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Giridih News : नहीं रहे प्रख्यात होड़ोपैथिक चिकित्सक डॉ पीपी हेंब्रम

Giridih News : डीएफओ से सेवानिवृत्त हुए थे डॉ पीपी हेंब्रम

Giridih News : गांडेय/गिरिडीह. आदिवासी संस्कृति व पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली में ज्ञान का भंडार रखने वाले प्रख्यात होड़ोपैथिक चिकित्सक सह सेवानिवृत्त डीएफओ डॉ पीटर पॉल हेंब्रम (डॉ पीपी हेंब्रम) नहीं रहे. उन्होंने गुरुवार की रात अंतिम सांस ली. डॉ हेंब्रम के निधन से इलाके में शोक की लहर दौड़ गयी है. वह कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. शुक्रवार की शाम महेशमुंडा मिशन कब्रिस्तान में उन्हें दफनाया गया. मौके पर फादर मशिचरन, फादर मॉरिस समेत कई मौजूद थे. डॉ पीपी हेंब्रम मूलतः कसमार (तोरपा-खूंटी) के रहने वाले थे. प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने संत जेवियर कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद वह देहरादून में वन विद्या का अध्ययन किया. कालांतर में वह सरकारी सेवा में आये और रेंजर बने. इस बीच महेशमुंडा में उन्होंने अपना आशियाना बनाया. 1987 में बतौर डीएफओ पद से सेवानिवृत्त हुए. इस बीच वह बिहार राज्य आदिवासी सहकारिता विकास विभाग व स्वास्थ्य अध्ययन अनुसंधान विकास प्रलेखन कार्य में कार्यपालक पदाधिकारी भी रहे. वहीं सोसाइटी ऑफ एथनोबॉटानिस्ट लखनऊ के लाइफ टाइम सदस्य भी बने.

औषधीय पौधों से इलाज को दिया होड़ोपैथी का नाम :

प्रसिद्ध होड़ोपैथिक चिकित्सक डॉ पीपीहेंब्रम के निधन से पूरे जिले में शोक हैं. डॉ हेंब्रम सरकारी सेवा में आने के बाद वे पहाड़िया जनजाति के बीच गये और वहीं वनों के संरक्षण के साथ उनका वानस्पतिक व वैज्ञानिक नाम और विभिन्न बीमारियों में इलाज की शुरुआत की. बाद में उन्होंने इसे होड़ोपैथिक पद्धति का नाम दिया और इस पर रिसर्च शुरू कर सफलता भी पायी. सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने अपने वर्तमान निवास स्थान महेशमुंडा में होड़ोपैथिक रिसर्च सेंटर खोल कर लोगों का इलाज एवं वानस्पतिक जानकारियां साझा करने की मुहिम शुरू की. यहां आज भी सैकड़ों औषधीय पेड़ पौधे लगे हैं.सरकारी सेवा में आने के बाद वे पहाड़िया जनजाति के बीच गये और वहीं वनों के संरक्षण के साथ उनका वानस्पतिक व वैज्ञानिक नाम और विभिन्न बीमारियों में इलाज की शुरुआत की. बाद में उन्होंने इसे होड़ोपैथिक पद्धति का नाम दिया और इस पर रिसर्च शुरू कर सफलता भी पायी. सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने अपने वर्तमान निवास स्थान महेशमुंडा में होड़ोपैथिक रिसर्च सेंटर खोल कर लोगों का इलाज एवं वानस्पतिक जानकारियां साझा करने की मुहिम शुरू की. यहां आज भी सैकड़ों औषधीय पेड़ पौधे लगे हैं.

झारखंड में होड़ोपैथिक चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने पर जोर :

गिरिडीह. झारखंड में होड़ोपैथिक चिकित्सा पद्दति को बढ़ावा देने को ले डॉ पीपी हेंब्रम हाल ही में दिशोम गुरु शिबू सोरेन व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिले थे. उन्होंने झारखंड में होड़ोपैथिक चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने तथा जगह-जगह रिसर्च सेंटर की मांग की थी. कहा था कि यह पुरखों का ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच सेतु का काम करेगा. उन्होंने होड़ोपैथी चिकित्सा पद्धति को कोरोना काल में काफी कारगर बताते हुए अपनी पुस्तक भी भेंट की थी. सीएम हेमंत सोरेन ने डॉ हेंब्रम को शॉल देकर सम्मानित किया था.

जेडब्ल्यू हर्ष बर्गर अवार्ड से सम्मानित हुए थे डॉ हेंब्रम :

डॉ हेंब्रम ने कई पुस्तकें भी लिखी थीं. उन्होंने आदिवासी औषधि, झारखंड में लोक औषधि व पोषाहार के गहरे जानकार, एथनोबॉटिकल केयर ऑफ पहाड़िया, को ऑथर समेत कई पुस्तकें लिखीं. वानस्पतिक ज्ञान को बढ़ावा देने समेत अन्य कार्य को ले उन्हें जेडब्ल्यू हर्ष बर्गर अवार्ड से सम्मानित किया गया था. उन्हें एफइएस फैलो से भी नवाजा गया था. निधन की सूचना पर स्थानीय मुखिया रुखसाना परवेज, उप मुखिया मेहबूब आलम, सामाजिक कार्यकर्ता मो मुख्तार समेत महेशमुंडा मिशन से जुड़े फादर, सिस्टर व मसीही समुदाय के लोग पहुंचे और शोकाकुल परिजनों को सांत्वना दी.

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