19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जमशेदपुर के 100साल

शंकर लाल महासचिव, सोनारी छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक समिति 907 में टाटा स्टील की स्थापना के समय संचार तंत्र व मीडिया की भूमिका सीमित थी. उस समय कुर्ला-हावड़ा एक्सप्रेस एवं टाटा-नागपुर पैसेंजर चला करती थी. छत्तीसगढ़ी लोग ट्रेन में बैठकर कमाने-खाने के लिए घरों से निकले तो पता चला कि कालीमाटी में भी कारखाना खुला है. लोग […]

शंकर लाल
महासचिव, सोनारी छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक समिति
907 में टाटा स्टील की स्थापना के समय संचार तंत्र व मीडिया की भूमिका सीमित थी. उस समय कुर्ला-हावड़ा एक्सप्रेस एवं टाटा-नागपुर पैसेंजर चला करती थी. छत्तीसगढ़ी लोग ट्रेन में बैठकर कमाने-खाने के लिए घरों से निकले तो पता चला कि कालीमाटी में भी कारखाना खुला है.
लोग जमशेदपुर आने लगे और टिस्को में नौकरी करने लगे. 1910 के आसपास छत्तीसगढ़ी लोगों का आना प्रारंभ हुआ. उस समय किसी के पास अपना घर द्वार नहीं था. लोग झोपड़ी बनाकर रहने लगे. सोनारी में 12-12 घरों की एक बस्ती बसने लगी. यह क्षेत्र नदी के किनारे होने के कारण पूरा जंगल था. जंगली जानवरों का भय बना रहता था. उस बस्ती को आज लोग बारह गोलाई के नाम से जानते हैं. जनसंख्या बढ़‍ी तो 90 घरों की एक बस्ती बनने लगी.
बारह गोलाई में प्रमुख शिवलाल बस्ती, पंचानन बस्ती, आभा मोहल्ला तथा 90 घर वाली बहुत सारी बस्तियां है जिसमें बुधराम मुहल्ला, भागवत बस्ती, सकताहा मुहल्ला, मरार पाड़ा, मनबोध बस्ती, कुम्हार पाड़ा एवं बैरझाबड़ा प्रमुख है. सोनारी के अलावा मानगो, गाढ़ाबासा, टुईलाडुंगरी, काशीडीह, जुगसलाई आदि क्षेत्र में भी लोग बसने लगे. कालांतर में टाटा स्टील ने छत्तीसगढ़ी लोगों को कंपनी में नौकरी दी. उनकी सुख-सुविधा का ख्याल रखा. उनकी बस्ती एवं घरों में नागरिक सुविधाएं जैसे बिजली, पानी, सड़क तथा नाली आदि की व्यवस्था की. सामाजिक उत्थान के लिए सामुदायिक भवनों के निर्माण के लिए जमीन दी. जो आज छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक समिति (ओल्ड सीपी क्लब 1938 में), न्यू सीपी क्लब, सीपी समिति मिडिल स्कूल, कबीर मंदिर आदि के रूप में विद्यमान है.
आज टाटा स्टील में समाज की चौथी पीढ़ी पूरी ईमानदारी एवं निष्ठा से काम कर रही है. टाटा स्टील के योगदान से ही समाज के लोगों की शैक्षणिक, राजनीतिक, खेलकूद तथा सांस्कृतिक विरासत आज भी जीवित है. इसके लिए छत्तीसगढ़ी समाज टाटा स्टील का हमेशा ऋणी रहेगा. मेरे परदादा भोला कोस्टा 1915 में टाटा आये थे.
सोनारी में जंगल काट कर अपना घर बनाया. उस समय बस्तियों में सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा आदि की व्यवस्था नहीं थी. जरूरत के सामानों के लिए लोग साकची बाजार पैदल ही जाते थे. उस समय की तुलना में आज शहर चकाचौंध हो गया है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें