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दो बार हजारीबाग आये थे गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर

रवींद्रनाथ टैगोर ने हजारीबाग की पहली यात्रा 1885 व दूसरी यात्रा 1903 में की थी. यह जानकारी महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर पर शोध करने वाले अमल सेन गुप्ता ने दोनों यात्राओं के जीवंत पहलुओं पर बातचीत के दौरान दी. इसे टैगोर बायोग्राफी में भी शामिल किया गया है. टैगोर जयंती पर यह रिपोर्ट. हजारीबाग : रवींद्रनाथ […]

रवींद्रनाथ टैगोर ने हजारीबाग की पहली यात्रा 1885 व दूसरी यात्रा 1903 में की थी. यह जानकारी महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर पर शोध करने वाले अमल सेन गुप्ता ने दोनों यात्राओं के जीवंत पहलुओं पर बातचीत के दौरान दी. इसे टैगोर बायोग्राफी में भी शामिल किया गया है. टैगोर जयंती पर यह रिपोर्ट.
हजारीबाग : रवींद्रनाथ टैगोर ने हजारीबाग में बिताये दस दिनों का जिक्र अपने लेख दस दिनेर छुट्टी में किया है. इस लेख में हजारीबाग की आबोहवा, जीवन शैली, शहर का वातावरण, संस्कृ ति व अपने अनुभव को बताया. रवींद्रनाथ टैगोर अपनी भतीजी इंदिरा देवी को सिस्टर एलोसिया से मिलाने के लिए पहली बार हजारीबाग आये थे. अप्रैल 1885 ई में कोलकाता से मधुपुर, गिरिडीह होते हुए हजारीबाग आये थे.
फुसफुस गाड़ी (चार चक्का वाला रथ, दो आदमी आगे से खींचता था व दो आदमी पीछे से धक्का देता है) में सवार होकर आये थे. हजारीबाग आने के संबंध में दस दिनेर छुट्टी लेख से स्पष्ट होता है कि भतीजी इंदिरा देवी लोरेटो कान्वेंट कोलकाता में पढ़ती थी. वहीं की शिक्षिका सिस्टर एलोसिया इंदिरा देवी को बहुत प्यार करती थी.
सिस्टर एलोसिया का स्थानांतरण हजारीबाग कान्वेंट (वर्तमान में पीटीसी प्राचार्य भवन) स्कूल हो गया था. रवींद्रनाथ टैगोर को सिस्टर एलोसिया से इंदिरा को मिलाया था. इसलिए हजारीबाग में आकर उस समय जुलू पार्क पीडब्ल्यूडी डाक बंगला (वर्तमान में पीटीसी मैदान के बगल में) आकर ठहरे थे. यहां से हजारीबाग कान्वेंट स्कूल भी सामने था. उस समय वे छह से 10 दिन तक यहां रुके थे. हजारीबाग से कोलकाता जाने के बाद रवींद्रनाथ टैगोर ने 10 दिन की छुट्टी के लेख में पूरे हजारीबाग का जीवंत चित्रण किया है.
रवींद्रनाथ टैगोर ने हजारीबाग शहर को परिस्कार परिछन्न (साफ-सुथरा), दूरे पहाड़ (आसपास में पहाड़), कोलकाता की तरह दैत्याकार भवन नहीं थे, बल्कि छोटे-छोटे घर थे. चारों ओर गंभीर शांति थी. जिस तरह बंगाली लोग ग्रुप में आपस में तर्क-वितर्क करते हैं, उस तरह यहां के बंगाली नहीं करते. दोपहर में डाक बंगले के बरामदे में चेयर पर बैठा था, मैदानी घास की गंध आ रही थी. सामने बांस की झाड़ियां थी.
हवा चलने से पत्तियां कांप रही थी. काटबिराली (रूखी) भाग दौड़ कर रही थी. बगल के रास्ते से गोरू लेकर लोग जा रहे थे. छोटा टट्ट (घोड़ा) पर चढ़ कर लोग जा रहे थे. यहां के लोगों में कोई हड़बड़ी नहीं थी. कोलाहल नहीं था, चेहरे पर कोई शिकन नहीं था. कोर्ट की कार्रवाई भी देखी. जब कोर्ट के भीतर दो वकील बहस क र रहे थे. बाहर पीपल के नीचे पपीहा लगातार बोल रहा था. आम गाछ के नीचे वादी और प्रतिवादी एक साथ बैठे थे. बात बात पर दोनों हस भी रहे थे. अंदर दोनों वकील इन लोगों के मामले के लेकर लड़ रहे थे.
रवींद्रनाथ टैगोर ने आगे दस दिनेर छुट्टी लेख में हजारीबाग के बारे में कहा कि एक बड़े मैदान के बीचों बीच साफ-सुथरा हजारीबाग शहर दिखा. आदमी कम जगह ज्यादा थी. मक्खी-मच्छर, धूल-गर्द, हो-हल्ला कहीं नहीं. पूरे हजारीबाग देखने के बाद टिप्पणी की कि ‘विद्युत इंजन जैसा शहर हजारीबाग नहीं है.
