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डूब सकती हैं 50 गांवों की जमीन

हर साल की बाढ़ में कटती हैं हजारों एकड़ भूमि वर्ष 1970 के दशक से ही उठ रही है तटबंध की मांग रामचंद्र चंद्रवंशी ने तटबंध की मांग को उठाने का आश्वासन दिया विनोद पाठक गढ़वा : गढ़वा जिले के सोन व कोयल नदी की बाढ़ से हर साल बड़े पैमाने पर हो रहे के […]

हर साल की बाढ़ में कटती हैं हजारों एकड़ भूमि
वर्ष 1970 के दशक से ही उठ रही है तटबंध की मांग
रामचंद्र चंद्रवंशी ने तटबंध की मांग को उठाने का आश्वासन दिया
विनोद पाठक
गढ़वा : गढ़वा जिले के सोन व कोयल नदी की बाढ़ से हर साल बड़े पैमाने पर हो रहे के भूमि के कटाव के कारण करीब 50 गांवों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. इन नदियों के तट पर अवस्थित गांव की भूमि हर साल ये नदियां अपने में समाहित करती जा रही हैं. कोई भी ऐसा साल नहीं गुजरा, जब इन नदियों के तट पर बसे ग्रामीणों की भूमि नदी में कट कर न बहा ली गयी हो. पहले नदियां अपने तटवर्ती भूमि के ऊपरी हिस्सों को बहा कर वहां ढाब बनाती हैं.
इसके बाद वह उक्त भूमि के भाग को अपनी धारा में शामिल कर बहा ले जाते हैं. जिले के सोन व कोयल नदी के तट पर बसे गांवों की अब तक कितनी जमीन नदी में समाहित हो चुकी हैं, इसका अंदाजा लगा पाना कठिन है. लेकिन इतना कहा जा सकता है कि सोन और कोयल नदी मिल कर अपने 60 किमी(दोनों नदियों की लंबाई करीब 30-30 किमी) की दूरी में हर साल सैकड़ों एकड़ की जमीन का कटाव हो रहा है.
उल्लेखनीय है कि इन दोनों ही नदियों का पाट(चौड़ाई) पहले ही काफी अधिक है. हर साल भूमि का कटाव होते जाने की वजह से यह पाट और अधिक बढ़ता जा रहा है. गौरतलब है कि सामान्य दिनों में ये नदियां इतने चौड़े पाट में नहीं बहती हैं. ये अपनी चौड़ाई की करीब एक चौथाई भाग में सिमटी रहती है. इसलिए इन नदियों की धारा को बहने के लिए जितनी चौड़ाई की जरूरत है, उससे करीब तीन गुणा-चार गुणा अधिक हिस्से में वे अपना अस्तित्व फैला कर रखी हुई हैं और सुरसा की भांति यह पाट लगातार बढ़ता जा रहा है.
इसका खामियाजा नदी के तट पर बसे गांव और वहां के लोगों को उठाना पड़ रहा है. नदी के लगातार कटाव की वजह से कई छोटे किसान तो भूमिहीन होने की स्थिति में पहुंच चुके हैं, वहीं कई समृद्ध किसानों की हालत दयनीय स्थिति में पहुंच गयी है. पहले की अपेक्षा उनके पास काफी कम भूमि बचकर रह गयी है. यही स्थिति बनी रही तो आनेवाले समय में तटवर्ती इलाके के किसान अपनी भूमि ही नहीं, बल्कि गांव से भी हाथ धो सकते हैं.
कई गांवों का हो चुका है पलायन
मझिआंव प्रखंड के कोयल नदी के तट पर बसा आज का बकोइया गांव दो तीन-चार पीढ़ी पहले जहां था. वहां(पुरनका बकोईया) आज नदी की धार है. बाद में यहां के पूर्वजों ने गांव से नदी से काफी हट कर अपनी पूरी बस्ती नदी के आगोश में होने के कारण अपनी बस्ती बसायी.
आज स्थिति यह है कि अब कोयल का पानी बरसात में इस बस्ती में भी पहुंचने लगा. कुछ साल तक यही स्थिति रही, तो इस गांव को फिर अलग बसने के लिए जगह भी नहीं रहेगा़ एक तरह से गांव का अस्तित्व ही समाप्त होकर रह जायेगा़ यह स्थिति सिर्फ बकोइया गांव की नहीं है, बल्कि सोन व कोयल के तट पर बसे दर्जनों गांवों की कमोबेश है.
80 के दशक से ही उठ रही है तटबंध की मांग
कोयल नदी के तट पर बसे मझिआंव व कांडी प्रखंड के गांव की मि‍ट्टी लगातार कोयल में समाहित होते जाने को लेकर प्रभावित ग्रामीणों द्वारा तटबंध की मांग वर्ष 1976-77 की भयानक बाढ़ के बाद से ही जोरों से की जा रही है़ हर विधानसभा चुनाव में तटबंध की बात राजनीतिक दलों के मुद्दे में शामिल रहता है़ लेकिन चुनाव बाद इस पर कोई ध्यान नहीं देता़ स्थिति यह है कि आज करीब चार दशक बाद भी स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है़
तटबंध के लिए प्रयास होंगे : रामचंद्र चंद्रवंशी
इस संबंध में क्षेत्रीय विधायक सह झारखंड सरकार के स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी ने कहा कि उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल में ही तटबंध के लिये प्रयास शुरू किया था़ कुछ काम आगे बढ़ चुका था़ लेकिन उनके चुनाव हारने के बाद जो यहां से जनप्रतिनिधि बने, उन्होंने इसके लिए कोई पहल नहीं की़ अब पुन: वे इस मामले को कैबिनेट में उठायेंगे़ तटबंध के लिए वे अपने स्तर से पूरा प्रयास करेंगे़

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