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गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे ने की मांग, गैर आदिवासियों को मिले जमीन बेचने का अधिकार

एसपीटी एक्ट की धारा 53 का हो पालन नयी दिल्ली : सही मायने में सीएनटी और एसएनपीटी कानून का मजबूती के साथ पालन करना चाहिए तथा गैर आदिवासियों को इस कानून के दायरे से बाहर कर देना चाहिए. क्योंकि राज्य में गैर आदिवासियों की संख्या काफी अधिक है और वह जरूरत पड़ने पर भी अपनी […]

एसपीटी एक्ट की धारा 53 का हो पालन
नयी दिल्ली : सही मायने में सीएनटी और एसएनपीटी कानून का मजबूती के साथ पालन करना चाहिए तथा गैर आदिवासियों को इस कानून के दायरे से बाहर कर देना चाहिए. क्योंकि राज्य में गैर आदिवासियों की संख्या काफी अधिक है और वह जरूरत पड़ने पर भी अपनी जमीन नहीं बेच सकते हैं. यह बात गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे ने कही है.
श्री दुबे ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सीएनटी पर दिये गये बयान के बाद यह बात कही. बताते चलें कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संताल परगना काश्तकारी कानून को लागू करने की बात कही है. ब्रिटिश शासनकाल के दौरान झारखंड में दो सशक्त काश्तकारी कानून छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम(सीएनटी) और संताल परगना काश्तकारी अधिनियम(एसएनपीटी) बनाया गया. इन कानूनों के तहत आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को नहीं बेची जा सकती है. इस कानून में संशोधन की बात भी लंबे समय से होती रही है.
भाजपा सांसद ने कहा कि देश में संविधान 1950 में लागू हुआ और संताल परगना काश्तकारी कानून 1949 में लागू हुआ. वर्ष 1969 में पटना हाइकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए काश्तकारी कानून के तहत गैर आदिवासियों की जमीन पर लगी ब्रिकी और रोक पर प्रतिबंध को हटाने का आदेश दिया था.
बिहार सरकार ने कोर्ट के आदेश से इस प्रतिबंध को हटा दिया था, लेकिन झारखंड में राज्य गठन के बाद भी इसे सही तरीके से लागू नहीं किया गया. भाजपा सांसद ने इस कानून की धारा 53 को फिर से बहाल करने की मांग की है. उन्होंने 1938 में आरइ रसेल की संताल परगना जांच आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इसी के आधार पर काश्तकारी कानून बना. रिपोर्ट में भी कहा गया है कि आदिवासियों को शोषण से बचाने के लिए यह कानून बनाया गया है, लेकिन गैर आदिवासियों को जमीन बेचने का अधिकार मिलना चाहिए.
कानून की धारा 53 फिर से बहाल करने की मांग
श्री दुबे ने कहा कि इस विषय को उन्होंने समय-समय पर संसद में भी उठाया है. इस विषय में लॉ कमीशन को पत्र भी लिखा है. चूंकि मुख्यमंत्री इस कानून को सख्ती से लागू करने की बात कह रहे हैं, इसलिए जरूरी है कि इस कानून को लागू किया जाये और कानून की धारा 53 को फिर से बहाल किया जाये, जिससे गैर आदिवासी लाेग अपनी जमीन की खरीद-बिक्री कर सके.

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