जो धुक-धुक कर चलता हो. आसपास के लोगों को घुटन महसूस होती हो, या बैलगाड़ी के चक्के की तरह ओवर लोडेड मानवजीवन वाला शहर भी नहीं. हजारीबाग को व यहां की जीवन शैली पेड़ के नीचे छोटे झरने से क लकल करता जो ठंडक पहुंचती है, वहीं जीवन शैली है.’ रवींद्रनाथ टैगोर की दूसरी यात्रा सन 1903 ई. में लगभग एक माह की हुई. रवींद्रनाथ टैगोर अपनी दूसरी बेटी रेणुका जो टीबी रोग (क्षय रोग) से पीड़ित थी. उसके स्वास्थ्य लाभ के लिए हजारीबाग आये थे. उन्होंने अपनी बीमार बेटी को सबसे पहले कोलकाता से मधुपुर ले गये. लेकिन वहां स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं होने पर हजारीबाग की ओर रुख किया.
रवींद्रनाथ टैगोर हजारीबाग में आकर अपने गोतिया काली कृष्ण टैगोर के हजारीबाग जुलू पार्क स्थित बंगला में ठहरे.(वर्तमान में जुलू पार्क पूरा मुहल्ला बसा हुआ है.) रवींद्रनाथ टैगोर को भाई का यह बगानबाड़ी पसंद नहीं आया. इस बाड़ी के कमरे में अंधेरा हो जा रहा था. रवींद्रनाथ टैगोर के साथ बीमार बेटी रेणुका, छोटी बेटी मीरा, पत्नी मृणालिनी के फूफा, साला नागेंद्रनाथराय चौधरी, उसकी पत्नी व कई सगे संबंधी उनके साथ आये थे.
जुलू पार्क बगानबाड़ी को छोड़ कर रवींद्रनाथ पूरे परिवार के सदस्यों के साथ गिरींद्रनाथ गुप्ता के मकान में आकर रुके. उस समय गिरींद्रनाथ गुप्ता जीपी कम पीपी थे. यह मकान (वर्तमान में पैगोड़ा चौक अक्षय पेट्रोल पंप के पीछे) खप्परपोश बंगला है. इसी बंगले में रहे थे. उसी समय यदुनाथ मुखर्जी जो ब्रrा समाज हजारीबाग के संस्थापक थे, उनसे मिले थे.
रवींद्रनाथ टैगोर हाल ही में ब्रrा समाज कोलाकाता के सचिव बने थे. हजारीबाग आये थे, तो ब्रrा समाज के संस्थापक से मिलना पसंद किया. रवींद्रनाथ टैगोर ने पांच कविता लिखी. उपन्यास नौका डूबी की शुरुआत की. इस उपन्यास का मुख्य पात्र रमेश जब लॉ की पढ़ाई पूरी कर लेता है. लेखक रवींद्रनाथ टैगोर उस रमेश को हजारीबाग वकालत करने के लिए भेजते हैं. इस तरह रवींद्रनाथ टैगोर ने हजारीबाग को हमेशा महत्व दिया.
कमांडेंट ने मामला सुलझाया
सरकार ने सीआरपीएफ को दी है जमीन, लोग कर रहे थे विरोध
रांची एचइसी के सेक्टर टू स्थित साइट फाइव के समीप सीआरपीएफ कैंप को राज्य सरकार द्वारा आवंटित जमीन की मापी कमांडेंट एनके पांडेय के नेतृत्व में की गयी. मापी के दौरान सीमा के अंदर आने वाली जमीन में बसे झुग्गी-झोपड़ी को हटाने का निर्देश दिया गया. इसके पूर्व एक मई को ही चार झोपड़ी खाली करने का मौखिक निर्देश दिया गया था.
इस दौरान सरकारी शौचालय का भी रास्ता बंद किया जा रहा था. जिसका विरोध किया गया. वार्ड 44 की पार्षद उर्मिला यादव के नेतृत्व में लोगों ने सीआरपीएफ के कमांडेंट से मिल कर अपनी समस्या बतायी. इसके बाद कमांडेंट ने स्वयं निकल कर मापी की और सरकारी शौचालय के लिए रास्ता दिया गया. इस दौरान सारो देवी व अन्य लोगों को घर हटाने का निर्देश भी दिया गया.
इस जमीन पर 40-50 साल से लोग रह रहे हैं. उजाड़ने से पहले राज्य सरकार को गरीबों को बसाना पड़ेगा. गरीबों का शोषण हो रहा है. अगर बातचीत नहीं होती तो सरकारी शौचालय का रास्ता भी बंद हो जाता. तीन घरों को हटाने का निर्णय सीआरपीएफ की तरफ से हुआ है.
उर्मिला यादव, पार्षद वार्ड 44
मेरे पास घर नहीं
मेरे पास कोई घर नहीं है. हम अपने बच्चों को लेकर कहां जायें. यहां रहते 40 साल से ज्यादा समय हो गया. लेकिन हमारी सुनने वाला कोई नहीं है.
सारो देवी,स्थानीय
यह जमीन सीआरपीएफ को आवंटित थी. पार्षद और अन्य लोगों से मिल कर 12 फीट का रास्ता निर्धारित किया ताकि किसी को कोई परेशानी न हो. इसके रख रखाव की जिम्मेदारी हमारी होगी. साथ ही, विस्थापितों को यथा संभव मदद करने का प्रयास रहेगा. एन के पांडेय, कमांडेंट, सीआरपीएफ

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