा बना, जिससे रघुवर दास को नुकसान हुआ.

कुलवंत सिंह बंटी का जवाब : साधारण कार्यकर्ता के रूप में संगठन में जीवन समर्पित कर दिया. बड़े-छाेटे सभी का सम्मान किया. कोई किसी तरह का आरोप लगा दे, यह उचित बात नहीं. प्रमाण भी होना चाहिए.

टुनटुन सिंह: रघुवर दास के भाई मूलचंद साहू और भतीजे कमलेश साहू पर पुलिसिया लाठीचार्ज के मुख्य सूत्रधार माने जाते हैं. लगातार रघुवर दास को गलत फीडबैक दिया. परिवार के अंगरक्षक और हथियार की वापसी मीडिया में सुर्खियां बनीं, जिसकी प्रतियां चुनाव में क्षेत्र में घर-घर बांटी गयी.

टुनटुन सिंह का जवाब : कोई विवाद नहीं है. मुझे कुछ नहीं कहना.

सतबीर सिंह सोमू: मुख्यमंत्री के शहर पहुंचने से रांची लौटने तक सतबीर सिंह साेमू साथ रहते. फोटो और वीडियो को लगातार फेसबुक पर शेयर करते रहते थे. संगठन की बातों को हमेशा हल्के ढंग से लेते थे. मजाकिया माहौल में लोगों के साथ अंदर की बातें शेयर किया करते थे. भाजपा में रहते अन्य दलों के साथ सक्रिय संबंध बनाये रखा. इनकी गतिविधियों से सीएम की छवि को नुकसान पहुंचा.

सतबीर सिंह सोमू का जवाब : मैं शुरू से कार्यकर्ता रहा. आज भी हूं. मुझे कोई जिम्मेदारी नहीं दी गयी. बावजूद काम करता रहा. रही बात दूसरे दलों के नेताओं के साथ संबंध मेरा निजी मामला है. रघुवर जी के साथ रहनेवालों ने पार्टी को अपनी जागीर बना ली थी.

मणींद्र चौधरी: बतौर मुख्यमंत्री रघुवार दास के निजी सचिव की जिम्मेदारी संभालने वाले मणींद्र चौधरी द्वारा आम लोगों के साथ दुर्व्यवहारों की शिकायतों की लंबी फेहरिस्त है. रघुवर दास ने क्षेत्र की जनता की समस्याओं के समाधान के लिए एग्रिको स्थित आवास में कार्यालय खोला था. वहां की जिम्मेदारी मनींद्र चौधरी को सौपी. आरोप है कि समस्या संबंधी आवेदन लेकर एग्रिको आवास पहुंचने वाले लोगों के साथ श्री चौधरी का व्यवहार काफी खराब रहता था. लोगों को डांट-फटकार कर वापस करने या फिर उनके कार्यां को पेंडिंग में डालने के आरोप भी हैं. इससे काफी लोग नाराज हुए. इसका रघुवर दास को व्यक्तिगत नुकसान हुआ.

मणींद्र चौधरी का जवाब : मुझे जो काम दिया गया था, मैंने निष्ठा के साथ किया. जितना मैंने किया, किसी ने नहीं किया. जिनको वोट दिलाने की जिम्मेदारी थी, वे फेल हुए और अब मुझ पर आरोप लगा रहे हैं. वोट के बीच उनके काम को लेकर टिप्पणी क्यों? यदि इन बातों को प्रकाशित करने के लिए लिखा जा रहा है, तो मेरा जवाब है कि ‘मुझे कुछ नहीं कहना.’

Prabhat Khabar Digital Desk
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