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जंग खा रही हैं करोड़ों की बोरिंग मशीनें
आवंटन के अभाव में कबाड़ बनती जा रही हैं बोरिंग की गाड़ियां हजारीबाग : पेयजल स्वच्छता की यांत्रिकी विभाग को पिछले पांच साल में आवंटन नहीं मिला. इस वजह से पांच करोड़ की मशीन बरबाद हो गयी. इन मशीनों से जिले में खराब चापनल व नयी बोरिंग की जाती थी.खराब होनेवाली मशीनों में यूनीसेफ द्वारा […]
आवंटन के अभाव में कबाड़ बनती जा रही हैं बोरिंग की गाड़ियां
हजारीबाग : पेयजल स्वच्छता की यांत्रिकी विभाग को पिछले पांच साल में आवंटन नहीं मिला. इस वजह से पांच करोड़ की मशीन बरबाद हो गयी. इन मशीनों से जिले में खराब चापनल व नयी बोरिंग की जाती थी.खराब होनेवाली मशीनों में यूनीसेफ द्वारा प्रदत हाइडरोफ्रक्चर यूनिट व बोरिंग की चार मशीनें शामिल हैं, जिनकी क्षमता अलग-अलग है. पिछले कई सालों से मशीन लगी गाड़ियां जंग खा रही हैं. गाडियों के टायर खराब हो चुके हैं. वहीं मशीन का इंजन कबाड़ होने लगे हैं.
मामूली खर्च में चापानल की मरम्मत होती: हाइडरोफ्रक्चर यूनिट हजारीबाग पेयजल स्वच्छता विभाग को वर्ष 2000 मिली थी. यूनीसेफ के सहयोल से पूरे झारखंड के लिए ऐसी तीन यूनिटें खरीदी गयी थी.
इस यूनिट से खराब बोरिंग को पानी का दबाव देकर ठीक करना था. इसकी क्षमता इतनी थी कि यदि आसपास में तीन चार चापानल एक ही जल स्त्रोत से जुडे हों और किसी कारणवश बंद हो गया हो, तो इस मशीन से एक साथ सभी चापानलों को चालू किया जा सकता था.
बंद चापानल की मरम्मत में मात्र दस से पंद्रह हजार रुपये खर्च आते, जबकि नया चापानल बनाने में लगभग 45 हजार रुपये का खर्च पड़ता है, लेकिन सरकार ने 2010 से इस यूनिट को चलाने के लिये आवंटन देना ही बंद कर दिया है.
क्या कहते हैं अधिकारी : कार्यपालक अभियंता पीसी दास ने कहा कि हाइडरोफ्रक्चर यूनिट के लिये पिछले पांच साल से आवंटन नहीं मिला है. विभाग की रिग मशीन चलाने के लिये भी इस वर्ष आवंटन नहीं मिला.
…तो बरबाद नहीं होती करोड़ों की मशीन
चार रिग मशीन का उपयोग जिले चापानल बोरिंग में की जाती थी, इसमें सुपर रिग मशीन भी है.मशीन से एक हजार फीट तक बोरिंग की जा सकती है. एक मशीन की कीमत 80 से 90 लाख रुपये है, लेकिन पिछले एक साल में इस मशीन को चलाने के लिये सरकार से आवंटन नहीं मिला. नतीजा करोड़ों की मशीन के टायर सहित कई कल-पुर्जे जंग खाकर सड़ गये हैं.
जानकारी के अनुसार वर्ष 2013-14 में मात्र 200 चापानल खोदने का सरकार की ओर से लक्ष्य मिला था. वर्ष 2014-15 में यह लक्ष्य घट कर मात्र 150 चापानल रह गया. वित्तीय वर्ष 2015-16 में विभाग को सरकार की ओर से आवंटन हीं नहीं मिला. विधायक, सांसद व अन्य मद से चापानल खुदवाये गये.
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