इनका शिकार अधिकतर महिलाएं, बुजुर्ग और नौकरीपेशा लोग हो रहे हैं, जो कानून के नाम पर डर कर ठगों की बातों में आ जाते हैं. शहर के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों से भी लगातार ऐसी शिकायतें मिल रही हैं. पीड़ितों को कॉल कर बताया जाता है कि उनके आधार कार्ड, मोबाइल नंबर या बैंक खाते का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग्स तस्करी या किसी अन्य गंभीर अपराध में हुआ है. इसके बाद ठग खुद को जांच एजेंसी का अधिकारी बताकर कहते हैं कि मामला बेहद संवेदनशील है और अब आप डिजिटल अरेस्ट में हैं. पीड़ितों को यह भी चेतावनी दी जाती है कि अगर उन्होंने फोन या कैमरा बंद किया, किसी से बात की या कॉल काटी तो उनके खिलाफ तुरंत कानूनी कार्रवाई की जायेगी. लोगों को डरा कर ठग ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर करवा लेते हैं. कभी जांच प्रक्रिया का हवाला देकर, तो कभी खाते की जांच के नाम पर उनसे यूपीआई, नेट बैंकिंग या अन्य डिजिटल माध्यमों से रकम ट्रांसफर करवायी जाती है. कई मामलों में पीड़ित घंटों तक वीडियो कॉल पर रहने को मजबूर रहते हैं और ठगों के हर निर्देश का पालन करते हैं. इसी दौरान उनसे बैंक खाते की जानकारी, ओटीपी और अन्य गोपनीय विवरण हासिल कर लिए जाते हैं. इसके बाद उनके खाते से रकम निकाल ली जाती है. ठगी का अहसास पीड़ितों को तब होता है, जब उनके खाते से पैसे निकल जाते हैं.
दूसरे शहरों में पढ़ने वाले बच्चों के परिजन भी निशाने पर
कई मामलों में यह भी सामने आया है कि साइबर ठग ऐसे परिवारों को खासतौर पर टारगेट कर रहे हैं, जिनके बच्चे पढ़ाई या नौकरी के सिलसिले में दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, पुणे जैसे बड़े शहरों में रह रहे हैं. ठग पहले से यह जानकारी जुटा लेते हैं कि बच्चा घर से बाहर रहता है और फिर उसके माता-पिता या अभिभावकों को अपना शिकार बनाते हैं. ऐसे मामलों में ठग व्हाट्सऐप के माध्यम से वीडियो कॉल करते हैं और खुद को पुलिस या किसी जांच एजेंसी का अधिकारी बताते हैं. कॉल पर परिजनों से कहा जाता है कि उनका बेटा या बेटी किसी गंभीर अपराध में पकड़ा गया है. डर और घबराहट की स्थिति में परिजन अपने बच्चे से बात कराने या उसकी आवाज सुनाने की मांग करते हैं, तो ठग एक और चाल चलते हैं. कई मामलों में ठग किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण या किसी अन्य व्यक्ति के जरिए बच्चे जैसी आवाज सुना देते हैं, जिससे परिजनों को यह विश्वास हो जाता है कि कॉल करने वाला व्यक्ति सच ही बोल रहा है. बच्चे की आवाज सुनकर माता-पिता भावनात्मक रूप से टूट जाते हैं और ठगों की बातों पर भरोसा कर लेते हैं. इसके बाद ठग बच्चे को छुड़ाने या मामला सेट करने के नाम पर मोटी रकम की मांग करने लगते हैं. परिजनों से बच्चों जेल भेजने की धमकी भी दी जाती है. इससे डरकर परिजन बिना सोचे-समझे ऑनलाइन माध्यम से पैसे ट्रांसफर कर देते हैं.वर्दीधारी अफसर का फोटो दिखा जीतते हैं भरोसा
