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चार साल से तुलसीदामर खदान बंद, आर्थिक व्यवस्था चरमराई

सेल व झारखंड सरकार की रस्साकशी में फंसा खनन क्षेत्र का भविष्य, रोजगार और उम्मीदें हुईं कमजोर

सेल व झारखंड सरकार की रस्साकशी में फंसा खनन क्षेत्र का भविष्य, रोजगार और उम्मीदें हुईं कमजोर विजय सिंह, भवनाथपुर कभी खनन क्षेत्र का चमकता सितारा रहा भवनाथपुर आज बेरोजगारी, उपेक्षा और आर्थिक ठहराव का प्रतीक बनता जा रहा है. स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) के अधीन संचालित तुलसीदामर डोलोमाइट खदान जो भिलाई, बोकारो और राउरकेला जैसे बड़े स्टील प्लांटों की आपूर्ति शृंखला की रीढ़ मानी जाती थी 16 फरवरी 2020 से बंद तक बंद रही. इसके बाद 2021 में लीज केवल एक वर्ष के लिए भारी जुर्माने के साथ बढ़ायी गयी. हालांकि इसके खदान की लीज नहीं बढ़ायी गयी, जिसके कारण 2022 खंदान बंद है. लगभग चार वर्ष से जारी यह स्थिति अब स्थायी बंदी जैसी हो चुकी है, जिसका व्यापक असर पूरे क्षेत्र पर दिख रहा है. तुलसीदामर खदान का संचालन 1975 में शुरू हुआ था. सेल को 156.77 हेक्टेयर क्षेत्र का लीज मिला था. प्रारंभिक वर्षों में खदान ने तेज रफ्तार से उत्पादन किया, लेकिन 1990 के दशक के बाद हालात बिगड़ते गये. पर्यावरण मंजूरी, वन स्वीकृति और लीज नवीनीकरण में देरी, अन्य राज्यों से सस्ता डोलोमाइट मिलने, सेल की उदासीनता और आरएमडी के बोकारो में विलय के बाद कर्मचारियों की बड़ी कटौती के कारण खदान की यह स्थिति है. लीज नवीनीकरण पर सेल और सरकार आमने-सामने खदान की बंदी को लेकर सेल और राज्य सरकार के बीच तकरार भी जारी है. झारखंड विधानसभा की समिति (अध्यक्ष: सरयू रॉय) ने सेल को पर्यावरण स्वीकृति और लीज नवीनीकरण में लापरवाही बरतने का दोषी माना है. वहीं सेल का कहना है कि सरकार की केवल एक वर्ष की लीज नीति ही सबसे बड़ा अवरोध है, क्योंकि पर्यावरण स्वीकृति में ही तीन-चार वर्ष लग जाते हैं. लंबी अवधि की लीज के बिना बड़े निवेश संभव नहीं हैं. यह प्रशासनिक व राजनीतिक खींचतान आज भी जारी है, जिससे खदान का पुनरुद्धार ठप है. 1200 से घटकर 11 कर्मचारी बचे खदान बंद होने से भवनाथपुर का सामाजिक-आर्थिक ढांचा पूरी तरह टूट गया है. कभी यहां 1200 कर्मचारी कार्यरत थे, जिनकी संख्या अब केवल 11 रह गयी है. स्थानीय बाजार, दुकानें और परिवहन व्यवसाय लगभग समाप्त हो चुके हैं. खदान के लिए अधिग्रहित 2100 एकड़ जमीन आज भी बेकार पड़ी है. विस्थापित और किसान परिवार अब भी उचित मुआवजा व पुनर्वास की मांग में भटक रहे हैं. एटक यूनियन और पलामू किसान मजदूर संघ समय-समय पर आंदोलन करते रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है. खदान चलाना चाहते हैं, फैसला सरकार करे: उप महाप्रबंधक भवनाथपुर खदान समूह के उप महाप्रबंधक श्याम उज्जवल मेदा ने बताया कि खदान को सेल ने बंद नहीं किया है, बल्कि 22 अक्टूबर 2022 को लीज समाप्त होने के बाद राज्य सरकार ने नवीनीकरण नहीं किया. उन्होंने कहा कि बोकारो स्टील प्लांट के निदेशक द्वारा झारखंड सरकार को 20 वर्ष की लीज देने का अनुरोध किया गया है. उप महाप्रबंधक के अनुसार, सेल भवनाथपुर खदान के पुनरुत्थान के प्रति गंभीर है. अब अंतिम निर्णय राज्य सरकार के हाथों में है.

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