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बलबड्डा दुर्गा मंदिर में 200 वर्षों से कायम है आस्था की परंपरा

बंगला पद्धति से होती है पूजा, नवमी पर दी जाती है पाठा की बलि

मेहरमा प्रखंड के पिरोजपुर, सिंघाड़ी, इटहरी और बलबड्डा गांव के दुर्गा मंदिरों में दुर्गा पूजा की तैयारियां जोरों पर हैं. प्रतिमा निर्माण से लेकर पंडाल सजावट तक का कार्य तीव्र गति से चल रहा है. बलबड्डा का ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर लगभग 200 वर्षों पुराना है, जहां बंगला पद्धति से पूजा होती है. 80 वर्षीय बुजुर्ग रामचंद्र सिंह बताते हैं कि बलबड्डा स्टेट के जमींदार अमरेंद्र नाथ देव व नरेंद्रनाथ देव के वंशजों द्वारा इस परंपरा की शुरुआत की गयी थी. यहां षष्ठी को प्राण प्रतिष्ठा, अष्टमी को डलिया चढ़ाने और नवमी को पाठा बलि की परंपरा है. प्रतिमा का विसर्जन कंधे पर उठाकर मंदिर से कुछ दूरी पर बने तालाब में पांच फेरे लगाकर किया जाता है. समाजसेवी अरुण कुमार राम पिछले 20 वर्षों से पूजा-मेला आयोजन की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. रावण वध, संथाली नृत्य, रासलीला और गंगा महाआरती जैसे कार्यक्रम आकर्षण का केंद्र होते हैं।

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