साइबर ठग लोगों को अपने जाल में फंसाने के लिए अब व्हाट्स ऐप प्रोफाइल फोटो को हथियार बना रहे हैं. जब वे कॉल करते हैं तो अपने प्रोफाइल पर पुलिस, सीबीआई, ईडी या किसी अन्य जांच एजेंसी के वर्दीधारी अधिकारी की तस्वीर लगा लेते हैं. कई मामलों में यह फोटो इंटरनेट से डाउनलोड की गयी किसी असली अधिकारी की होता है, जिससे कॉल और भी विश्वसनीय नजर आती है. ठग केवल फोटो तक ही सीमित नहीं रहते, बल्कि प्रोफाइल नाम में आईपीएस ऑफिसर, साइबर क्राइम ब्रांच, सीबीआई दिल्ली, इडी जैसे शब्द लिखकर खुद को जांच एजेंसी से जुड़ा बताने की कोशिश करते हैं. जैसे ही पीड़ित के मोबाइल स्क्रीन पर वर्दी में अधिकारी की तस्वीर और ऐसा प्रोफाइल नाम दिखाई देता है, आम लोग डर और सम्मान के कारण बिना सवाल किए उनकी बात मान लेते हैं. इसी भरोसे का फायदा ठग उठा रहे हैं.महिलाएं हो रही सबसे ज्यादा टारगेट
डिजिटल अरेस्ट के नाम पर महिलाएं सबसे अधिक शिकार हो रही हैं. ठग यह मानकर चलते हैं कि महिलाएं कानून और जांच एजेंसियों के नाम से जल्दी डर जाती हैं और सामाजिक बदनामी के डर से मामले को गुप्त रखने की कोशिश करती हैं. इसी मानसिकता का फायदा उठाकर साइबर अपराधी उन्हें आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं. मोबाइल नंबर, नाम, पता, नौकरी या परिवार से जुड़ी जानकारी कई बार सोशल मीडिया, ऑनलाइन फॉर्म, फर्जी लिंक या लीक हुए डेटाबेस से हासिल कर ली जाती है. कॉल के दौरान जब ठग पीड़ित का नाम, शहर या किसी परिजन का जिक्र करते हैं, तो सामने वाला व्यक्ति उन्हें असली अधिकारी समझ बैठता है, जिससे ठगी करना उनके लिए और आसान हो जाता है. कई मामलों में उन्हें यह धमकी दी जाती है कि अगर उन्होंने किसी से इस बारे में बात की तो तुरंत गिरफ्तारी कर ली जायेगी. बदनामी के डर महिलाएं परिजनों से भी सलाह नहीं लेती हैं और ठगों के जाल में फंस जाती हैं.डिजिटल अरेस्ट कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं : साइबर डीएसपीसाइबर डीएसपी आबिद खान ने आमलोगों से डिजिटल अरेस्ट के नाम हो रही साइबर ठगी से सतर्क रहने की अपील की है. कहा कि देश में डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई भी कानूनी व्यवस्था नहीं है. कोई भी पुलिस या जांच एजेंसी फोन, व्हाट्स ऐप या वीडियो कॉल के माध्यम से किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं करती और न ही इस तरह से पैसे की मांग की जाती है. बताया कि साइबर ठग लोगों को डराने के लिए खुद को सीबीआई, ईडी या पुलिस का अधिकारी बताकर कॉल करते हैं और गंभीर मामलों में फंसाने की धमकी देते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में लोग घबरा जाते हैं और ठगों की बातों में आकर बड़ी गलती कर बैठते हैं. कहा कि यदि किसी व्यक्ति को उसके बच्चे या किसी परिजन के नाम पर इस तरह का कॉल आता है, तो सबसे पहले सीधे संबंधित व्यक्ति या अपने बच्चे से संपर्क करें. एक साधारण कॉल करने से ही पूरी सच्चाई सामने आ जाती है और ठगों की चाल नाकाम हो जाती है. ठग सत्यापन नहीं होने का फायदा उठा रहे हैं. कहा कि ऐसे किसी भी कॉल पर घबरायें नहीं, ना तो किसी प्रकार की जानकारी साझा करें और ना पैसा ट्रांसफर करें. कॉल को तुरंत काट दें और बिना देर किए नजदीकी थाना या साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 पर शिकायत दर्ज करायें. समय पर की गयी शिकायत से ठगी से बची जा सकती है.
(विष्णु स्वर्णकार, गिरिडीह)B
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