पीयूष तिवारी, गढ़वा
एक दौर था, जब गढ़वा शहर का मथुरा बांध यानी तिलैया नाला जीवनदायिनी धारा की तरह था. स्नान, कपड़े धोना, पीने का पानी, और तैराकी जैसी दैनिक ज़रूरतों का केंद्र रहा यह बांध आज बदहाल स्थिति में है. गंदे पानी, अतिक्रमण और सरकारी उपेक्षा ने इस ऐतिहासिक स्थल को बर्बादी के कगार पर ला खड़ा किया है.
40 साल पहले तक थी रौनक, आज है सन्नाटा
बांध के गर्भ तक में अतिक्रमण, प्रशासन मौन
स्थानीय लोग बताते हैं कि मथुरा बांध के दोनों किनारों पर अवैध रूप से मकान बना दिये गये हैं. यहां तक कि कुछ लोगों ने नाले के अंदर तक निर्माण कर लिया है.तिलैया नाला, जो लहसुनिया पहाड़ से निकलकर सरस्वतिया नदी में मिलता है, अब नाले जैसा नज़र आता है. आसपास की बस्तियों की नालियों का गंदा पानी इसमें बहाया जा रहा है. नगर परिषद और जनप्रतिनिधि अब तक इस ओर से आंखें मूंदे बैठे हैं.इतिहास की पृष्ठभूमि: मथुरा साव की विरासत
सेवानिवृत्त अभियंता का अकेला संघर्ष
मथुरा साव के सबसे छोटे पुत्र रामचंद्र प्रसाद केसरी (उम्र 88 वर्ष) जो बिजली विभाग से अधीक्षण अभियंता के पद से सेवानिवृत्त हैं, आज भी इस बांध को बचाने के लिए अकेले संघर्षरत हैं. उन्होंने 2016 में अपने खर्च पर एक नया छोटा बांध बनाया, मंदिर की मरम्मत करवाई और लगातार सफाई करवा रहे हैं. उन्होंने अपनी मां मयूराक्षी देवी के नाम पर तीन कमरों का एक भवन भी बनवाया है, जिसे गरीबों के विवाह आदि के लिए नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाता है.पर्यटन और पर्यावरण का केंद्र बन सकता है मथुरा बांध
मथूरा बांध के एक तरफ उंचरी मुहल्ला, दूसरी तरफ नगवां मुहल्ला है. पास में शंकर मंदिर और अद्वैत आश्रम भी है. यदि थोड़ी सी प्रशासनिक इच्छाशक्ति दिखाई जाये, तो यह क्षेत्र शहर का एक खूबसूरत पर्यटन स्थल, मॉर्निंग वॉक पार्क और जलस्रोत के रूप में विकसित हो सकता है. स्थानीय बुजुर्गों और सामाजिक संगठनों की मांग है कि इस ऐतिहासिक बांध की सफाई, सौंदर्यीकरण और संरक्षण के लिए विशेष योजना बने। नगर परिषद को चाहिए कि वह अतिक्रमण हटाए, जल निकासी की व्यवस्था सुधारे और इसे एक पब्लिक पार्क के रूप में विकसित करे।डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

